तुलसी-कृत ‘रामचरित मानस’ के ‘किष्किंधा कांड’ में अनूठा प्रकृति चित्रण करते हुए तुलसी बाबा ‘दामिनी’ यानि तडित या बिजली का वर्णन भी करते हैं। क्या है यह, ‘दामिनी?’ मानसून के मौसम में गिरती बिजली देखना आम बात है, लेकिन यह बिजली क्यों, कैसे, कितने प्रभाव के साथ गिरती है, यह जानना दिलचस्प होगा।
पिछले दिनों हरिद्वार में आकाशीय बिजली गिरने की घटना हुई जिसमें गंगातट पर मुख्य धार्मिक केंद्र हर की पौड़ी स्थित भवनों को काफी नुकसान हुआ। देश में मानसून के आरंभिक दौर में आकाशीय बिजली का प्रकोप पिछले कई दिनों से जारी है। आकाशीय बिजली एक प्राकृतिक आपदा है। बरसात के समय आसमान में विपरीत ऊर्जा के बादल हवा से उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं और विपरीत दिशा में जाते हुए टकराते हैं। इससे होने वाले घर्षण से बिजली पैदा होती है। आसमान में किसी तरह का कंडक्टर न होने से यह बिजली कंडक्टर के लिए धरती पर पहुंचती है। जब यह आकाशीय बिजली लोहे के खंभों, पेड़ आदि के आसपास से गुजरती है तो वह कंडक्टर का काम करता है। उस समय यदि कोई व्यक्ति या पशु उसके संपर्क में आता है तो उसकी जान जा सकती है।
आकाशीय बिजली से मारे जाने वालों में सबसे ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रों के लोग और मवेशी होते हैं। कहा जाता है कि हमारे देश में हर साल आसमानी बिजली की चपेट में आने से करीब तीन से साढ़े तीन हजार लोगों की मौत हो जाती है। दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले भारत में खेतों या खुले में काम करने वाले लोगों की तादाद बहुत ज्यादा है। इससे यहां आसमानी बिजली की चपेट में आने वालों की तादाद बढ़ जाती है। ‘राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो’ (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2014 में 2,582 लोग बिजली गिरने से मारे गये थे, जबकि 2013 में 2,833 लोग इसके शिकार हुए थे।
बिजली गिरने की सबसे ज्यादा घटनाएं भारत में जून के महीने में होती है। ये प्री-मानसून का महीना होता है और कुछ समय में ही मानसून दस्तक देने वाला होता है। मानसून की दस्तक के साथ ही आंधी-तूफान भी अधिक संख्या में बनने लगते हैं। पिछले दिनों अमेरिका की ‘साइंस’ पत्रिका में प्रकाशित एक शोध का हवाला देते हुए प्रकाशित खबर में बताया गया है कि तापमान बढ़ने के साथ ही आंधी-तूफान ज्यादा आएंगे। बिजली गिरने की घटनाओं में भी इजाफा होगा। रिपोर्ट के अनुसार ‘यदि तापमान एक डिग्री बढ़ता है, तो बिजली गिरने की घटनाओं में 12 प्रतिशत का इजाफा होगा।‘
अप्रैल से जुलाई के बीच की चार महीने की अवधि में आकाशीय बिजली के गिरने के कारण कम-से-कम 1,311 लोगों की मौत हुई हैं। इन घटनाओं में उत्तर प्रदेश (224 मौतें) शीर्ष पर है, इसके बाद बिहार (170), ओडिशा (129) और झारखंड (118) का स्थान है। यह रिपोर्ट ‘क्लाइमेट रेज़िलिएंट ओब्जर्विंग सिस्टम प्रमोशन काउंसिल’ द्वारा तैयार की गयी है।
पिछले दिनों ‘पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय’ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 1951 से 2015 के बीच जलवायु परिवर्तन के कारण वार्षिक औसत से अधिकतम तापमान में 0.15 डिग्री, जबकि न्यूनमत तापमान में 0.13 डिग्री सेल्सियस का इजाफा हुआ है। दरअसल स्थानीय स्तर पर मौसम गर्म हो जाता है, जिसके चलते ‘कनवेक्टिव’ बादल बनते हैं। इन बादलों मे आकाशीय बिजली होती है। ये बादल जब बंगाल की खाड़ी से आने वाली नमीयुक्त हवाओं के संपर्क में आते हैं, तो बारिश होती और बिजलियां गिरती हैं। ऐसे समय में अब हमारे लिए जलवायु परिवर्तन रोकने के प्रयासों को गंभीरता से करना बेहद जरूरी हो गया है।
प्रसिध्द वैज्ञानिक सीएफ वाग्नर और जीडी मैककैन ने अपने शोध अध्ययन में बतलाया है कि बादलों के विभव प्राय: दो करोड़ वोल्ट की कोटि के होते है। सिंपसन और स्क्रेज ने प्रयोगों द्वारा यह निष्कर्ष प्राप्त किया कि 10,000 फुट की ऊँचाई पर स्थित बादलों के विभव का प्राय: 50 से 100 वोल्ट प्रति सेंमी की दर से पतन होता है। तड़ित प्रक्रिया के बीच में विद्युत धारा का मान दो लाख से पंद्रह हजार एंपियर के बीच रहता है। इस प्रचंड धारा के कारण तड़ित के पथ में विद्यमान वायु के अणु और परमाणु आयनित हो जाते हैं और प्रकाश उत्पन्न करते हैं। यही चमक हमें दामिनी के रूप में दिखलाई पड़ती है।
यह स्पष्ट है कि वायु से होकर बादलों और पृथ्वी के बीच विद्युत विसर्जन वहीं अधिक संभव होगा जहाँ विद्युत को वायु का प्रतिरोध कम-से-कम पार करना पड़ेगा। इसलिये ऊँची मीनारों, ऊँचे भवनों, एकाकी वृक्ष (चाहे मैदान में हों या पहाड़ी पर) तथा पताकादंड इत्यादि पर तड़ितपात अधिकतर होता है। इसका एक कारण यह भी है कि कोई वस्तु बादल से जितनी निकट होगी, उस पर उतना ही अधिक आवेश उत्पन्न होगा। इसके अतिरिक्त सपाट मैदान की अपेक्षा मीनारों, वृक्षों की चोटियों आदि के नुकीले होने के कारण उन पर विद्युत आवेश अधिक मात्रा में एकत्र होता है।
भवनों को तड़ित के सीधे आघात से बचाने के लिये अमेरिकी वैज्ञानिक बेंजामिन फ्रैंकलिन द्वारा विकसित तड़ित चालक व्यवस्था श्रेष्ठ है। इसमें लोहे का एक छड़, जिसका ऊपरी सिरा भाले की भाँति नुकीला होता है, जो भवन के काफी ऊपर तक निकला रहता है, भवन के पास होता हुआ भूमि के अंदर काफी गहराई तक गड़ा रहता है। निचला सिरा भूमि में ताँबे की एक पट्टिका में लगा होता है। यह तड़ित चालक बादल में विद्यमान तड़ित के लिए न्यूनतम प्रतिरोध का मार्ग ही प्रशस्त नहीं करता, प्रत्युत यह भवन पर उत्पन्न प्रेरित विद्युतावेशों को तत्काल पृथ्वी के अंदर पहुँचा देता है। इस प्रकार यह बादलों और भवन के बीच आवेशों के पारस्परिक आकर्षण की संभावना भी पर्याप्त घटा देता है। आजकल तड़ित नियंत्रण संबंधी अनेक प्रयोग किए जा रहे हैं।
भारत में आकाशीय बिजली गिरने संबंधी घटनाओं पर अपनी तरह की पहली रिपोर्ट के अनुसार, इस वर्ष अप्रैल से जुलाई के बीच की चार महीने की अवधि में आकाशीय बिजली के गिरने के कारण कम-से-कम 1,311 लोगों की मौत हुई हैं। इन घटनाओं में उत्तर प्रदेश (224 मौतें) शीर्ष पर है, इसके बाद बिहार (170), ओडिशा (129) और झारखंड (118) का स्थान है। यह रिपोर्ट ‘क्लाइमेट रेज़िलिएंट ओब्जर्विंग सिस्टम प्रमोशन काउंसिल’ द्वारा तैयार की गयी है।
यह रिपोर्ट एक डेटाबेस बनाने के प्रयास का एक हिस्सा है जो आकाशीय बिजली के गिरने के संबंध में चेतावनी प्रणाली विकसित करने, जागरूकता फैलाने और इससे होने वाली मौतों को रोकने में मदद कर सकता है। इस संबंध में यह प्रयास किया जा रहा है कि एक ऐसी प्रणाली को विकसित किया जाए जिसकी सहायता से घटना के घटित होने के तकरीबन 30-40 मिनट पहले इस विषय में भविष्यवाणी की जा सके।
देश में आकाशीय बिजली चमकने और गिरने का पूर्वानुमान करने के लिए मौसम विभाग की ओर से गत वर्ष देश के चुनिंदा 20 जगहों में ‘सेंसर ट्रैक’ प्रणाली स्थापित की गई। हालांकि मौसम विभाग अभी आकाशीय बिजली गिरने की कोई चेतावनी जारी नहीं करता है। पर्यावरण विज्ञानियों का कहना है कि भारत को बांग्लादेश की तरह बिजली आघात से बचने के लिए ताड़ के वृक्ष लगाने की योजना बनानी चाहिए। बांग्लादेश ने बिजली गिरने से होने वाली मौतों को कम करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में ताड़ के वृक्ष लगाने शुरू किए, जिससे अच्छे परिणाम मिले हैं। दरअसल ताड़ का पेड़ बहुत ऊंचा होता है। कोई भी जीवित पेड़ विद्युत का अच्छा संवाहक होता है। ताड़ के पेड़ में मौजूद पानी, बिजली को जमीन में ले जाने का माध्यम बन जाती है। इस तरह यह पेड़ आकाशीय बिजली को जमीन पर फैलने से रोकते हैं और बिजली के करंट को अवशोषित कर इसे जमीन के अंदर गहराई में पहुंचा देते हैं। इस कारण बिजली ताड़ के पेड़ पर पहले गिरती है।
पुणे स्थित ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मिटीरियोलॉजी’ ने आकाशीय बिजली गिरने से होने वाली दुर्घटनाओं से निपटने के लिए पिछले साल देश के विभिन्न हिस्सों में 48 सेंसर्स के साथ एक ‘लाइटनिंग लोकेशन नेटवर्क’ स्थापित किया था। यह नेटवर्क बिजली गिरने और तूफान की दिशा की जानकारी देता है। हर साल ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन’ लोगों को इससे बचने के उपाय बताकर जागरूक करता है। इस अभियान के अंतर्गत जनसामान्य को बताया जाता है कि अगर आसमान में बिजली कड़क रही है और आप घर के बाहर हैं तो सबसे पहले सुरक्षित जगह तक पहुंचने का प्रयास करें। तुरंत पानी, बिजली के तारों, खंभों, हरे पेड़ों और मोबाइल टावर आदि से दूर हट जाएं। खुले आसमान में हो तो अपने हाथों को कानों पर रख लें, ताकि बिजली की तेज आवाज से कान के पर्दे न फट जाएं। अपनी दोनों एडियों को जोड़कर जमीन पर पर उकड़ू बैठ जाएं। इस प्रकार काफी हद तक आकाशीय बिजली से बचाव हो सकता है। (सप्रेस) http://www.spsmedia.in
Nice article
तथ्यात्मक लेख सुन्दर प्रस्तुति