इस दुनिया में प्रागैतिहासिक काल से लेकर आज तक मनुष्य की कहानी ख़यालात बदलने से हालात बदलने की अंतहीन कहानी है। ख़यालात से हालात बदलते ही रहेंगे यह हमारी दुनिया या जिन्दगी का सत्य है। हमारे ख़यालातों से ही पुरातनकाल से आधुनिक काल तक हालातों में बुनियादी बदलाव आया है। हालात बदलने से ख़यालात भी बदलते हैं और ख़यालात बदलने से हालात बदलते रहते हैं।
हालात अपने आप नहीं बदलते हैं। हालात बदलने के लिए ख़यालात में बदलाव बहुत जरूरी है। दुनिया के सारे बदलाव अपने आप नहीं आते हैं। जैसे जैसे ख़यालात बदलते गए हालत भी बदल गए। आज जिस तेजी से हालात बदलते जा रहे हैं उस तेजी से लोगों के ख़यालात नहीं बदल रहे हैं। पिछले सौ सालों में कितनी तेजी से हालात बदले हैं यह हमने देखा है। बैलगाड़ी से लेकर आवाज से भी तेज गति के विमान हमारे जीवन में आएं और देश दुनिया के हालात बदल गए । आज बैलगाड़ी भी चल रही है और आवाज से भी तेज गति से चलने वाले विमान भी देश दुनिया में चल रहे है। आज की दुनिया में दकियानूसी दिमाग़ भी है और नित नया सोचने विचारने वाला दिमाग भी मौजूद हैं। जीवन्त दिमाग में जड़ता पूर्ण विचार न के बराबर जन्मते हैं पर जड़ता पूर्ण दिमाग में मुश्किल से ही नव विचार का जन्म हो पाता है। जड़तापूर्ण दिमाग हमेशा खुद और दूसरे के विचारों को जकड़ कर रखना चाहता है।
आठ अरब आबादी की दुनिया में पुरानी बातों और नयी बातों में निरन्तर मत मतान्तरो की कई हलचलें चल रही है। मनुष्य के दिमाग में आनेवाला हर विचार अपने आप में नया होकर जरूरी नहीं की समूचे मनुष्य समाज के सोच और व्यवहार को बदल डाले, वह महज ख़याली पुलाव भी हो सकता है। मानव समाज और मन मस्तिष्क में बदलाव आने में लम्बा समय लगता है। हमारा रहन-सहन, सोच-विचार, घर परिवार नये-नये ख़याल आने से निरन्तर बदलते रहे है।
हमारी राजनीति, धर्म, अर्थव्यवस्था और बाजार का स्वरूप भी निरन्तर बदलता जा रहा है। विचार का प्रवाह हमेशा एक जैसा नहीं होता है। हर समय विचार,सोच और व्यवहार में बदलाव आता रहता है। इसीलिए जीवन एक रस न हो निरन्तर सरस बना रहता है। जब दो मनुष्य एक जैसे ख़यालात वाले होते हैं तो उनमें वैचारिक सम्बन्ध विकसित हो जाते हैं। विपरित विचार रखने वाले मनुष्य और समूह में भी सम्बन्ध होते हैं पर मत भिन्नता का भाव सदैव बना रहता है। कुछ मनुष्यों में अपनी स्वतंत्र विचारों की पहचान होती है। ऐसे मनुष्य विचारधाराओं के हिमायती नहीं होते हैं। उनका दर्शन विचार आधारित है पर विचार विशेष या विचारधाराओं से वे नहीं बंधे होते। वैसे देखा जाए तो दुनिया में जितने मनुष्य है उतने भिन्न विचार मौजूद हैं। एक जैसे दो मनुष्य संभव नहीं है वैसे ही एक जैसे विचार वाले दो मनुष्य भी संभव नहीं है। शायद इसीलिए स्वतंत्र विचार से ज्यादा संगठित विचार को लेकर मनुष्य समाज में सहमति से ज्यादा असहमति जताई जाने का मानव समाज में एक लम्बा सिलसिला बना हुआ है।
संगठित विचार, मनुष्य समाज को भेड़ बकरी की तरह से हांकने में ज्यादा भरोसा करता है। इसीलिए स्वतंत्र विचार से कोई सहमत होता है या असहमत होता है। पर संगठित विचार से सहमत मनुष्य को असहमत होने का कोई विकल्प ही मौजूद नहीं है। संगठित समूह के सरगना आपको संगठन विरोधी निरूपित कर संगठन से निष्कासित कर अपने आप को स्वतंत्र विचार विरोधी सिद्ध करते रहते हैं। स्वतंत्र विचार में निष्कासित किए जाने का कोई विकल्प ही नहीं है, वह हवा प्रकाश की तरह स्वतंत्र और सर्वव्यापी है। आपके स्वतंत्र विचार से क्रांति और भ्रांति दोनों संभव है फिर भी संगठित विचार जैसा निष्कासन संभव नहीं है।
संगठित विचार आपको प्रताड़ित, भयभीत और दुनिया से बिदा भी कर सकता है। फिर भी मनुष्य की स्वतंत्र विचार प्रक्रिया को भय, प्रलोभन, संगठित समूह या राज्य, समाज और धार्मिक समूह रोक नहीं सकता। स्वतंत्र और नित नये विचारों का अंतहीन सिलसिला प्रकृति का अपने कृतित्व मनुष्य को दिया गया कालजयी उपहार है। जिसे कोई मनुष्य या मनुष्य निर्मित कोई संगठन, समूह या संस्थान कभी रोक नहीं सकता।जब तक दुनिया में मनुष्य का अस्तित्व है तब तक नये विचार और विचार प्रवाह को मनुष्यकृत समूह रोक नहीं सकता। जैसे हवा और प्रकाश को नहीं बांधा जा सकता वैसे ही मनुष्य समाज में विचार प्रवाह को नहीं रोका जा सकता।
इस दुनिया में प्रागैतिहासिक काल से लेकर आज तक मनुष्य की कहानी ख़यालात बदलने से हालात बदलने की अंतहीन कहानी है। ख़यालात से हालात बदलते ही रहेंगे यह हमारी दुनिया या जिन्दगी का सत्य है। हमारे ख़यालातों से ही पुरातनकाल से आधुनिक काल तक हालातों में बुनियादी बदलाव आया है। हालात बदलने से ख़यालात भी बदलते हैं और ख़यालात बदलने से हालात बदलते रहते हैं। ख़यालात और हालात की अंतहीन जुगलबंदी के बाद भी यदि किसी मनुष्य, समाजिक, धार्मिक, राजनैतिक और आर्थिक समूह को यह लगता है कि उनके विचार ही अंतिम विचार है और मनुष्य को नये विचार को आत्मसात करने से बचना चाहिए। यह एक विचार और व्यवहार विरोधी ख्याल है जिसे वे मनुष्य समाज के समक्ष व्यक्त तो कर सकते हैं । मनुष्य समाज पर भय,लोभ लालच, संगठन और सत्ता के बल पर लाद नहीं सकते। प्रकृति हमें सारे बदलावों में जीने का अवसर और शिक्षण देती है । साथ ही अपने हालातों को बदलने के लिए नये ख़यालातों के साथ निरंतर जीवन्त दिमाग से जीते रहने का आजीवन अवसर भी उपलब्ध कराती हैं।
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