अमन नम्र

हाल के कुछ दशकों में संवाद और संप्रेषण पर पूरी तरह छा चुका डिजिटल मीडिया हमारे आमफहम जीवन में कैसे दखल करता है? तेजी से बदलते, नित-नया होते इस अत्याधुनिक कारनामे ने हमें किस तरह लाभ पहुंचाया है?

तेजी से बढ़ती तकनीकी प्रगति और बदलते उपभोग पैटर्न के दौर में, भारत में डिजिटल मीडिया का उदय किसी क्रांति से कम नहीं है। पारंपरिक टेलीविजन, जिसे अक्सर ‘बुद्धू बक्सा’ कहा जाता है, अपनी जगह खोता जा रहा है। डिजिटल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म न केवल दर्शकों का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं, बल्कि मीडिया परिदृश्य को भी नया आकार दे रहे हैं। व्यवसायियों की संस्था ‘फिक्की-ईवाई’ की एक हालिया रिपोर्ट बताती है कि भारत का डिजिटल मीडिया उद्योग 17% की प्रभावशाली दर से बढ़ रहा है और 2025 तक 802 अरब रुपयों तक पहुंच जाएगा। यह एक महत्वपूर्ण बदलाव है, जिसमें डिजिटल मीडिया अब समग्र मीडिया और मनोरंजन में 32% का योगदान देता है, लेकिन टेलीविजन उद्योग के लिए इस वृद्धि का क्या मतलब है और यह परिवर्तन अभी क्यों हो रहा है?

पारंपरिक टेलीविजन का पतन

जब भारत के सबसे सम्मानित पत्रकारों में से एक रवीश कुमार ने तीन साल पहले ‘एनडीटीवी’ से इस्तीफा देते वक्त अपने दर्शकों से टेलीविजन देखना बंद करने के लिए कहा था, तो कई लोगों ने इसे भारतीय मीडिया की स्थिति से निराश व्यक्ति का एक सनकी बयान माना था। फिर भी, रवीश खुद इस बात का जीता-जागता उदाहरण बन गए कि कैसे डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म न केवल एक विकल्प, बल्कि मीडिया जुड़ाव के लिए एक ज़्यादा मुनाफ़े वाला और विश्वसनीय ज़रिया पेश कर सकते हैं। ‘एनडीटीवी’ में अपनी भूमिका से लेकर अपना खुद का ‘यू-ट्यूब’ चैनल शुरू करने तक, रवीश कुमार की आय और प्रभाव दोनों में वृद्धि डिजिटल मीडिया की शक्ति का प्रमाण है।

तो, टेलीविज़न के साथ क्या ग़लत हुआ? जबकि टीवी कभी सार्वजनिक चर्चा को आकार देने में प्रमुख शक्ति था, लेकिन यह दर्शकों की बदलती प्राथमिकताओं के अनुकूल होने से खुद को दूर करता चला गया। ‘बुद्धू बक्सा’ उपनाम, जिसे कभी एक मज़ाक के रूप में देखा जाता था, अब उन लाखों लोगों की भावनाओं को दर्शाता है जिनका लगभग हर टीवी न्यूज चैनल पर लगातार चल रहे सनसनीखेज, एजेंडा-संचालित प्रसारण से मोहभंग हो चुका है। कॉरपोरेट समर्थित टीवी चैनल, अपने अति-पक्षपातपूर्ण एंकर और चीखती-चिल्लाती, कई बार मार–पीट तक में तब्दील होती बहसों के साथ, अपने दर्शकों की ज़रूरतों और इच्छाओं से जुड़े रहने में विफल रहे। जैसे-जैसे टीवी समाचार तथ्य-आधारित रिपोर्टिंग से रेटिंग बढ़ाने के लिए आवेशित चर्चाओं में तब्दील हुआ, इसने अपनी विश्वसनीयता और प्रासंगिकता खोना शुरू कर दिया।

इसके विपरीत, डिजिटल मीडिया का विकास ठीक इसी वजह से हुआ है क्योंकि यह ज़्यादा व्यक्तिगत और संवाद के अनुभव प्रदान करता है। डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म कंटेंट क्रिएटर्स को खास दर्शकों को ध्यान में रखकर ज़्यादा सार्थक, विविधतापूर्ण और गहन कंटेंट बनाने की अनुमति देते हैं। चाहे वह ‘यू-ट्यूब’ पर खोजी पत्रकारिता हो या विशेष समाचार वेबसाइट। ये सभी अब देश की नब्ज़ पहचान रहे हैं, आम नागरिकों से जुड़े ऐसे मुद्दों पर ध्यान दे रहे हैं जिन्हें अक्सर मुख्यधारा के मीडिया द्वारा दरकिनार कर दिया जाता है।

डिजिटल मीडिया की अभूतपूर्व वृद्धि

भारत में इंटरनेट की पहुंच का विस्तार, साथ ही किफायती स्मार्टफोन का प्रसार, इस वृद्धि का एक प्रमुख कारण रहा है। 2023 तक, भारत में 80 करोड से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ता थे, जिनमें एक बड़ा प्रतिशत मोबाइल उपकरणों के माध्यम से सामग्री तक पहुँच रहा था। इसने वीडियो स्ट्रीमिंग, पॉडकास्ट और उपयोगकर्ता-जनित सामग्री सहित नए मीडिया प्रारूपों के फलने-फूलने का मार्ग प्रशस्त किया है। ‘यू-ट्यूब,’ ‘इंस्टाग्राम’ और ‘वाट्सएप’ जैसे प्लेटफ़ॉर्म केवल मनोरंजन के स्रोत नहीं हैं; वे समाचार प्रसार, सामाजिक जुड़ाव और सक्रियता के लिए आवश्यक उपकरण बन गए हैं।

चूँकि पारंपरिक टीवी नेटवर्क उच्च-लागत वाले प्रसारण ढांचे पर निर्भर रहता है, इसलिए डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म सस्ते और चुस्त विकल्प के रूप में उभरे हैं। डिजिटल मीडिया का लचीलापन इसे विभिन्न प्रकार के दर्शकों को संतुष्ट करने की सुविधा देता है, जिससे यह अधिक समावेशी और विविध बन जाता है। चाहे ‘यू-ट्यूब’ पर लंबे-चौड़े वृत्तचित्र हों या सोशल मीडिया पर त्वरित अपडेट, डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म युवा, तकनीक-प्रेमी दर्शकों की आदतों के अनुकूल होते हैं।

डिजिटल मीडिया की राष्ट्र की नब्ज़ से जुड़ने की अपील  

पिछले एक दशक में, अनगिनत ‘यू-ट्यूब’ चैनलों, ब्लॉग और स्वतंत्र मीडिया संगठनों ने महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डाला है। दलितों और आदिवासियों के अधिकार, सरकारी भ्रष्टाचार, श्रम अधिकार, पर्यावरण प्रदूषण और जल, जंगल, जमीन जैसे प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के मुद्दे। ये डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म अक्सर पारंपरिक मीडिया आउटलेट की तुलना में बहुत कम संसाधनों के साथ काम करते हैं, फिर भी आम लोगों की कहानियों को उजागर करके शक्तिशाली संस्थानों को जवाबदेह ठहराने की उनकी क्षमता ने आधुनिक मीडिया परिदृश्य में उन्हें अपरिहार्य बना दिया है। 

टीवी चैनल के व्यावसायिक हितों के मुकाबले डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म ने हाशिए के समुदायों-आदिवासियों, दलितों, किसानों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं के संघर्षों को सफलतापूर्वक प्रदर्शित किया है। पैरवी और बदलाव में डिजिटल मीडिया की भूमिका जैसे-जैसे बढ़ती जा रही है, सामाजिक और राजनीतिक अभिव्यक्ति को आकार देने में इसकी भूमिका अधिक स्पष्ट होती जा रही है। अब जबकि डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म ने विविध आवाज़ों और एजेंडों के लिए सफलतापूर्वक जगह बना ली है, तो समय आ गया है कि ये प्लेटफ़ॉर्म सिर्फ़ रिपोर्टिंग से आगे बढ़कर वकालत में सक्रिय भागीदार बनें।

सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक जहां डिजिटल मीडिया प्रभाव डाल सकता है, वह है जनमत को संगठित करना और नीति परिवर्तन के लिए दबाव डालना। भारत – जल-संरक्षण और कृषि भूमि की बदहाली से लेकर महिलाओं की सुरक्षा और युवाओं के लिए रोज़गार के अवसर पैदा करने तक कई मुद्दों से जूझ रहा है, जबकि टीवी पर होने वाली बहसें अक्सर सनसनीखेज होती हैं। ऐसे में डिजिटल मीडिया अभियान आयोजित करने,  गठबंधन बनाने और नीति निर्माताओं पर कार्रवाई करने के लिए दबाव बनाने में कारगर भूमिका निभा सकता है।

इसके अलावा, डिजिटल मीडिया भारतीय समाज में व्याप्त विभाजनकारी आख्यानों को खत्म करने की एक ताकत हो सकती है, खासकर धार्मिक और जाति-आधारित विभाजन से जुड़े मुद्दों पर। मुख्यधारा के टीवी ने अक्सर इन विभाजनों को गहरा करने में योगदान दिया है, जिसमें एंकर डर और नफ़रत को बढ़ावा देने वाले एजेंडे को आगे बढ़ाते हैं। दूसरी ओर, डिजिटल मीडिया में एकता, सहिष्णुता और समावेशिता को बढ़ावा देने वाले प्रति-आख्यान प्रस्तुत करने की क्षमता है। यह ऐसी नीतियों की वकालत कर सकता है जो जाति, धर्म या आर्थिक स्थिति से परे समाज के सभी वर्गों को लाभ पहुंचाती हों।

डिजिटल मीडिया की जिम्मेदारियां बढ़ती जा रही हैं

डिजिटल मीडिया के लिए अगला कदम अपने दृष्टिकोण को परिष्कृत करना और दर्शकों के साथ और भी मज़बूत संबंध बनाने पर ध्यान केंद्रित करना है। उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह सटीक, सहानुभूति-पूर्ण और साक्ष्य-आधारित वकालत के साथ मुद्दों को प्रस्तुत करे। ‘फिक्की-ईवाई’ की रिपोर्ट डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म को सामाजिक परिवर्तन का वाहक बनने पर प्रकाश डालती है। महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करके-जैसे कि रोज़गार सृजन, महिलाओं की सुरक्षा, शिक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता – डिजिटल मीडिया सशक्त नागरिक बनाने में योगदान दे सकता है।

डिजिटल मीडिया को सिर्फ़ राजस्व और दर्शकों की संख्या के आधार पर नहीं मापा जाएगा, बल्कि एक ज़्यादा समतापूर्ण और न्यायपूर्ण समाज को आकार देने की इसकी क्षमता से भी मापा जाएगा। जैसे-जैसे डिजिटल मीडिया उद्योग आगे बढ़ेगा, लोकतांत्रिक संस्थानों को जवाबदेह बनाने और देश की बड़ी चुनौतियों के समाधान प्रदान करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। अब समय आ गया है कि डिजिटल मीडिया सिर्फ़ एक विकल्प के तौर पर ही नहीं, बल्कि मीडिया के भविष्य के तौर पर भी आगे आए। (सप्रेस)