वैश्विक आंकड़े बता रहे हैं कि विश्वभर में भूख से पीड़ितों की संख्या में उल्लेखनीय कमी आई है। इसके बावजूद भूख से पीड़ितों की संख्या अभी भी खतरनाक स्तर पर बनी हुई है। भारत जैसे देश नोटबंदी जैसे कदम उठाते समय अपने यहां निवासरत गरीबों और वंचितों को भूल जाते है।
वाशिंगटन स्थित अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान (आई एफ पी आर आई) ने 11 वीं बार वार्षिक वैश्विक भूख सूचकांक (जीएचआई, ग्लोबल हंगर इंडेक्स) तैयार किया है। इसकी गणना चार सूचकांकों पर आधारित है जो कि लोगों की पोषण की स्थिति पर प्रकाश डालती है। यह हैं कुपोषण, शरीर के अनुपात में बच्चे का वजन अत्यन्त कम होना, बच्चों का शारीरिक विकास कम (बौनापन) होना एवं बाल मृत्युदर। सभी विकासशील देशों एवं उभरते बाजारों में यह सूचकांक 21.3 आया है। सन् 2000 में यह 30 था। विशेषज्ञों के अनुसार भूख में 29 प्रतिशत की कमी आई है। आईएफपीआरआई दो नागरिक संगठनों आयरलैंड़ के कंसर्न वर्ल्डवाइड एवं जर्मनी की वेल्थहंगर लाइफ के सहयोग से प्रतिवर्ष वैश्विक भूख सूचकांक जारी करता है। प्रथम दृष्टया यह नया आंकड़ा अच्छा प्रतीत होता है। यह सूचकांक 22 देशों जिसमें रवांडा, कंबोडिया और म्यांमार शामिल हैं, से सामने आया है। परंतु अभी भी विश्व भर में 79.5 करोड़ लोग भूख से पीड़ित हैं। वेल्थहंगर लाइफ की अध्यक्ष बारबेल डीकमान के अनुसार यह संख्या अस्वीकार्य है। इसकी वजह यह है कि इसमें खासकर बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित नजर आते हैं। आईएफपीआरआई के शोधकर्ताओं के अनुसार जिन 118 देशों का उन्होंने आकलन किया है। उसमें स्थितियां ’’गंभीर’’ से लेकर ’’खतरनाक’’ स्तर तक पहुंच चुकी हैं।
वेल्थहंगर लाइफ एवं के एफ डब्लू द्वारा बर्लिन में आयोजित एक सार्वजनिक कार्यक्रम में डीकमान का कहना था इस कार्य में मिल रही असफलता सभी को विचलित कर रही है। उन्होंने कहा कि सन् 2010 में आए तूफान ने हैती द्वारा अब तक किए गए विकास को तहस-नहस करके रख दिया है। इसके बाद हाल ही में आए समुद्री तूफान मैथ्यु को लेकर उनके संस्थान ने इंगित किया कि हैती में हैजा के मामलों में वृद्धि आएगी क्योंकि तूफान ने पानी एवं सेनीटेशन ढ़ांचों को नुक्सान पहुंचाया है। जी एच आई के अनुसार वर्तमान में चाड और मध्य अफ्रीकी गणराज्य ऐसे दो देश हैं जो कि भूख से सर्वाधिक प्रभावित हैं। सूडान से बहुत से लोग भागकर चाड पहुंच गए हैं और मध्य अफ्रीकी गणराज्य अपने यहां के नागरिक असंतोष पीड़ित हैं। आकड़ों के अनुसार नामीबिया और श्रीलंका में भी समस्याएं हैं। जी एच आई बता रहा है कि यह ऐसे दो देश हैं जहां सन् 2000 के बाद अब तक सबसे कम प्रगति हुई है। रिपोर्ट के अनुसार नामीबिया को पिछले वर्षों में सूखे, बाढ़ एवं अनियमित वर्षा का सामना करना पड़ा। इससे वहां खाद्यान्न उत्पादन और पशुपालन में रुकावट आई है। रिपोर्ट के अनुसार श्रीलंका में फैली बीमारियां वहां की प्रगति में रोड़े अटका रही हैं।
वही आंकड़ों की नियमावली में कमी भी सामने आ रही है। समूह ने स्वीकार किया है वह 13 देशों के आंकड़ों को समसामायिक नहीं बना पाए। इसमें बुरुंडी, कांगो गणराज्य, सीरिया और ईरिट्रीआ शामिल हैं। डीकमान ने इंगित किया है कि यही देश वास्तव में ’’मुख्य चुनौती’’ हैं क्योंकि यहां कुपोषण एवं अन्य सूचकांकों के सर्वाधिक पाए जाने की आशंका है। इरिट्रीआ में आखिरी बार सन् 2014 में गणना की गई थी तब यहां दुनिया का दूसरा सबसे खराब जी एच आई पाया गया था।
एक स्लो फूड एक्टिविस्ट उरसुला हडसन का कहना है कि अमीर देशों के उपभोक्ताओं पर वैश्विक खाद्यसुरक्षा की कुछ जिम्मेदारी आती है। उन्होंने मांग की है कि अमीर देशों को अपने उपभोग के तरीकों में परिवर्तन लाना होगा। उदाहणार्थ मांस का उत्पादन एक बड़ी समस्या है क्योंकि इसकी प्राप्ति हेतु जो खाद्यान्न उपलब्ध करवाया जा रहा है उसे मानव भोजन की तरह प्रयोग में लाया जा सकता है। इसके अलावा हडसन का मुख्य जोर इस बात पर है कि ग्रामीण कामगारों को उचित पारिश्रमिक प्रदान किया जाए। (सप्रेस/थर्ड वर्ल्ड नेटवर्क फीचर्स)