अमिताभ पाण्डेय

आज 6 फरवरी है । यह दिन भारत में भी सुरक्षित इंटरनेट दिवस के रूप में मनाया जाता है । इसका उद्देश्य इंटरनेट का उपयोग ज्ञान और मनोरंजन के लिए करने के साथ ही इंटरनेट से होने वाले विभिन्न प्रकार के अपराधों की रोकथाम के प्रति जागरूकता को बढ़ाना है। इन दिनों इंटरनेट का अपराधिक मानसिकता के लोग बहुत अधिक दुरूपयोग कर रहे हैं।

इंटरनेट के कारण बच्चे हों या बड़े, सभी को कई बार परेशानी का सामना करना पड़ता है। आपराधिक मानसिकता के लोगों ने इंटरनेट को धोखाधड़ी-हिंसा और अवैध कमाई का जरिया बना लिया है। यही कारण है कि इंटरनेट से जुड़े अपराध लगातार बढ़ रहे हैं। इंटरनेट से जुड़े अपराध को साइबर अपराध भी कहा जाता है। इनकी रोकथाम के लिए पुलिस लगातार प्रयास कर रही है। इसके बावजूद नई-नई तकनीक में गलत उपयोग के तरीके खोजने वाले लोग अपराध लगातार कर रहे हैं । ऐसे में इंटरनेट से होने वाले अपराधों के प्रति सभी को जागरूक करना जरूरी है।

इंटरनेट बच्चों को बहुत आकर्षित करता है। यदि बच्चों के माता-पिता इंटरनेट पर देखे जाने वाले कार्यक्रम की जानकारी न रखें तो बच्चे किसी भी प्रकार की धोखाधड़ी या हिंसा के शिकार हो सकते हैं । पिछले दिनों इंटरनेट के माध्यम से इस प्रकार के अनेक एप भी मोबाइल पर आए जिनका उपयोग कर बच्चों ने  अपने माता-पिता की जमा पूंजी खत्म कर ली । इंटरनेट पर भय- हिंसा – रोमांच से भरे खतरनाक गेम खेलते हुए कुछ बच्चों ने खुद को ही खत्म कर डाला । यह सब उन अपराधी मानसिकता के लोगों के कारण हो रहा है जिन्होंने इंटरनेट को अपराध का माध्यम बना लिया है ।इस प्रकार के अपराध से जागरूकता के लिए सरकार और समाज दोनों स्तर पर अधिक प्रयास की जरूरत है ।

यहां यह बताना भी जरूरी होगा कि एक सर्वेक्षण के अनुसार मध्यप्रदेश बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध के मामलों मे देश मे तीसरे स्थान पर है। इनमें से 90% से अधिक मामले साइबर पोर्नोग्राफी/बच्चों को चित्रित करने वाली अश्लील यौन सामग्री होस्ट करने या प्रकाशित करने के हैं। यह सर्वेक्षण बच्चों के हक़ – अधिकार के लिए काम करने वाली संस्था चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) द्वारा की गई नवीनतम राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) रिपोर्ट के विश्लेषण उपरांत सामने आया है। यह सर्वेक्षण मप्र में बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध के रुझान को समझने के उद्देश्य से किया गया। 

सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2022 मे देश भर मे साइबर अपराध का शिकार हुए बच्चों के दर्ज किए गए कुल 1हजार 360 मामलों में से 147 मामले मध्य प्रदेश में दर्ज किए गए। यह आंकड़ा कर्नाटक (239) और राजस्थान (161) के बाद बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध का तीसरा सबसे बड़ा आंकड़ा है।इस बारे मे क्राई की क्षेत्रीय निदेशक सोहा मोइत्रा ने बताया कि महज पांच साल की अवधि के भीतर, मध्यप्रदेश में बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध का परिदृश्य काफी बदल गया है। यहां मामलों की संख्या में 4 हजार 800% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। एनसीआरबी के विश्लेषण के अनुसार वर्ष 2018 में एमपी में बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध के केवल 3 मामले दर्ज किए गए थे। वर्ष 2022 में यह संख्या बढ़कर 147 हो गई। 

इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि कोविड ​​महामारी ने बच्चों को विभिन्न ऑनलाइन शिक्षा और अन्य मनोरंजन प्लेटफार्मो के बहुत ज्यादा संपर्क में ला दिया है जो वास्तव में कई स्तरों पर बच्चों के लिए जोखिम को बढ़ाता है। इस तथ्य की पुष्टि यह वर्तमान एनसीआरबी के आँकड़े भी कर रहे हैं। इन बढ़ते आंकड़ों का एक सकारात्मक पहलू यह भी है कि अब अभिभावक इन अपराधों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने के लिए आगे आ रहे हैं। यह सरकार एवं नागरिक समाज संगठनों द्वारा लोगों मे साइबर अपराधों के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने के लिए किए जा रहे प्रयासों का नतीजा है ।

एनसीआरबी रिपोर्ट के विश्लेषण के अनुसार बच्चों के खिलाफ किए गए पंजीकृत साइबर अपराधों के 93 प्रतिशत यानि 137 मामलों में बच्चों को स्पष्ट यौन कृत्य में चित्रित करने वाली सामग्री का प्रकाशन या प्रसारण शामिल था। वर्ष 2022 में बच्चों के खिलाफ दर्ज किए गए 147 मामलों में से, कुल 137 मामले यौन कृत्य में बच्चों को चित्रित करने वाली सामग्री का प्रकाशन या संचारण को लेकर दर्ज किए गए थे। सोहा मोइत्रा के अनुसार  “जनता के बीच इंटरनेट का उपयोग पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ा है। जहां यह वृद्धि लोगों के लिए अवसरों के बड़े रास्ते खोलती है, वहीं बच्चों का साइबर पोर्नोग्राफी जैसे जघन्य अपराध का शिकार बनना बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा पर गंभीर चिंता पैदा करता है”। क्राई अध्ययन: कोविड काल के दौरान ऑनलाइन खतरों की प्रकृति और सीमा को समझने के लिए क्राई और चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, पटना द्वारा संयुक्त रूप से  एक अध्ययन कराया गया। 

इस अध्ययन में भाग लेने वाले मध्य प्रदेश के 78 प्रतिशत शिक्षकों ने कथित तौर पर बच्चों के व्यवहार में शोषण और दुर्व्यवहार किये जाने की संभावना को दर्शाने वाला बदलाव देखा है। इसी प्रकार वर्ष 2023 में जारी ‘पॉक्सो एंड बियॉन्ड: अंडरस्टैंडिंग ऑन ऑनलाइन सेफ्टी थ्रू कोविड’  नाम के अध्ययन के परिणाम भी चिंताजनक रहे। इस अध्ययन मे शामिल माता-पिता में से, 99 प्रतिशत ने यह माना कि वे अपने बच्चों द्वारा देखे जाने वाले ऑनलाइन कंटेन्ट से अनजान थे। उनके बच्चे द्वारा देखे जा रहे वास्तविक कॉन्टेन्ट  के विवरण से अनजान, 53% माता-पिता ने जवाब दिया कि लड़के संगीत सुनने/वीडियो देखने में शामिल होते हैं । 48% माता पिता के अनुसार बच्चे ऑनलाइन गेम खेलते हैं। 57% माता-पिता ने जवाब दिया कि लड़के पढ़ाई से जुड़े कॉन्टेन्ट देखते होंगे। वहीं लड़कियों के मामलों मे माता पिता के जवाब कायह प्रतिशत 83%, 87% एवं 82% था।

क्राई अध्ययन के अनुसार 98% माता-पिता उनके बच्चे के साथ ऑनलाइन बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार होने पर शिकायत दर्ज करना नहीं चाहते हैं। इस अध्ययन के दौरान 98 प्रतिशत माता-पिता ने कहा कि यदि उनके बच्चों के साथ ऑनलाइन बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार होता है तो वे पुलिस स्टेशन जाकर शिकायत दर्ज नहीं करेंगे। केवल 2% प्रतिशत माता पिता ने पुलिस को शिकायत करने की बात कही। यहां यह बताना जरूरी होगा कि ज्यादातर माता-पिता को ऑनलाइन बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार से संबंधित किसी भी कानून के बारे में जानकारी नहीं है।

ऐसे मे जरूरत इस बात की है कि बच्चों के हक़ अधिकार के लिए काम करने वाली शासकीय और स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा पुलिस के सहयोग से  से माता-पिता और बच्चों को साइबर सुरक्षा से जुड़े कानून की जानकारी दी जाए। साइबर अपराध से बचाव के तरीकों के बारे में बताने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाया जाए। बच्चों को किसी भी प्रकार के अपराध से बचाना, अपराधी मानसिकता के लोगों के सख्त सजा दिलवाना हम सबकी जिम्मेदारी है। ऐसा सरकार और समाज के सामूहिक प्रयास से ही हो सकेगा।

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