पिछले 20 वर्षों में हमने अलग-अलग राज्यों में शिक्षा विभाग के 100 प्रिंसिपल सेक्रेटरी के साथ काम किया। उनमें से कम से कम 10 ऐसे हैं, जिन्होंने अपने कार्यकाल में अपने राज्य में शिक्षा के स्तर में उल्लेखनीय सुधार सुनिश्चित किए। अन्य 10 से 20 ने सुधार के बेहतर प्रयास किए और सफल भी हुए । और ये सभी उसी तरह के राजनैतिक दबाव, फंड की कमी और खराब कार्य संस्कृति के बीच काम कर रहे थे ।
एक असंभव-सा लगने वाला काम अचानक संभव हो गया । हैबल फ्लाई ओवर, जो बैंगलोर शहर का उत्तरी प्रवेश द्वार है, पर यातायात का प्रवाह अचानक ठीक होने लगा । इस स्थान पर शहर की एकमात्र और लम्बी रिंग रोड़ राष्ट्रीय राजमार्ग 7 (NH7 ) (जो इस शहर से गुज़रते हुए कश्मीर को कन्याकुमारी से जोड़ता है) को काटकर निकलती है ।
बैंगलोर से शहर के उत्तर में हर जगह और देश के बाकी हिस्सों के लिए भी सारा ट्रैफ़िक – केम्पे गौड़ा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से, शहर के उत्तरी उपनगर, चिकबल्लबुर, अनंतपुर और उनके भीतरी इलाकों जैसे आसपास के शहरों से लेकर हैदराबाद, नागपुर, भोपाल और दिल्ली- हर जगह के लिए उस फ्लाईओवर से गुजरते हैं । क्रॉस-कटिंग रिंग रोड का अपना भारी ट्रैफिक है ही ।
पिछले दस सालों में इस फ्लाईओवर के ट्रैफ़िक में कितना इज़ाफा हुआ है, मुझे नहीं मालूम मगर मैं इस फ्लाई ओवर से 2006 से गुज़रता आ रहा हूँ । मैं तब से अब तक उस फ्लाई ओवर पर होने वाली ट्रैफ़िक की भारी अव्यवस्था का गवाह हूँ । जून 2008 में वर्तमान एयरपोर्ट के उद्घाटन के बाद यहाँ ट्रैफिक लगातार बढ़ता ही गया । कुछ सालों बाद एयरपोर्ट के पास बसे उपनगरों की तरफ बिल्डर्स का ध्यान गया, जिसने असाधारण वृद्धि को जन्म दिया, जो आज तक जारी है । 2008 में सुबह 8 बजे मुझे फ्लाई ओवर पार करने में एक मिनिट से भी कम समय लगता था, वहीं अक्टूबर 2022 में सुबह 8 बजे मुझे 20 मिनिट का समय लगता था, और अब वही समय 2-5 मिनिट रह गया है ।
बिना किसी नई सड़क को जोड़े या बिना कोई अंडर पास बनाए, यह सब कैसे संभव हुआ?
समझदार और विचारशील यातायात प्रबंधन से यह सम्भव हुआ । उत्तर से आने वाले ट्रैफ़िक का एक हिस्सा फ्लाईओवर के दूसरे हिस्से में मोड़ दिया गया, सुबह के दो घंटों के लिए फ्लाई ओवर पर ट्रकों की आवाजाही पर रोक लगाई गई । बस को भी बस स्टॉप के अतिरिक्त किसी अन्य स्थान पर रुकने की मनाही की गई और इसी तरह के कुछ और छोटे-छोटे प्रयासों से संरचना में बिना कोई परिवर्तन किए ट्रैफिक के दबाव को नियंत्रित किया गया । अर्थात दिमाग में यह सोच मौजूद थी कि इन सभी बाध्यताओं के बावजूद ट्रैफिक को कैसे नियंत्रित किया जा सकेगा चूंकि इन बाध्यताओं से पार पाने में कुछ साल और लगेंगे । तब तक व्यवस्थित विचार करके खोजे गए समाधान ने स्थिति को बेहतर बनाने में मदद की ।
यातायात व्यवस्था में यह बदलाव केवल फ्लाई ओवर पर ही नहीं हुआ वरन शहर के अन्य हिस्सों में भी इसे देखा जा सकता है । और यह सब इसलिए सम्भव हुआ कि ऊपर से लेकर नीचे तक के सारे प्रशासन ने दुनिया भर में कुख्यात बैंगलोर को सुधारने का बीड़ा उठा लिया । इसके लिए योग्य अफसरों की नियुक्ति करके उन्हें स्पष्ट आदेश दिए गए और उन्हें अधिकार भी दिए गए जिससे सभी हितग्राहियों को यह सन्देश मिला कि बैंगलौर के ट्रैफिक को सुधारना चाहते हैं । इसके बाद अधिकारियों ने सोची-समझी रणनीति के आधार पर अपने काम को अंजाम दिया ।
इसमें कोई शंका नहीं ही कि यह सब पिछले दस वर्षों में भी आसानी से किया जा सकता था, मगर ऐसा नहीं हुआ । इसके अलावा इस तरह के काम उच्च स्तरीय अधोसंरचना और सुव्यवस्थित जन परिवहन का विकल्प नहीं हो सकते और इस तरह की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए उनसे पार पाने की योजना पहले से ही बनाई जानी चाहिए । मगर यह कहानी यह भी बताती है कि आपकी सीमाएँ, बाध्यताएँ जो भी हो, बदलाव के लिए प्रतिबद्धता रखना और उसे व्यवहार में लाना हालत बदल सकता है । यह आधारभूत सिद्धांत सार्वजनिक प्रणालियों या अन्य प्रकार के संगठन, सभी के लिए समान रूप से लागू होता है।
अब इसी संदर्भ में शिक्षा का उदाहरण लेते हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2022 ने शिक्षा प्रणाली में पर्याप्त सुधार करने के लिए एक रुपरेखा प्रस्तुत की है । हालाँकि हम जानते हैं कि इस नीति के क्रियान्वयन में सालों लगेंगे और उसमें भी कई विसंगतियाँ होंगी ही, इसके बावजूद भी नीति के क्रियान्वयन का इंतज़ार करते रहने की बजाय कुछ ठोस काम करके शिक्षा में महत्वपूर्ण बदलाव लाए जा सकते हैं ।
इसे दूरस्थ दुर्गम इलाकों के हज़ारों सरकारी विद्यालयों में अनुभूत किया जा सकता है जहाँ स्व प्रेरित शिक्षक इसी तरह की विसंगतियों, बाध्यताओं और सीमित संसाधनों के बावजूद इस बात को सुनिश्चित करते हैं कि उनके विद्यार्थी वह सब सीखें जो उनके लिए आवश्यक है । विद्यालय के सूक्ष्म जगत में एक जुड़ाव रखने वाला और योग्य शिक्षक हर तरह की बाधाओं जैसे खराब गुणवत्ता की पुस्तकें, कक्षा में पर्याप्त स्थान न होना, बच्चों के घर में पर्याप्त संसाधन न होना और अपने अधिकारियों से भ्रमित करने वाले निर्देश मिलना आदि से पार पाने में सक्षम होते हैं । इसका अर्थ यह नहीं है कि देश को इन शिक्षकों को उनके हाल पर छोड़ देना चाहिए और इन बाधाओं से स्वयं के बल पर ही जूझने देना चाहिए मगर यह भी सत्य है कि ये कड़वी वास्तविकताएँ समय के साथ धीरे-धीरे ही बदलेंगी । तब तक हरेक व्यक्ति के अपनी क्षमताओं के अनुरूप अपने तात्कालिक क्षेत्र में किए गए कार्य में सुधार ला सकते हैं ।
जिस तरह हम विशिष्ट मामलों में शिक्षक की भूमिका को महत्वपूर्ण मानते हैं, उसी तरह यह शिक्षा प्रणाली के हर स्तर के लिए लागू होता है । जिन ब्लॉक्स या तालुके में कई विसंगतियों के बाद भी ब्लॉक शिक्षा अधिकारी अपनी भूमिका को बेहतर तरीके से निभा रहे होते हैं, वे बेहतर प्रदर्शन करते नज़र आते हैं, उनके मुकाबले अन्य ब्लॉक उतना बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाते ।
पिछले 20 वर्षों में हमने अलग-अलग राज्यों में शिक्षा विभाग के 100 प्रिंसिपल सेक्रेटरी के साथ काम किया। उनमें से कम से कम 10 ऐसे हैं, जिन्होंने अपने कार्यकाल में अपने राज्य में शिक्षा के स्तर में उल्लेखनीय सुधार सुनिश्चित किए। अन्य 10 से 20 ने सुधार के बेहतर प्रयास किए और सफल भी हुए । और ये सभी उसी तरह के राजनैतिक दबाव, फंड की कमी और खराब कार्य संस्कृति के बीच काम कर रहे थे ।
विद्यमान बाधाओं के बीच भी विचारपूर्वक लिए गए निर्णय और समस्या समाधान का कौशल न केवल सामाजिक क्षेत्र या सरकारी कार्यप्रणाली के क्षेत्र में वरन व्यापार से लेकर शोध तक के समस्त संस्थानों की कार्यप्रणाली में महत्वपूर्ण सुधार ला सकते हैं ।
हमें समाज के हर क्षेत्र में संरचनागत परिवर्तन आवश्यक रूप से करने होंगे, मगर अपने प्रभाव क्षेत्र में बदलाव लाने के लिए सतत प्रयास करने के महत्त्व को भी हमें कम नहीं आँकना चाहिए ।
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