एस.एन सुब्बराव
महात्मा गांधी को ऐसे जियें
अमेरिका के चुने अच्छे लोग भारत में राजदूत बनकर आए। उनमें से एक बुद्धिजीवी थे – चेस्टर बौल्स। जिन्होंने भारत को लेकर एक सुंदर किताब लिखी, उनकी बेटी ने भी एक किताब लिखी।
वर्ष 1964-65 की बात है। एक दिन मैंने उनके कार्यालय में फोन किया और मिलने के लिए समय लिया। उन दिनों नेताओं और राजदूतों से मिलना आज जैसा कठिन नहीं था। उस समय मेरी उम्र कोई 35-36 वर्ष की थी। कुशलतापूर्वक मैंने श्री चेस्टर बौल्स से कहा ’’मि. बौल्स आपकी लिखी किताब की मैं प्रशंसा करने तथा धन्यवाद देने के लिए आया हूं। वे अचंभित और आनंदित भी हुए। उन्हें अच्छा लगा कि इस नौजवान ने उनकी किताब पढ़ी है।‘
मैंने कहा कि ’’आपकी किताब में लिखे एक वाक्य ने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया है!’’ उन्होंने उत्सुकता से पूछा ’’कौन सा वाक्य?’’ । मैंने कहा आपकी किताब में लिखा है, ’’भारत में नेतृत्व की दिशा झोपड़ी से राष्ट्रपति भवन की ओर नहीं बल्कि महल से माटी की झोपड़ी की ओर!’’ The route of a leader in India is not from the log cabin at the White house but from the mission to the mud hut!”
बौल्स साहब को अच्छा लगा और उन्होंने अपनी बात सुनायी। राजदूत का पद सम्हाले दिल्ली पहुंचा तो मैंने ड्रायवर से कहा ’’सबसे पहले मुझे राजघाट जाना है।’’
चेस्टर बौल्स ने कहा ’’मैं राजघाट गया और महात्मा गांधी की समाधि के सामने खड़ा हुआ। मेरे दिमाग में यह बात आई, ’’ मेरे अमेरिका देश में प्रवासी आते हैं तो हमारे भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की मूर्ति देखने आते है। वाशिंगटन में ऊंचे पत्थर के चबूतरे पर लिंकन की बैठी मूर्ति है। पास में उनकी वाणियां जैसे by the people, of the people, for the’ आदि लिखी है। लिंकन की कहानी क्या है? गरीब की झोपड़ी में पैदा हुए। अमेरिका में हमारी जैसी झोपड़ी तो नहीं है पर गरीब की लकड़ी की झोपड़ी होती है। ऐसा एक लड़का राष्ट्रपति हो गया तो दुनिया उसे देखने और गौरव अर्पित करने आती है।
आपका यह कैसा देश है! गांधीजी दीवान के घर-महल में जन्मे लेकिन अपनी मर्जी से ही सेवाग्राम की झोपड़ी में रहने लगे ! और प्रवासी उनके दर्शन के लिए आते हैं।’’
भूतपूर्व राष्ट्रपति की पत्नी हिल्लेरी क्लिंटन ने साबरमती गांधी आश्रम देखने के बाद उद्धत किया था ’’इस युग के सबसे बड़े महापुरूष ने कितना साधारण जीवन जिया!’’
साबरमती गांधी आश्रम का पुनः उद्धार करते समय भारत का संदेश सादगी का सार्वभौमित्व को स्मरण में रखा जाए।
मृत्यु में संदेश
फौज में भर्ती होना है तो जवान की ऊंचाई, वजन, सीना आदि देखा जाता है। लेकिन गांधी फौज अहिंसक शांति के लिए शरीर मापा नहीं जाएगा न तो शारीरिक शक्ति से। उसकी शर्त है एकादश व्रत अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, असंग्रह, शरीरश्रम, अस्वाद, सर्वत्र भय वर्जनं। सर्व धर्म समानत्व, सर्वत्र भयवर्जनं, सर्व धर्म समानत्वृ स्वदेशी, स्पर्श भावना। इनमें 10 व्रत तो ऐसे हैं जो स्वयं अपने से संबंध है, जिनका हमें पालन करना है। एक गुण सर्वत्र भयवर्जनं ऐसे है जो दूसरे से संबंध रखता है। गांधीजी बार-बार याद दिला रहे थे कि अहिंसक सत्याग्रही को निर्भय होना जरूरी हैं। अपने जीवन में भी उन्होंने बताया।
दक्षिण अफ्रीका में जब परमिट कागज विरोध किया तब अंग्रेजी सरकार से संघर्ष था। जब कागजों को जलाने लगे तब अंग्रेज पुलिस उनको लाठियों से पीटने लगे । लेकिन वकील गांधी तब महात्मा नहीं बने थे, बराबर परमिट कागजों को जलाते रहे। पिटाई से रूके नहीं।
अंतिम समय में निर्भयता का ज्वलंत उदाहरण पेश हुआ। मृत्यु के ठीक 10 दिन पूर्व यानि 20 जनवरी को प्रार्थना के समय बगल में बम विस्फोट हुआ। प्रार्थना सभा ऐसे समय चलती रही जैसे कुछ हुआ ही नहीं। वॉयसराय का निवास पास में ही था तो लार्ड़ व लेड़ी मौउंटबेटन तुरंत दौड़े आए। प्रार्थना समाप्त हो गई थी तो मौउंटबेटन दंपति उनके कमरे में गांधीजी से मिले। मौउंटबेटन बोले, गांधीजी आपको बधाई देने आए हैं कि आप सुरक्षित हैं।
गांधी जी बोले ’’माउंटबेटन, इसमें बधाई की बात कहां है? गांधी तो तब बधाई पात्र होगा जब उसे कोई सामने से गोली मारे तो भी वह ईश्वर का नाम लेते शांति से मर जाए।’’
मौंउटबेटन इस बात को याद करके आश्चर्य प्रकट करते थे कैसे गांधीजी ने भविष्यवाणी की थी।
’’हे राम’’ कोई गोली लगने के बाद सोचकर नहीं कहा। उनके मन में तो राम चौबीसा घंटे रहता था तो वह शब्द बाहर आ गया। अहिंसक निर्भयता का कैसा स्वर्णिम संदेश दुनिया को मिला !
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