महिलाओं की क्षमताओं और समाज में उनकी हैसियत के बारे में सभी को न सिर्फ याद रखना चाहिए, बल्कि उसे बार-बार गुनना चाहिए, भले ही इस प्रक्रिया में हमें थोडी ऊब ही क्यों न हो। ‘महिला दिवस’ मनाने की जरूरत इसीलिए है कि समाज समझ सके कि जैसे पुरुष एक इंसान है, वैसे ही महिला भी एक इंसान है। इन सब बातों को कोई और नहीं समझा सकता, शुरुआत अपने इसी समाज को, अपने आप से करनी होगी!
‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’
प्राचीन काल में चाहे आजादी का आंदोलन हो, देश में कोई समस्या या समाधान की बात, अपने गांव पंचायत घर परिवार मोहल्ले की बात, खेती-किसानी, मजदूरी, उद्योग, लोक-संस्कृति, शिक्षा आदि की बात हो तो किसी भी क्षेत्र में महिला की क्षमता को नजरअंदाज करके समाज की कल्पना करना व्यर्थ रहा है। यदि हम इतिहास देखें तो प्राचीन काल से महिलाएं-पुरुष साथ में कार्यरत हैं, जैसे-अशोक की पुत्री संघमित्रा भी बौद्ध धर्म की शिक्षा ग्रहण करके बुद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए आगे बढ़ी। इसके अलावा भजन, स्रोत, संस्कृत श्लोक, व नाटिका, संगीत कविताएं आदि लिखी गईं और उनका प्रदर्शन भी किया गया।
आर्थिक परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो महिलाएं विभिन्न मौसमी गतिविधियों में पुरुषों के साथ बराबरी करती हैं। जैसा कि हमें पता है, हमारा देश शुरुआत से ही कृषि-प्रधान रहा है और इसमें महिलाओं का योगदान हमेशा से रहा है। खेती के छोटे से लेकर बड़े कार्य महिलाओं के बिना संभव नहीं हो पाए। चाहे वह पशुपालन हो, गृह उद्योग और कुटीर उद्योग, पैकिंग का कार्य हो, बीड़ी बनाने का कार्य हो, चाहे फिर किसी भी प्रकार की नौकरी – सभी कार्यों में महिलाओं का बराबरी का साथ रहा है।
महिलाओं को हम देवी दुर्गा, काली शक्ति के रूप में देखते हैं। शक्ति का अर्थ सामर्थ्य से है। जहां सामर्थ्य होता है वहां शक्ति आती है। महिलाओं की जो भूमिका है वह पूरे समाज को सामर्थ्य देने का कार्य करती है। राजनीतिक क्षेत्र में ऐतिहासिक काल से ही महिलाएं शास्त्रार्थ व वाद-विवाद में अपना प्रतिभागी सुनिश्चित करती थीं। जो समितियां गठित होती थीं उसमें भी वे भाग लेकर अपने विचार रखती थीं।
मध्यकाल में रजिया सुल्तान दिल्ली पर शासन करने वाली पहली महिला शासक बनी। अकबर के शासन काल में भी गोंड रानी दुर्गावती और अहमदनगर की चांद बीबी, शिवाजी की मां जीजा बाई एक कुशल योद्धा व प्रशासक थीं। मुगल सम्राज्ञी जहांआरा और जेबुन्निसा दोनों ही प्रसिद्ध कवियित्री रही थीं। हाजी बेगम जिन्होंने वास्तु शिल्प में हिमायूं का मकबरा बनाकर साबित किया था कि महिलाएं ऐसे कार्य करने में भी आगे हैं। 17वीं शताब्दी के कर्नाटक में बलवारी मलम्मा महिलाओं को सेना के कार्य में प्रशिक्षित करती थीं, उन्होंने खुद की एक सेना का गठन भी किया था। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में वेलूनदियार एक ऐसी महारानी थीं जिन्होंने अंग्रेजों को पूर्णता हरा दिया था। बेगम हजरत महल ने अंग्रेजों की हड़प नीति से अवध को बचाया था। रानी अवंतीबाई (रायगढ़), रानी जिंदल कौर, झलकारी बाई, उड़ा देवी जैसी क्रांतिकारी महिलाओं ने काम किया। 1957 की क्रांति में पहला नाम महारानी लक्ष्मीबाई का आता है जिन्होंने हिम्मत नहीं हारी, अपने देश के लिए अंग्रेजों से लड़ती रहीं और अपने प्राणों की आहुति दी।
आधुनिक काल में महिलाओं ने सामाजिक कुरीतियों, जैसे – सती प्रथा, विधवाओं का पुनर्विवाह, बालिका शिक्षा आदि के लिए काम किया। गौरी पार्वती राव ने महिलाओं व लड़कियों की शिक्षा पर उस समय बल दिया जब महिलाओं की शिक्षा को सामाजिक कलंक माना जाता था। सावित्रीबाई फुले पहली महिला विद्यालय की पहली शिक्षिका थीं। उन्होंने अछूतों के लिए विद्यालय खोले व महिला अधिकार के लिए कार्य किया।
20 वीं शताब्दी के आरंभ में सरोजिनी नायडू ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ की अध्यक्ष रहीं और उत्कृष्ट नेता की तरह ‘नमक सत्याग्रह’ और ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ में बढ़-चढ़कर भाग लिया। कमला नेहरू ‘असहयोग आंदोलन’ की अग्रणी नेता रहीं। विजयलक्ष्मी पंडित, अरूणा आसफ अली ने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की शुरुआत में मुंबई में तिरंगा फहराया। कस्तूरबा गांधी ने महिला सत्याग्रह में अपनी भूमिका सुनिश्चित की। उषा मेहता ने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान रेडियो में प्रसारण का काम किया।
भारत के संविधान का मसौदा तैयार करने मैं दुर्गाबाई देशमुख, राजकुमारी अमृत कौर, रेणुका राय, सरोजिनी नायडू, विजयलक्ष्मी पंडित जैसी सुप्रसिद्ध महिलाओं की अहम भूमिका रही। भ्रष्टाचार से लड़ने और सरकारी पारदर्शिता को बढ़ावा देने में अरुणा राय, ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ के जरिए जल, जंगल, जमीन के अधिकार के लिए कार्य करने वाली मेधा पाटकर, लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता अरुंधति राय, पर्यावरण मानव अधिकार पर काम कर रहीं वंदना शिवा, गांधीवादी पर्यावरणविद राधा भट्ट, ‘चिपको आंदोलन’ की गौरा देवी, टेनिस खिलाडी सानिया मिर्जा, उडनपरी पीटी उषा, गायिका लता मंगेशकर जैसी असंख्य महिलाएं हैं जिनके काम को हम नाम लेकर नहीं बता सकते।
जिस तरफ नजर जाती है वहीं महिलाएं अपनी सेवाएं दे रही हैं। महिला व बेटी के बिना घर हो पाना असंभव है। आधुनिक टेक्नोलॉजी का जमाना आया तो भी महिलायें कदम-से-कदम मिलाकर आगे बढ़ीं। चाहे गाड़ी हो या बस, प्लेन हो या ट्रेन, कंप्यूटर हो या पत्रकारिता, साहित्य जगत हो या कलाक्षेत्र, जल-वायु-थल सेना हो या ओलंपिक खेल, उद्योग, बैंक, कॉर्पोरेट, डॉक्टर, सभी जगह महिलाएं बराबरी से काम कर रही हैं।
फिर भी उनके मन में एक डर बना ही रहता है। वह समाज में बेटी हैं, लेकिन उन्हें पराया धन माना जाता है। वे आज भी बलात्कार, दुष्कर्म और एसिड अटैक जैसे घृणित हमलों का शिकार होती हैं। बहुत कष्ट होता है जब इतिहास में नाम कमा रहीं बेटियां सहज रूप से निकलने में भी डरती हैं। कैसी है, हमारी व्यवस्था, कैसा हमारा देश, कैसी हमारी सोच या मानसिकता कि आज भी अपने हक के लिए महिलाओं को बोलना, लड़ना पड़ता है। ‘महिला दिवस’ मनाने की जरूरत इसीलिए है कि समाज समझ सके कि जैसे पुरुष एक इंसान है, वैसे ही महिला भी एक इंसान है। इन सब बातों को कोई और नहीं समझा सकता, शुरुआत अपने इसी समाज को, अपने आप से करनी होगी। (सप्रेस)
[block rendering halted]
Like it