अपर्याप्त बचत के कारण श्रमिक वर्ग व छोटे कामकाज में संलग्न व्यक्ति अपने खातों में न्यूनतम राशि नहीं रख पाते। इस वजह से विभिन्न सेवाओं के नाम पर बेंकों ने चार्ज वसूलना शुरू कर दिया। श्रमिक व कमजोर तबके के लोगों के खातों में बचा हुआ थोड़ा बहुत पैसा भी किसी न किसी शुल्क के बहाने वसूल लिए जाते है और उनके खातों को नेगेटिव बैलेन्स मे बदल दिया जाता हैं और जैसे ही अगले महीने राशि जमा होती (क्रेडिट) हैं वैसे ही जुर्माने के रूप में पैसे कट जाते है।
बैंक चार्जेस जो पिछले कुछ वर्षों में बड़े पैमाने पर लागू हुए है, उनसे सबसे अधिक श्रमिक वर्ग की आर्थिक स्थिति प्रभावित हुई है। इसे बेहतर तरीके से समझने के लिए फैनइंडिया की टीम ने कुछ श्रमिक वर्ग के लोगों से बातचीत की जिसमें किसान, मजदूर, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, घरेलू कामगार, साइकिल रिक्शा चालक आदि शामिल है। इनकी आमतौर पर काफी कम आमदनी होने की वजह से हमें यह पता चला कि रोजमर्रा के खर्चों के बाद, उनके बैंक खातों में अमूमन शून्य या बहुत कम बचत राशि रह जाती हैं । कोई बचत न होने के बावजूद ऐसे खाताधारकों पर बैंकों द्वारा लगाए गए भारी शुल्क उनके खातों को नेगेटिव बैलेन्स में बदल रहे हैं एवं उन्हें और भी गरीब बनाते जा रहे हैं।
इनमें से अधिकांश लोगों के खाते एसबीआई, पीएनबी और केनरा जैसे प्रमुख सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में हैं, जिन्होंने बचत खातों में न्यूनतम राशि बनाए रखने एवं विभिन्न बैंकिंग सेवाओं के शुल्क वसूलने हेतु अलग- अलग नियम बना रखे हैं। इसलिए उन पर बैंक शुल्कों के प्रभाव को बेहतर तरीके से जानने हेतु हमने उनकी औसत मासिक आय, व्यय (जिसमे प्रमुख रूप से उनके किराए, बिजली, भोजन, कपड़े, ऊर्जा, स्वास्थ्य और बच्चों की देखभाल शामिल हैं) और उनके खातों में बची हुई राशि का आंकलन किया है ।
यहां हम उन ऑटो रिक्शा खींचने वालों का उदाहरण देकर समझाने की कोशिश कर रहे हैं, जिनकी महानगर शहरों में औसत मासिक आय रु. 15000-12000 है जबकि अन्य शहरों में रु. 10000-8000 प्रति माह है ।
अब अगर दिल्ली जैसे मेट्रो शहर में जहां साइकिल रिक्शा खींचने वालों की औसत मासिक वेतन रु. 15000 है, उसमें से उनके मासिक खर्च होते है: किराए और बिजली में रु. 4000-3000, भोजन और किराने के सामान में रु. 4000, स्वास्थ्य देखभाल और अन्य विविध खर्चों के लिए रु. 2000 और शेष राशि रु. 4000-5000 वे अपने घर अर्थात परिवार के सदस्यों को भेज देते हैं। यह कुल खर्च करीब रु 15,000 प्रति माह आता है । इनमें से ज्यादातर लोगों के खाते सरकारी बैंकों में हैं। अब यदि उनके खाते अगर कैनरा बैंक में है जो कि प्रति माह रु. 1000 न्यूनतम राशि न बनाए रखने के लिए रु. 40 चार्ज करता है, प्रति माह एसएमएस अलर्ट के लिए रु 15 और वार्षिक डेबिट कार्ड जारी करने के लिए रु 120 चार्ज करता है। यह सभी शुल्क एक वर्ष में कम से कम रु 660 उनके खातों से काट लेते है जिनके पास आमतौर पर शून्य या 500 रुपये से कम शेष राशि नहीं बचती। जबकि इन शुल्कों में निकासी, लेनदेन और अन्य सेवाओं के शुल्क शामिल नहीं है। इसलिए हर महीने इन शुल्कों के लगातार कटौती की वजह से उनके खाते नेगेटिव बैलेन्स में बदल जाते है और धीरे-धीरे प्रत्येक व्यक्ति की कुल आय में गिरावट होती जाती है।
नो बैंक चार्जेस: मासिक आय कम होने के कारण बैंक चार्जेस का सबसे बुरा प्रभाव श्रमिक वर्ग पर पड़ रहा है क्योंकि यह उनके बचत को न केवल समाप्त करता जा रहा है बल्कि उनके खातों को नेगेटिव बैलेन्स में भी तब्दील कर रहा है जिसके कारण वे और भी गरीब होते जा रहे हैं।
इसी तरह बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के साइकिल रिक्शा चालकों की औसत मासिक वेतन लगभग रु 8000-10000 है और उनके मासिक खर्च जैसे कि हर महीने किराए के लिए रु 2000-3000, भोजन के रु 6000 (यदि वे अपने परिवार के साथ रहते हैं तो),स्वास्थ्य चिकित्सा के लिए करीब रु 1000 होता है। ये कुल खर्च आया रु 10000 प्रति माह । अब विभिन्न बैंकों द्वारा लगाए गए विभिन्न शुल्क, उदाहरण के लिए पंजाब नेशनल बैंक, जो कि न्यूनतम राशि रु 2000 न बनाए रखने पर तिमाही रु. 250 चार्ज करता है यानि कि एक वर्ष में कुल 1000 रुपये काट लेता है, साथ ही त्रैमासिक एसएमएस अलर्ट रु 15 और डेबिट कार्ड जारी करने के लिए वार्षिक शुल्क रु चार्ज करता है। 100 तो एक वर्ष में केवल यह तीन शुल्क कम से कम रु 1160 उनके खातों से काट लेते है जिनकी बचत शून्य के बराबर होती है ।
अपर्याप्त बचत के कारण, ये लोग अपने खातों में न्यूनतम राशि नहीं रख पाते। इसी कारण से सरकार ने जन धन योजना के तहत इन लोगों को शून्य बैलेंस के साथ अपने खाते खोलने के लिए प्रोत्साहित किया। लेकिन बाद में जब लोगों ने बड़ी संख्या में जन धन खाते खोले, तो बैंकों ने उन्हें नियमित बचत खातों में परिवर्तित करना शुरू कर दिया । अतः उनसे भी विभिन्न सेवाओं के नाम पर चार्ज वसूलना शुरू कर दिया। इसलिए, उनके खातों में बचा हुआ थोड़ा बहुत पैसा भी किसी न किसी शुल्क के बहाने वसूल लिए जाते है और उनके खातों को नेगेटिव बैलेन्स मे बदल दिया जाता हैं और जैसे ही अगले महीने का वेतन उनके खाते में आता (क्रेडिट) हैं वैसे ही जुर्माने के रूप में पैसे कट जाते है। ये शुल्क न केवल उनकी बचत को समाप्त कर रहे हैं, बल्कि उन्हें पूरी तरह से आर्थिक संकट की स्थिति में डालते जा रहे हैं।
‘नो बैंक चार्जेस’ अभियान के माध्यम से ‘आरबीआई और बैंक’ बचत खातों पर लगाए गए सभी शुल्कों को वापस ले की मांग की जा रही हैं कि क्योंकि यह ज्यादातर असंगठित और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। उन्हें ऐसी किसी भी गलती या अपराध के लिए दंडित नहीं किया जाना चाहिए जिसके लिए वे बिल्कुल भी जिम्मेदार नहीं हैं। उन्हें केवल अपने बैंक खाते होने और उसमें पैसे रखने के लिए शुल्क नहीं देना चाहिए।