पिछले हफ्ते बाल विवाह पर दिए गए अपने अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ‘बाल विवाह के कारण स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार और जीवन के अवसरों से वंचित होना समानता, स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक सिद्धांतों का अपमान है।’ जाहिर है, ‘बडी अदालत’ का यह फैसला मील का पत्थर साबित हो सकेगा।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों को सख्त निर्देश देने से देश में बाल विवाह विरोधी अभियानों में अप्रत्याशित तेजी आने की उम्मीद बढ़ गई है। देश की सैकड़ों स्वयंसेवी संस्थाओं ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए कहा है कि बाल विवाह कानून को प्रभावी तरीके से लागू करने के अदालती निर्देश से देश से 2030 तक बाल विवाह के खात्मे के लक्ष्य को पूरी तरह सुनिश्चित करने में काफी मदद मिलेगी।
जीवन साथी चुनने के अधिकार का पूरी तरह से हनन
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बाल विवाह के कारण किसी को भी अपनी मर्जी से जीवन साथी चुनने के अधिकार का पूरी तरह से हनन होता है। बच्चों के इस अधिकार को सुनिश्चित करने में मौजूदा कानून में खामियां हैं, जिन्हें दूर करना जरूरी है। कोर्ट ने कहा है कि बाल विवाह से, खासकर लड़कियों के सामने ज्यादा मुसीबतें आ जाती हैं। शादी के बाद एक नाबालिग लड़की से बच्चों को जन्म देने और प्रजनन क्षमता साबित करने की उम्मीद की जाती है। बच्चे को जन्म देने के निर्णय लड़की से छीन लिए जाते हैं। एक बच्चे के रूप में विवाहित महिला की पसंद और स्वायत्तता का अधिकार बाल विवाह की प्रणाली द्वारा छीना जाता है। बाल विवाह करा कर नाबालिग़ लड़कियों को वैवाहिक संबंध बनाने के लिए मजबूर करने से वे तनाव झेलने को मजबूर होती हैं।
‘बाल विवाह मुक्त भारत’ देश के 400 से अधिक जिलों में बाल विवाह के खात्मे के लिए सक्रिय
गैर-सरकारी संगठन ‘सेवा’ (सेल्फ एम्प्लायड वीमेंस एसोसिएशन) और सामाजिक कार्यकर्ता निर्मल गोराना की याचिका पर आए इस फैसले का दो सौ से अधिक संस्थाओं के संगठन ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ ने स्वागत किया है। ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ से जुड़ी सोलापुर (महाराष्ट्र) की संस्था ‘महात्मा फुले समाज सेवा मंडल’ के प्रमोद झिंझड़े के मुताबिक ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ देश के 400 से अधिक जिलों में बाल विवाह के खात्मे के लिए सक्रिय है। इस गठबंधन से जुड़ी संस्थाओं ने 2023-24 में पूरे देश में 1,20,000 से भी ज्यादा बाल विवाह रुकवाए हैं और 50,000 बाल विवाह मुक्त गांव बनाए हैं।
प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने फैसले में कहा है कि ‘बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम (पीसीएमए) 2006’ के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए सरकार व प्रशासन को बचाव-रोकथाम-अभियोजन रणनीति के साथ समुदाय आधारित दृष्टिकोण से काम करने की जरूरत है। अदालत ने स्कूलों, धार्मिक संस्थाओं और पंचायतों को बाल विवाह के खिलाफ जागरूकता के प्रसार का अहम जरिया बताते हुए बाल विवाह बहुल इलाकों में राज्यों को ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ की अनुशंसा के अनुरूप ‘सेक्स एजुकेशन’ को स्कूली पाठ्यक्रम में जोड़ने की अनुशंसा की है। इस शिक्षा में लैंगिक समानता, प्रजनन स्वास्थ्य अधिकारों और शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर बाल विवाह के प्रभाव के कानूनी पहलुओं के बारे में स्पष्ट जानकारी शामिल होनी चाहिए।
बाल विवाह ऐसा अपराध है जिसने सारे देश को जकड़ रखा है
याचिका में कहा गया था कि देश में बाल विवाह की स्थिति गंभीर है और उसके खिलाफ बने कानून पर अमल नहीं करके उसकी मूल भावना से खिलवाड़ किया जा रहा है। इस पर फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि कानून तभी सफल हो सकता है जब बहुक्षेत्रीय समन्वय हो। कानून प्रवर्तन अधिकारियों के प्रशिक्षण व क्षमता निर्माण की आवश्यकता है। हम एक बार फिर समुदाय आधारित दृष्टिकोण की जरूरत पर जोर देते हैं। बाल विवाह एक ऐसा अपराध है जिसने सारे देश को जकड़ रखा है और इसकी स्पष्ट व्याख्या के लिए सुप्रीम कोर्ट बधाई का पात्र है। साझा प्रयासों से बच्चों के लिए अहितकर बाल विवाह जैसी बुराइयों का पूरी तरह से खात्मा किया जा सकेगा।
अभियान के संस्थापक भुवन ऋभु ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को भारत और पूरी दुनिया के लिए नजीर बताते हुए कहा कि यह ऐतिहासिक फैसला सांस्थानिक संकल्प को मजबूती देने की दिशा में निर्णायक साबित होगा। यह देश से बाल विवाह के समग्र उन्मूलन के लक्ष्य की प्राप्ति के मार्ग की बाधाओं को दूर करने में बहुत सहायक होगा। सुप्रीम कोर्ट ने दिखाया है कि उसे बच्चों की परवाह है और अब समय आ गया है कि हम सभी आगे आएं और साथ मिलकर इस सामाजिक अपराध का खात्मा करें। ऋभु ने कहा, ‘अगर हम अपने बच्चों की सुरक्षा करने में विफल हैं तो फिर जीवन में कोई भी काम मायने नहीं रखता। सुप्रीम कोर्ट ने एक समग्र दृष्टिकोण को मजबूती से अपनाने की जरूरत बताई है। बाल विवाह अपने मूल रूप में बच्चों से बलात्कार है।’
खात्मे के लिए 4.90 करोड़ लोगों को बाल विवाह के खिलाफ ली शपथ
‘बाल विवाह मुक्त भारत’ से जुड़े संगठन इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक समग्र रणनीति ‘पिकेट’ पर अमल कर रहे हैं, जिसमें नीति, संस्थान, संम्मिलन, ज्ञान, परिवेश, तकनीक जैसी चीजें शामिल हैं। अभियान के तहत विभिन्न धार्मिक नेताओं और समुदायों के साझा प्रयासों से इस अपराध के खात्मे के लिए 4.90 करोड़ लोगों को बाल विवाह के खिलाफ शपथ भी दिलाई है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश में कहा गया है कि सरकारें जिला स्तर पर ‘चाइल्ड मैरिज प्रिवेंशन ऑफीसर’ नियुक्त करें। इसके लिए कलेक्टर और एसपी भी जवाबदेह होंगे। उनके पास उन सभी व्यक्तियों पर मुकदमा चलाने का अधिकार और जिम्मेदारी होगी जो बाल विवाह करवाने में मदद देते या उसे संपन्न करते हैं। अपने क्षेत्र में बाल विवाह के मामलों में जानबूझकर कर्तव्यों की उपेक्षा करने वाले सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ सख्त अनुशासनात्मक और कानूनी कार्रवाई की जाए। सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों को बाल विवाह रोकने के लिए एक वार्षिक कार्य योजना विकसित करना चाहिए। व्यक्तिगत जवाबदेही तय करने और बाल विवाह रोकने के लिए राज्य हर 3 महीने में रिपोर्ट अपलोड करें। राज्य के ‘महिला एवं बाल विकास विभाग’ और गृह मंत्रालय इसकी समीक्षा करें।
गांवों और ग्राम पंचायतों को बाल विवाह मुक्त सर्टिफिकेट देने की सिफारिश
अदालत के मुताबिक स्थानीय लोगों के साथ प्रभावी सामुदायिक सहभागिता तकनीक विकसित की जाए। राज्यों के गृह मंत्रालय स्पेशल जूविनाइल पुलिस यूनिट बनाने पर विचार करें। राज्य ‘स्पेशल चाइल्ड मैरिज प्रोहिबिशन यूनिट’ बनाएं जिसमें पांच सामाजिक कार्यकर्ताओं, जिनमें दो महिलाएं जरूर हों, को रखा जाए। मजिस्ट्रेट स्वतः संज्ञान लेकर निर्देश जारी कर सकेंगे। केंद्र राज्य सरकारों के साथ मिलकर ऐसे मामलों के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाएं। बाल विवाह मुक्त गांवों और ग्राम पंचायतों को बाल विवाह मुक्त सर्टिफिकेट दिया जाए। सामुदायिक नेतृत्व को सक्रिय भूमिका के लिए प्रोत्साहित किया जाए। स्कूलों सहित धार्मिक संस्थाओं और पंचायत में जागरूकता कार्यक्रम चलाया जाए। स्थानीय भाषा में प्रभावी होर्डिंग्स और स्लोगन बनाए जाएं।
स्कूलों, पंचायतों और सभी स्थानीय संस्थाओं को ‘चाइल्ड लाइन 1098’ और ‘महिला हेल्पलाइन 181’ की जानकारी दी जाए। बच्चों को बताया जाए कि कैसे मदद ली जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सभी पक्षों को एक साल बाद स्टेटस रिपोर्ट देने को भी कहा है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों, सामाजिक संगठनों की सक्रियता के बीच यह बताना जरूरी है कि ‘बाल विवाह निषेध संशोधन विधेयक 2021’ को 21 दिसंबर 2021 को संसद में पेश किया गया था। विधेयक को शिक्षा, महिला, बाल, युवा और खेल संबंधी विभागों से संबंधित स्थाई समितियों को जांच के लिए भेजा गया था। विधेयक में संशोधन की मांग की गई थी, ताकि विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों पर प्रभाव को स्पष्ट रूप से बताया जा सके। यह विधेयक संसद के समक्ष अभी भी विचाराधीन है। (सप्रेस)
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