लल्जाशंकर हरदेनिया
दुनिया के सर्वाधिक सम्पन्न और लोकतांत्रिक कहे जाने वाले देश अमरीका में वहां के अश्वेत नागरिकों के साथ जैसा व्यवहार हो रहा है, उसकी एक बानगी अभी डेढ हफ्ते पहले अमरीकी शहर मिनियोपोलिस में देखने को मिली। वहां एक आम अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक जार्ज फ्लॉयड को एक दुकान में उस मामूली चोरी के अपराध में दबोच कर मार दिया गया जो उसने ‘कोविड-19’ के चलते लगे लॉकडाउन में भूख के कारण की थी। इस दुर्घटना के विरोध में अमरीका के करीब 40 शहरों में प्रदर्शन, धरना और आंदोलन जारी हैं। कहा जा रहा है कि यह देशव्यापी विरोध-प्रदर्शन अफ्रीकी मूल के नागरिकों के आंदोलनों की याद दिला रहा है। प्रस्तुत है, साठ के दशक के इस आंदोलन में उसके नेता मार्टिन लूथर किंग (जूनियर) के ऐतिहासिक भाषण पर आधारित लज्जाशंकर हरदेनिया का यह लेख।
25 मई 2020 को पुलिसकर्मी ने जिस क्रूर तरीके से अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक जार्ज फ्लॉयड को मारा है उससे लगता है कि अमरीका के अश्वेतों को आज भी पुलिस के जुल्मों से मुक्ति नहीं मिली है। इस समय अमरीका में जो व्यवहार अश्वेतों के साथ हो रहा है उससे लगता है कि करीब छह दशक बाद, 1963 के विशाल प्रदर्शन के बाद से आज तक अश्वेतों की स्थिति में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया है।
वर्ष 1963 में अगस्त 29 को अमरीका की राजधानी वाशिंगटन में इसी तरह के मुद्दों को लेकर एक बड़ा प्रदर्शन हुआ था। प्रदर्शन का नेतृत्व मार्टिन लूथर किंग (जूनियर) कर रहे थे। प्रदर्शनकारियों की मांग थी ‘हमें सम्मान और काम चाहिए।‘ इस प्रदर्शन में दो लाख लोग शामिल हुए थे। प्रदर्शनकारियों में अश्वेत और श्वेत दोनों शामिल थे। अश्वेत 90 प्रतिशत और श्वेत 10 प्रतिशत थे।
प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए मार्टिन लूथर किंग (जूनियर) ने जो भाषण दिया था उसे बीसवीं सदी में दिए गए सबसे ऐतिहासिक भाषणों में शामिल किया गया है। 20वीं सदी के ऐतिहासिक भाषणों का संग्रह ब्रिटेन के प्रभावशाली दैनिक ‘मेनचेस्टर गार्जियन‘ ने प्रकाशित किया है। इस संग्रह में अन्य लोगों के अलावा भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू का भाषण भी शामिल है। मार्टिन लूथर किंग (जूनियर) ने अपने भाषण में अश्वेतों अर्थात नीग्रो लोगों की आर्थिक एवं राजनीतिक दुदर्शा की चर्चा की थी।
मार्टिन लूथर किंग (जूनियर) ने अपने भाषण में बार-बार कहा था ‘आई हैव ए ड्रीम‘ अर्थात मेरा एक सपना है। अपने भाषण के प्रारंभ में उन्होंने कहा था कि ‘‘हम से पूछा जा रहा है कि इतनी बड़ी संख्या में तुम वाशिंगटन क्यों आए हो। हमसे पूछा जा रहा है कि तुम कब संतुष्ट होगे। हमारा उत्तर है, हम उस दिन संतुष्ट होंगे जब हमें पुलिस की ज्ञात और अज्ञात ज्यादतियों से मुक्ति मिलेगी।‘‘
मार्टिन लूथर किंग (जूनियर) ने आगे कहा था कि ‘‘हम उस दिन संतुष्ट होंगे जब प्रत्येक स्थान पर यह चेतावनी कि ‘यह स्थान सिर्फ श्वेतों के लिए है‘ हटा दी जाएगी। मुझे ज्ञात है कि आप किन मुसीबतों का सामना करते हुए यहां आए हैं। आप में से कई सीधे जेल से यहां आए हैं। ‘‘मार्टिन लूथर किंग ने कहा कि ‘‘मेरा सपना है कि वह दिन जरूर आएगा जब पूर्व के गुलाम और गुलामों के मालिकों की संतानें एक साथ, एक ही टेबिल पर बैठकर खाएंगे। मेरा सपना है कि वे सारे स्थान जहां अन्याय व्याप्त है आजादी और न्याय के स्थल बन जाएंगे। मेरा सपना है कि मेरे चारों बच्चे उनकी चमड़ी के रंग से नहीं वरन् उनकी प्रतिभा और चरित्र से जाने जाएंगे। मेरा सपना है कि अलबामा में अश्वेत और श्वेत बच्चे हाथ में हाथ डालकर पढ़ेंगे और खेलेंगे।
‘‘मेरा सपना है कि हमारे बीच का भेदभाव एक दिन मधुर संगीत में बदल जाएगा। मेरा सपना है कि वह दिन शीघ्र आएगा जब हम मिलकर काम करेंगे, जब हम मिलकर प्रार्थना करेंगे, जब हम मिलकर संघर्ष करेंगे, जब हम मिलकर जेल जाएंगे, आजादी और स्वतंत्रता के लिए मिलकर मैदानी लड़ाई लड़ेंगे। मेरा सपना है कि हम मिलकर गाएंगे कि हमारा यह देश और महान बने, मेरा सपना है कि पूरे देश के हर कोने से आजादी की हवाएं बहें और सबका बराबर से स्पर्श करें। मेरा सपना है कि हर गांव, हर झोपड़े से आजादी के गीत सुनाई दें और अमरीका का प्रत्येक नागरिक, ईश्वर की हर संतान-श्वेत, अश्वेत, यहूदी, कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट – हाथ-में-हाथ डालकर चलें और प्राचीन नीग्रो गीत गाए ‘फ्री एट लास्ट, फ्री एट लास्ट, थैंक गॉड आलमायटी, वी आर फ्री एट लास्ट।‘‘
आज अमरीका में जो कुछ हो रहा है उससे ऐसा लगता है कि मार्टिन लूथर किंग के सभी सपने अधूरे हैं। आज अमरीकी राष्ट्रपति यह कहता है कि यदि प्रदर्शनकारी ‘व्हाइट हाऊस’ के और पास आएंगे तो मैं उनपर खूंखार कुत्ते छोड़ दूंगा। वह धमकी देता है कि यदि प्रदर्शनकारी शांत नहीं हुए तो मैं सेना भेजूंगा, जो अपने गर्वनरों से कहता है कि तुम मूर्ख हो, तुम क्यों प्रदर्शनकारियों पर नियंत्रण नहीं कर पा रहे हो।
प्रदर्शनकारियों के समर्थन में लंदन, पेरिस, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के अन्य देशों में प्रदर्शन हो रहे हैं। अमेरिका के ही पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा उनका समर्थन कर रहे हैं। ओबामा ने उन प्रदर्शनकारियों की निंदा की है जो तोड़फोड़, लूटपाट और हिंसा कर रहे हैं।
हम भारत में क्या कर रहे हैं, यह सोचने की बात है। अश्वेतों के हितों की लड़ाई लड़ते हुए सन् 1968 में मार्टिन लूथर किंग (जूनियर) की हत्या कर दी गई थी। अश्वेतों के अधिकारों के लिए अभियान चलाने के पहले वे भारत आए थे – यह जानने के लिए कि अहिंसक आंदोलन कैसे संचालित होते हैं। भारत प्रवास के दौरान उन्होंने महात्मा गांधी की कार्यप्रणाली को समझा था। (सप्रेस)
श्री लल्जाशंकर हरदेनिया मानव अधिकार कार्यकर्त्ता और वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं।