कोविड-19 के इन दिनों में केन्द्र की जिद पर देशभर में ‘आईआईटी’ प्रवेश-परीक्षा लेने की मारामारी मची है। पश्चिम बंगाल, उडीसा जैसे कई राज्य इन परीक्षाओं को टालने की मांग कर रहे हैं। दूसरी तरफ, विद्यार्थियों के समय बर्बाद होने का भी सवाल है। तो क्या प्रौद्योगिकी संस्थानों में प्रवेश की कोई और विधि हो सकती है? प्रस्तुत है, ‘आईआईटी-कानपुर,’ ‘आईआईटी-गांधीनगर,’ ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय-वाराणसी’ में अध्यापन का अनुभव रखने वाले संदीप पाण्डेय का यह लेख।–संपादक
कोविड महामारी के समय ‘राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी’ द्वारा ‘भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों’ (आईआईटी) व अन्य अभियांत्रिकी संस्थानों में प्रवेश हेतु कराई जाने वाली ‘प्राथमिक संयुक्त प्रवेश परीक्षा’ (मेंस), जिसमें 8,58,273 अभ्यर्थी भाग लेंगे, की तारीखें 1-6 सितंबर, 2020 घोषित करने से देश में एक तीखी बहस छिड़ गई है। इसके बाद एक ‘संयुक्त प्रवेश परीक्षा एडवांस्ड’ भी होगी जिसमें उपर्युक्त अभ्यर्थियों में से चयनित दो से ढाई लाख विद्यार्थी भाग लेंगे और जिसके आधार पर ‘आईआईटी’ व अन्य संस्थानों में दाखिला सुनिश्चित होगा। कुछ छात्रों ने न्यायालय जाकर ‘संयुक्त प्रवेश परीक्षा’ को स्थगित करने की गुहार लगाई है, किंतु न्यायालय ने ‘राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी’ के परीक्षा कराने के निर्णय को ही ठीक माना है। अब छात्र सत्तारूढ ‘भारतीय जनता पार्टी’ व उसके सहयोगी दलों के नेताओं के माध्यम से सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश में हैं, ताकि परीक्षा स्थगित हो सके।
‘आईआईटी’ के कुछ प्रोफेसर कोविड के प्रकोप व खतरे को देखते हुए परीक्षा स्थगित कराना ही ठीक समझते हैं, कुछ का मानना है कि लेना ही है तो दो के बजाए एक चरण में ही परीक्षा ले ली जाए और कुछ रचनात्मक विकल्प भी सुझा रहे हैं, जैसे – ‘आईआईटी-मुम्बई’ के प्रोफेसर कन्नन एम. मौदगल्य ने अपने एक लेख में वकालत की है कि प्रवेश परीक्षा दो वर्ष के लिए स्थगित की जाए, लेकिन तब तक छात्र/छात्रा को अपनी पसंद की शाखा में किसी भी अभियांत्रिकी संस्थान में दाखिला दे दिया जाए और वे अध्ययन के लिए गुणवत्तापूर्ण वीडियो कोर्सों का इस्तेमाल करें।
वर्तमान में भारत में 23 ‘आईआईटी’ हैं। भारत में मुख्य भू-भाग के प्रत्येक राज्य में एक-एक ‘आईआईटी’ है, सिवाय उत्तरप्रदेश के जहां दो हैं। पूरे पूर्वोत्तर व सिक्किम के बीच केवल एक ‘आईआईटी’ गुवाहाटी में है। ‘अखिल भारतीय प्राविधिक शिक्षा परिषद’ द्वारा भारत में मान्यता प्राप्त कुल 3,289 अभियांत्रिकी संस्थानों में प्रवेश के लिए 15,53,809 स्थान हैं। आदर्श स्थिति तो वह होगी कि अभियांत्रिकी की शिक्षा ग्रहण करने के इच्छुक किसी भी अभ्यर्थी को निराश न होना पड़े। ‘संयुक्त प्रवेश परीक्षा’ वर्ष में दो बार होती है। अतः जितने अभ्यर्थी हैं करीब उतने ही स्थान हैं। यानी बिना किसी को ‘अस्वीकर’ किए सभी अभ्यर्थियों को किसी-न-किसी अभियांत्रिकी संस्थान में दाखिला मिल सकता है।
प्रत्येक ‘आईआईटी’ अपने-अपने राज्य व गुवाहाटी स्थित ‘आईआईटी’ पूर्वोत्तर व सिक्किम में सभी अभियांत्रिकी संस्थानों में दाखिला दिलाने की जिम्मेदारी ले सकते हैं। उदाहरण के लिए उत्तरप्रदेश के सभी अभ्यर्थियों को प्रदेश के 296 अभियांत्रिकी संस्थानों के 1,42,972 स्थानों पर दाखिला दिलाने की जिम्मेदारी ‘आईआईटी-कानपुर’ व ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय,’ वाराणसी स्थित ‘आईआईटी’ ले लें। किसी राज्य में यदि अभ्यर्थियों की संख्या ज्यादा है तो वे अपनी पसंद के अन्य राज्यों के रिक्त स्थानों पर दाखिला ले सकते हैं।
यह देखते हुए कि कुल 15,53,809 (जितने स्थान प्रवेश हेतु उपलब्ध हैं) छात्रों को दाखिला दिया जाना है तो प्रत्येक ‘आईआईटी’ को औसतन 67,557 छात्रों की जिम्मेदारी लेनी होगी। यह मानते हुए कि प्रत्येक ‘आईआईटी’ में औसतन 200 अध्यापक हैं, प्रत्येक अध्यापक यदि 338 छात्रों का 15 मिनट का ऑनलाइन साक्षात्कार लेता है और दिन के आठ घंटे इस काम में लगाता है तो लगभग साढ़े दस दिनों में सभी छात्रों का साक्षात्कार पूरा हो जाएगा। इस साक्षात्कार का मुख्य उद्देश्य छात्र/छात्रा की काबिलियत का अंदाजा लगाना है ताकि उसकी क्षमता के अनुसार उसे संस्थान और उसकी रूचि के अनुसार उसे शाखा आवंटित की जा सके। इसमें यह ध्यान रखना होगा कि प्रत्येक संस्थान में आरक्षित स्थानों पर उस श्रेणी के छात्रों का दाखिला भी निर्धारित संख्या में हो जाए। प्रत्येक संस्थान में पर्याप्त लड़कियों का भी दाखिला हो ताकि लिंग अनुपात जितना बेहतर हो सके, बना रहे। ‘संयुक्त प्रवेश परीक्षा(मेंस)’, ‘संयुक्त प्रवेश परीक्षा(एडवांस्ड)’ व अंत में काउंसलिंग द्वारा संस्थान व शाखा के चयन की पूरी प्रकिया का विकल्प यह एक ऑनलाइन साक्षात्कार होगा।
प्रवेश हेतु स्थानों के आवंटन की यह प्रकिया व्यक्ति-परक भी हो सकती है, क्योंकि विभिन्न अध्यापक, विभिन्न संस्थानों में, विभिन्न छात्र समूहों का साक्षात्कार करेंगे। प्रत्येक संस्थान के वेबसाइट पर यह जानकारी सार्वजनिक होगी कि किस अध्यापक ने किन छात्र/छात्राओं को स्थान आवंटित किए हैं तो इस बात की सम्भावना कम है कि किसी अपात्र अभ्यार्थी का चयन किया जाए। यदि कोई संस्थान व्यक्तिगत साक्षात्कार के बजाए अध्यापकों के एक समूह द्वारा निर्णय लेने की प्रक्रिया बेहतर समझता है तो वह वैसा भी कर सकता है, हालांकि इसमें समूह द्वारा साक्षात्कार किए जाने वाले छात्रों की संख्या बढ़ जाएगी। मुख्य बात यह है कि संस्थान के प्रत्येक अध्यापक की भागीदारी हो, ताकि साक्षात्कार की प्रक्रिया का बोझ बांटा जा सके। यदि कोई निर्णय, कहीं गलत भी हुआ है तो उसे साल भर बाद सुधारा जा सकता है। जैसे संस्थान के अंदर प्रथम वर्ष के प्रदर्शन के आधार पर छात्र को शाखा बदलने का मौका मिलता है उसी आधार पर छात्रों को संस्थान बदलने का भी मौका दिया जा सकता है। मसलन – किसी छात्र को यदि शुरू में ‘आईआईटी’ आवंटित नहीं होता तो वह अपनी मेहनत के बल पर एक साल के बाद किसी निजी महाविद्यालय, राज्य अभियांत्रिकी महाविद्यालय अथवा राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान से ‘आईआईटी’ स्थानांतरण करा सकता है। पढ़ाई में किसी कमजोर छात्र के लिए इसकी विपरीत प्रक्रिया भी अपनाई जा सकती है।
इस तरह संसाधन, समय व नौकरशाही की खपत बचेगी। इसके अतिरिक्त छात्र/छात्रा अपने घर के नजदीक स्थित संस्थान में पढ़ पाएंगे, जो शिक्षा में पड़ोस के विद्यालय की अवधारणा की तरह है। देश के प्रत्येक क्षेत्र के छात्र/छात्राओं का उचित अनुपात में दाखिला होगा और कोचिंग संस्थानों द्वारा पैदा किया गया असंतुलन दूर होगा। इसका सबसे बड़ा लाभ यह मिलेगा कि धन उगाहने व छात्रों के लिए अनावश्यक मानसिक बोझ उत्पन्न करने वाले कोचिंग संस्थानों से निजात मिलेगी, जो हाल ही में लोकार्पित ‘नई शिक्षा नीति’ का उद्देश्य भी है। यह शिक्षा के लोकव्यापीकरण के समान है जो हरेक शिक्षाविद का सपना होता है।
प्रोफेसरों की शिकायत कि कोचिंग संस्थानों की मदद से प्रवेश लेने वाले छात्रों की अभियांत्रिकी में रुचि नहीं होती, वे सिर्फ ‘आईआईटी’ का ठप्पा चाहते हैं, ताकि वित्त प्रबंधन जैसी लुभावनी जगह तक पहुंच सकें। अब समय आ गया है कि हम अपने नवजवानों और नवयुवतियों को वह शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रोत्साहित करें जिसमें उनकी रुचि हो, जैसा कि उन देशों में है जहां भारतीय छात्र अध्ययन करने के लिए आकर्षित होते हैं। प्रस्तावित प्रवेश हेतु स्थान की आवंटन प्रक्रिया का कुछ समय तक अध्ययन कर यह देखा जा सकता है कि यदि वह वर्तमान चयन प्रक्रिया से ज्यादा लाभप्रद है तो उसे लम्बे समय में भी अपनाने के बारे में सोचा जाए।(सप्रेस)
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