अभ्यास मंडल द्वारा आयोजित 62 वीं ग्रीष्मकालीन व्याख्यानमाला में वामपंथी विचारक अशोक राव

इंदौर,18 मई। वामपंथी विचारक अशोक राव ने कहा है कि वर्ष 2003 में विश्व बैंक से भारत के द्वारा लिए गए लोन के बाद सार्वजनिक क्षेत्र के लिए मुश्किल हालात बन गए। सरकार के द्वारा इसके बाद सार्वजनिक क्षेत्र से जुड़े सभी कानूनों को बदल दिया गया।

राव आज यहां अभ्यास मंडल द्वारा आयोजित 62 वीं ग्रीष्मकालीन व्याख्यानमाला के छठे दिवस संबोधित कर रहे थे। उनका विषय था सार्वजनिक स्वामित्व वाली संपत्तियों के निजीकरण के खतरे व प्रभाव । विषय की विमांसा करते हुए उन्होंने कहा कि वर्ष 2003 में जब देश के वित्त मंत्री के रूप में मनमोहन सिंह ने जाकर विश्व बैंक से स्ट्रक्चरल एडजस्टमेंट लोन लिया तो उसके बाद में सार्वजनिक क्षेत्र के हालात बदलने लगे। सरकार की ओर से अब सभी सार्वजनिक क्षेत्रों का लाभ और हानि के रूप में उनका आंकलन किया जाने लगा है जबकि हमारे संविधान में यह स्पष्ट तौर पर लिखा हुआ है कि इन सार्वजनिक उपक्रम को लाभ और हानि में नहीं देखा जाएगा।

उन्होंने कहा कि सरकार के द्वारा एक – एक करके सारे सेक्टर को निजी क्षेत्र के हाथ में सौंपने का अभियान चलाया गया। हमारे देश में आज 90% लोगों की मासिक आय ₹25000 से कम है और उसी में उन्हें परिवार चलाना होता है। हम यह आसानी से समझ सकते हैं कि मात्र ₹25000 में कोई व्यक्ति किस तरह से परिवार का संचालन कर सकता है। वर्तमान में चीन के साथ हमारा चाहे जितना विवाद हो लेकिन यदि हम चीन से आयात को बंद कर दें तो देश में दवाई भी नहीं मिलेगी । देश में दवाई का 60% सामान चीन से ही आता है।

उन्होंने कहा कि सरकार ने शिक्षा की पूरी व्यवस्था को निजी क्षेत्र को सौंप दिया है। सार्वजनिक क्षेत्र में कहीं नवोदय स्कूल है, तो कहीं उत्‍कृष्‍ट स्कूल है तो कहीं मॉडल स्कूल है। इतने अलग-अलग नाम के स्कूल क्यों हैं ? स्वास्थ्य के क्षेत्र की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि पूर्व में डॉक्टर के पास जाते थे तो डॉक्टर हमारा परीक्षण करता था और उसके बाद में दवाई लिखता था। आज स्थिति यह है कि हम डॉक्टर के पास जाते हैं तो डॉक्टर हमारी बात सुनता है और एक कागज पर बहुत सारी जांच करने के लिए लिख देता है। वह कोई परीक्षण नहीं करता है। जब हम जांच कराने के बाद वापस जाते हैं तब भी डॉक्‍टर जांच की रिपोर्ट को देखता है और उसके आधार पर दवाई लिख देता है।

देश के टेलीकम्युनिकेशन की चर्चा करते हुए कहा कि हम बीएसएनएल की बात तो करते हैं लेकिन यह नहीं देखते हैं कि अब इस पूरे क्षेत्र में सरकार ने एयरटेल और जियो की मोनोपाली की जगह डियोपाली कर दी है। बीएसएनएल के पास तो अभी 4G भी नहीं है जबकि दूसरे निजी क्षेत्र की कंपनी 5जी लाने की बात कर रही हैं। पर्यटन के क्षेत्र को देखें तो एक समय था जब निजी क्षेत्र किसी भी स्थान पर फाइव स्टार होटल बनाने के लिए तैयार नहीं था। तब सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र से ही यह काम कराया था और आज यह क्षेत्र पूरा निजी क्षेत्र को सौंपा जा रहा है।

पेट्रोलियम कंपनियों की यदि बात करें तो सरकार ने जिन स्थितियों में इन कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया था अब उन स्थितियों को भूलकर यह पूरा क्षेत्र निजी क्षेत्र को सौंपा जा रहा है। बिजली अब हम लोगों की मूलभूत जरूरत हो गई है। हमारे जीवन का हर काम बिजली से ही चलता है। लोग बिल्डिंग में बीसवीं मंजिल पर रहते हैं और यदि बिजली नहीं हो तो वहां तक पानी भी नहीं पहुंच पाए। बिजली के विभाग को कंपनी के रूप में बदल कर उसका बंटवारा कर दिया गया है और अब बिजली की मनमानी दर वसूल की जा रही है। अब एक नया विचार ग्रीन एनर्जी का आया है। यह विचार भी अमेरिका से आया है। देश में थर्मल पावर प्लांट की स्थिति खराब है। सरकार के द्वारा इलेक्ट्रिक बिल 2022 लाया गया है जिसका किसानों के द्वारा विरोध किया जा रहा है। यह बिल ओबामा की चाहत के आधार पर लाया गया है ।

उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि ओएनजीसी कंपनी तेल ढूंढ कर उसे निकालने का काम करती थी । अब उसे जबरन 35000 करोड़ रुपए में एचपीसीएल खरीदने के लिए मजबूर किया गया है। एयरलाइंस के क्षेत्र का पूरी तरह से निजीकरण करते हुए यह अडानी को सौंप दिया गया है। बाकी कंपनियों को तो विमानतल 35 साल के लिए दिए गए लेकिन अडानी की कंपनी को 50 साल के लिए दिए गए हैं। सरकार ने किसी भी सामाजिक कानून को नहीं बदला, सारे आर्थिक कानूनों में परिवर्तन लाने का काम किया है।

कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथि का स्वागत पुरुषोत्तम वाघमारे, शफी शेख, किशन सोमानी, कुणाल भंवर, ग्रीष्मा द्विवेदी, अरविंद पोरवाल ने किया। आज का कार्यक्रम अभ्यास मंडल के संस्थापक सदस्य कामरेड बसंत शिंत्रे को समर्पित था। कार्यक्रम का संचालन सुरेश उपाध्याय ने किया। अतिथि को स्मृति चिन्ह पूर्व सांसद एवं पूर्व आयुक्त सीबी सिंह ने भेंट किया। अंत में आभार प्रदर्शन आलोक खरे ने किया।

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