सरकार को चाहिए कि किसानों की मांगे स्वीकार करे और देश में एक शांतिमय-सद्भावपूर्ण माहौल बनाने की पहल करे। अब समय आ गया है कि वर्तमान राज्य सत्ता और सरकारी तंत्र अतीत के साम्राज्यवादी शासनतंत्र की प्रेत-छाया से मुक्त होकर ‘गण’ की महत्ता को स्वीकार करें; मात्र चुनाव के समय वोट के लिए नहीं, शासन-प्रशासन के संचालन में भी निरतर !
रामचन्द्र राही
करीब दो महीने से दिल्ली की सीमाओं पर, इस हाड़ कंपाती ठंड में भी हजारों-हजार किसान नये कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग के साथ शांतिमय धरना दिये बैठे थे। यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं है कि किसानों का इतने बड़े पैमाने पर और इतने दिनों से शांतिमय धरना-सत्याग्रह का यह एक नया इतिहास हमारे सामने घटित हो रहा है, रचित हो रहा है। किसानों की संवेदनशीलता और सरकार की हठधर्मिता के कारण इसमें 150 से अधिक किसानों की शहादत भी हो चुकी है।
इसी बीच यह 26 जनवरी आ गयी, जिसे हम गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं। लेकिन शुरु से इस गणतंत्र दिवस पर ‘गण’ का नहीं ‘तंत्र’ का ही शौर्य-प्रदर्शन होता रहा है। ‘गण’ की भूमिका मात्र दर्शक की रही है। लेकिन इस बार किसानों ने इसमें प्रत्यक्ष भागीदारी की ठान ली और ‘टैक्टर परेड’ निकालने का निश्चय कर लिया। इस मुद्दे पर सरकारी तंत्र से टकराव की स्थिति न आये, इस दृष्टि से एक आपसी (सरकार एवं किसान संगठनों के बीच) समझौता भी हो गया। हजारों किसान दूर-दराज से अपने ट्रैक्टरों के साथ दिल्ली कूच कर दिये। किसान संगठनों की ओर से जो तैयारियाँ की गयीं थीं, उससे उमीद यही थी कि सब कुछ शांतिपूर्ण वातावरण में सम्पन्न हो जायेगा। अधिकांश जगहों पर किसनों की परेड शांतिपूर्ण और सांस्कृतिक माहौल में शुरु हुई और सतर्कता एवं सावधानी के साथ सम्पन्न भी हुई, लेकिन दो-तीन क्षेत्रों में तनावपूर्ण माहौल बना, टकराव हुए, मारपीट और कुछ खून खराबा भी हुआ। एक किसान शहीद भी हुआ। यह सब कैसे हुआ, किसने किया, क्या यह कोई बड़ी साजिश के तहत हुआ, यह तो जाँच के घेरे में है। जाँच कौन करेगा, वह कितनी विश्वसनीय होगी, यह भविष्य बताएगा।
लेकिन किसान संगठनों ने इस घटना के बाद परेड स्थगित कर दी, वापस अपने-अपने धरना-स्थलों पर लौट गये और तोड़-फोड़-हिंसा की घटनाओं की निंदा की, इसके लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़़ी कार्रवाई की मांग की। हिंसा-तोड़-फोड़ की घटनाओं के प्रायश्चित स्वरूप उन्होंने 30 जनवरी को उपवास घोषित किया और 1 फरवरी को आयोजित होने वाले संसद मार्च को भी स्थगित कर दिया। हम बेहिचक कह सकते हैं कि किसान संगठनों नेे शान्तिमय सत्याग्रह के इतिहास एक नया अध्याय रचा।
सरकार को चाहिए कि किसानों की मांगे स्वीकार करे और देश में एक शांतिमय-सद्भावपूर्ण माहौल बनाने की पहल करे। अब समय आ गया है कि वर्तमान राज्य सत्ता और सरकारी तंत्र अतीत के साम्राज्यवादी शासनतंत्र की प्रेत-छाया से मुक्त होकर ‘गण’ की महत्ता को स्वीकार करें; मात्र चुनाव के समय वोट के लिए नहीं, शासन-प्रशासन के संचालन में भी निरतर ! हमारे देश की आत्मा लोकतंत्र में समाहित है, उसे किसी भी समय, किसी भी रूप में, किसी के द्वारा चुनौती दिया जाना, ऐतिहासिक शोकांतिका साबित ही होगी। (सप्रेस)