विश्वभर के विभिन्न देशों, समाजों में नववर्ष मनाने की अपनी-अपनी भिन्न-भिन्न परम्पराएं हैं। साल के समाप्त होने और नए साल के शुरु होने के उत्सव कैसे मनाए जाते हैं? प्रस्तुत है विभिन्न देशों में नववर्ष मनाने की झलकियां।
विश्व में कई देशों में एक जनवरी को नववर्ष के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। भारत में भी इस दिन आतिशबाजी और बड़ा जश्न किया जाता है। कई लोग नए वर्ष के लिए नए-नए संकल्प लेते हैं और उन्हें पूरा करते हैं। वहीं कुछ लोग इसे बीते वर्ष से सीखने और जीवन में सकारात्मक बदलाव करने के अवसर के रूप में मनाने लगे हैं। इस नए वर्ष 2022 पर भी सभी की यही मनोकामना होगी कि नया साल खुशियां लेकर आए और कोरोना महामारी का अंत हो जाए।
नववर्ष उत्सव करीब 4,000 वर्ष पहले से बेबीलोन में मनाया जाता था, किन्तु उस समय यह त्यौहार 21 मार्च को मनाया जाता था जो कि वसंत के आगमन की तिथि भी मानी जाती थी। रोम के शासक जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व 45वें वर्ष में जब जूलियन कैलेंडर की स्थापना की, उस समय विश्व में पहली बार एक जनवरी को नए वर्ष का उत्सव मनाया गया। ऐसा करने के लिए जूलियस सीजर को पिछला वर्ष, यानि, ईसा पूर्व 46 ईस्वी को 445 दिनों का करना पड़ा था जिसमें एक वर्ष में 310 दिन थे।
बाद में जूलियस सीजर ने खगोलविदों से पता लगाया कि पृथ्वी 365 दिन और छह घंटे में सूर्य की परिक्रमा लगाती है। इसे ध्यान में रखते हुए जूलियन कैलेंडर में साल में 310 की जगह 365 दिन किये गये। बचे हुए 6 घंटे को ‘लीप ईयर’ का नाम दिया गया। हर 4 साल में ये 6 घंटे मिलकर 24 घंटे हो जाते हैं, यानी एक दिन। इसे देखते हुए हर चौथे साल फरवरी को 29 दिन का किया गया और इस साल को ‘लीप ईयर’ कहने लगे। नए वर्ष का उत्सव पूरे विश्व में कुछ जगहों पर अलग-अलग तिथियों पर मनाया जाता है। हर जगह इसका अपना विशेष महत्व और विशेष परंपरा होती है।
हिन्दुओं का नया साल चैत्र नव रात्रि के प्रथम दिन यानी गुड़ी पड़वा से प्रारम्भ होता है, जबकि इस्लामिक कैलेंडर का नया साल मुहर्रम होता है। जैन नववर्ष एवं गुजराती नववर्ष दीपावली का दूसरा दिन होता है। पंजाब में नया साल बैशाखी नाम से 13 अप्रैल को मनाया जाता है। सिख नानकशाही कैलंडर के अनुसार 14 मार्च होला मोहल्ला नया साल होता है। इसी तिथि के आसपास बंगाली तथा तमिल नववर्ष भी आते हैं। तेलुगु नया साल मार्च-अप्रैल के बीच आता है। इस तरह हमारे देश में ही अलग-अलग जाति या धर्म के लोग अपने नए वर्ष का उत्सव अपने-अपने तरीके से मनाते हैं एवं इसका स्वागत करते हैं।
जापान में नव वर्ष 29 दिसम्बर की रात से 3 जनवरी तक मनाया जाता है। इस पर्व को याबुरी नाम से जाना जाता है। जापानियों का मानना है कि साफ़ घर में सुख और समृद्धि आती है इसलिए वे इस पर्व पर दीपावली की तरह साफ-सफाई करना पसंद करते हैं। इस त्यौहार पर वे साल की अंतिम रात को 12 बजे मंदिर की घंटियों को 108 बार बजाते हैं। म्यांमार में नववर्ष के उत्सव को ‘तिजान’ कहते हैं जो अप्रैल के मध्य में तीन दिन तक मनाया जाता है।
कोरिया में भी अधिकांश लोग सौर वर्ष को ही नया साल मनाते हैं जिसे ‘सोल-नल’ कहा जाता है। इससे एक दिन पहले, फूस से बुनी हुई छलनियाँ, जिन्हें ‘बुक जोरी’ कहते हैं, दरवाज़ों पर टाँगी जाती हैं। यह घर को बुरी नज़र से बचाती हैं। यहां के लोग पांच रंगों से सजे नए कपड़े पहनते हैं जिन्हें ‘सोल-बिम’ कहा जाता है।
दक्षिण अमेरिका व कोलंबिया में नया वर्ष अनोखे ढंग से मनाया जाता है। ‘अनो न्यूइवो’ याने बीते साल का पुतला घर के सभी सदस्यों के कपड़े मिलाकर बनाया जाता है। फिर इसे अख़बार और काग़़जों से भरा जाता है एवं रंग-बिरंगे कागज़ और पटाखों से सजाया जाता है। एक कागज़ पर अपने नापसंद काम या दुर्भाग्य, बुराइयों के बारे में लिखकर इस पर चिपकाया जाता है ताकि इस पुतले के साथ उनका भी नाश हो जाए। ठीक रात के बारह बजे ‘अनो न्यूइवो’ को जलाया जाता है।
थाइलैंड में नए साल का त्यौहार 13 से 15 अप्रैल तक मनाया जाता है। यहां नए साल के त्यौहार को “सोन्गक्रान’ कहते हैं। इसमें सब लोग एक दूसरे पर पानी छिड़कते हैं। रूस में तीन सौ साल पहले पीटर प्रथम ने नए साल का पौधा लगाया था और ऐलान किया था कि हर साल पहली जनवरी को नए साल का त्यौहार मनाया जाएगा। यहां 13-14 जनवरी की रात में नया साल दुबारा मनाया जाता है। इसे “पुराना नया साल” कहा जाता है। स्पेन में नए वर्ष में रात्रि के 12 बजे के बाद एक दर्जन ताज़े अंगूर खाने की परंपरा है। इस तरह विभिन्न धर्मों, समुदायों या राष्ट्रों में नए वर्ष को लेकर तरह-तरह की मान्यताएं, परम्पराएं एवं महत्व हैं, किन्तु इन सभी में नववर्ष का आगमन खुशी के साथ किया जाता है एवं गुजरने वाले वर्ष के साथ बुरी चीजों के अंत को स्वीकार किया जाता है। (सप्रेस)
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