सचिन श्रीवास्तव

आए दिन आंतरिक सुरक्षा के लिए जिम्मेदार पुलिस और तरह-तरह के सुरक्षा बल आम निरपराध नागरिकों को प्रताडित करने, उन पर बेवजह गोली चलाने और उन्हें गिरफ्तार करने के आरोपों का सामना करते रहते हैं। ऐसे में क्या उन्हें और ताकत देना उचित होगा? देश के कई राज्‍यों में पुलिस कमिश्‍नर सिस्‍टम लागू है। इनमें पंजाब, हरियाणा, ओड‍िशा और राजस्‍थान शामिल है। शहरों की बात करें तो देश के 77 शहरों में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू है। अब इसमें मध्‍यप्रदेश का नाम भी जुड गया है।

मध्यप्रदेश में पुलिस कमिश्नर प्रणाली का जिन्न फिर बोतल से बाहर आ गया है। बीते माह मुख्यमंत्री ने इंदौर और भोपाल में कमिश्नर प्रणाली लागू करने के अपने इरादे को सार्वजनिक किया था। इसके साथ ही प्रशासनिक हलकों में सुगबुगाहट तेज हो गई थी। ‘इंडियन पुलिस सर्विसेस’ (आईपीएस) और ‘इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसंस’ (आईएएस) के बीच इसे लेकर पहले भी तलवारें तनी थीं और अब फिर बाकायदा लॉबिंग शुरू हो गई है।

जाहिर है कि ‘पुलिस कमिश्नर प्रणाली’ के लागू होने से आईएएस लॉबी के कई अधिकार आईपीएस अधिकारियों के हाथों में चले जाएंगे। यानी जो काम अभी आईएएस संचालित प्रशासन के हाथों में हैं, वे आईपीएस नेतृत्व वाली पुलिस के पास पहुंच जाएंगे। इस मायने में देखें तो यह पुलिस सुधार तो कतई नहीं हैं। पुलिस सुधार के नाम पर कुछ अधिकारियों को और ज्यादा अधिकार देने की यह कार्रवाई असल में आईएएस के तो सिर्फ हाथ तंग करती है, जबकि पुलिसकर्मियों के लिए सिरदर्द हो जाती है।

अगर सरकार को पुलिस व्यवस्था में सुधार करना ही है, तो पुलिसकर्मियों के काम के घंटे, छुट्टियां, नियुक्ति, वेतन-विसंगति, पढ़ाई और ‘नेतृत्व क्षमता विकास’ के साथ कार्यप्रणाली में आमूलचूल सुधार की लंबे समय से प्रतीक्षारत मांगों पर ध्यान देना चाहिए। पुलिस का काम करने का ढंग लोकतांत्रिक और मूल्यों पर आधारित हो, इसके साथ ही वह संवैधानिक अधिकारों के प्रति सचेत हो, इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कुछ सुझाव दिए थे। कुछ राज्यों ने इन पर अमल करने के लिए आयोग और समितियों का गठन भी किया, लेकिन उन आयोगों, समितियों की रिपोर्ट्स या तो आई ही नहीं, या फिर विधानसभाओं के पटल पर गोते खाती रहीं।

इस प्रणाली की अच्छाई—बुराई एक तरफ, लेकिन इसके लागू होने में बड़ी दिक्कत मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की इच्छा का इरादे में तब्दील न हो पाना भी है। आईपीएस लॉबी के प्रजेंटेशन आदि ने मुख्यमंत्री की इच्छा को तो झकझोरा है, लेकिन यह इरादा नहीं बन पाई है, वरना एक महीने की घोषणा के बाद भी इसे न कर पाने का कोई ठोस कारण नहीं है। इसकी बड़ी वजह यह भी है कि मुख्यमंत्री के सलाहकार और वल्लभ भवन के ताकतवर अफसरों ने कमिश्नर प्रणाली के विरोध पर अपने स्वर तीखे किए हुए हैं। आईएएस लॉबी के कई दिग्गज खुलकर कमिश्नर प्रणाली का विरोध कर ही रहे हैं, तो ऐसे में मुख्यमंत्री अपने करीबी अफसरों की नाराजगी मोल लेकर पुलिस के हाथ मजबूत नहीं करना चाहते। हालांकि इसमें कतिपय दिग्गज भाजपाई मंत्रियों के अधिक ताकतवर बनने का अंदेशा भी शिवराज सिंह को सता रहा है।

फिलहाल जिस कमिश्नर प्रणाली को लागू करने की बात कही जा रही है, उसके प्रमुख बदलावों पर नजर डालते ही साफ हो जाता है कि यह महज अधिकारों का बंटवारा है। कमिश्नर प्रणाली के लागू होते ही पुलिस को ‘दंड प्रक्रिया संहिता’ यानी ‘सीआरपीसी’ की कुछ धाराओं पर सीधे कार्रवाई के अधिकार मिल जाते हैं। इनमें धारा-107, 116, 144 और 151 प्रमुख हैं। फिलहाल ये धाराएं एसडीएम के कार्यक्षेत्र में आती हैं। जैसे धारा-107 उस व्यक्ति से संबंधित है, जो किसी अपराध के लिए किसी अन्य को उकसा सकता है, या कि वह जानबूझकर किसी षड्यंत्र में शामिल होता है, या उस षडयंत्र का भागीदार बनता है। ऐसे व्यक्ति को हिरासत में लेने से पहले फिलहाल एसडीएम कोर्ट का आदेश जरूरी होता है, परन्तु पुलिस कमिश्नर प्रणाली में पुलिस सीधे यह कार्य कर सकेगी।

इसी के साथ किसी अपराध के लिए उकसाने से संबंधित धारा-116 भी पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू होने पर सीधे पुलिस के कार्यक्षेत्र में आ जाती है। इन दोनों धाराओं का असर यह होगा कि किसी व्यक्ति को प्रतिबंधित करने के साथ-साथ सार्वजनिक जगहों, सड़कों आदि पर हुए अतिक्रमण को खाली करने में पुलिस सीधे बल प्रयोग कर सकती है। इसका सीधा असर धरना प्रदर्शन करने वाले राजनीतिक दलों और नागरिक समूहों पर पड़ेगा। अभी इन पर कार्रवाई करने के लिए सक्षम प्रशासनिक आदेश की जरूरत होती है। इसी तरह अभी तक धारा-144 लागू करने का अधिकार कलेक्टर के पास है, लेकिन कमिश्नर प्रणाली में यह अधिकार पुलिस के पास आ जाएगा। शांतिभंग की आशंका में किसी व्यक्ति को धारा-151 के तहत गिरफ्तार कर चालान पेश करने का अधिकार भी कमिश्नर प्रणाली में पुलिस के पास आ जाता है। अभी इसके लिए एसडीएम स्तर पर आदेश की जरूरत होती है।

इस प्रणाली में पुलिस कमिश्नर स्वतंत्र रूप से जेल का निरीक्षण कर सकता है। इतना ही नहीं नियमानुसार किसी बंदी को एक सप्ताह तक की पेरोल देने का अधिकार भी कमिश्नर को मिलता है। शस्त्र लाइसेंस की प्रक्रिया भी आईएएस से हटकर पुलिस कमिश्नर के कार्यक्षेत्र में आ जाती है। कुल मिलाकर पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू होते ही पुलिस पूरी तरह एक नए मंत्रालय की तरह कार्य करने लगती है और इसका मुखिया कमिश्नर होता है, जो सीधे गृहमंत्री और मुख्यमंत्री को रिपोर्ट करता है।

इस प्रणाली का विरोध कर रही आईएएस लॉबी के अलावा राजनीतिक समूहों और नागरिक समूहों में भी बेचैनी है, जो जानती हैं कि कमिश्नर प्रणाली लागू होने पर राजनीतिक प्रदर्शनों, जुलूसों आदि पर पुलिस का डंडा चलना तेज हो जाएगा। मौजूदा निजाम में यूं भी सरकार के विरोध की बहुत ज्यादा गुंजाइश नहीं बची है, ऐसे में व्यवस्था के नाम पर पुलिस को अपनी ताकत दिखाने की छूट भी मिल सकती है। ऐसी आशंकाओं के कई पत्र मुख्यमंत्री के पास पहुंचे हैं और इस कारण चुनावी आहटों और कई अन्य योजनाओं को अमलीजामा पहनाने में व्यस्त मुख्यमंत्री ने कमिश्नर प्रणाली को फिलहाल ‘होल्ड’ पर रखा हुआ है। इस बीच खबर यह भी है कि कई अधिकारियों ने इसके विरोध में अपना स्वर बुलंद करते हुए मुख्यमंत्री से मिलने का समय मांगा है, तो कई ने अपनी नाराजगी से सीधे मुख्यमंत्री को अवगत भी करा दिया है।

कुल मिलाकर, पुलिस सुधार के नाम पर प्रशासनिक ताकत को आईपीएस लॉबी को सौंपने की यह कवायद फिलहाल किसी सिरे चढ़ती नहीं दिख रही है। फिलहाल मुख्यमंत्री और उनके सिपहसालार राजनीतिक नफे नुकसान में इस पूरी कवायद को तौल रहे हैं। देखते हैं पलड़ा किस तरफ झुकता है। (सप्रेस)

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