आर्थिक हित पोषक बनने के स्थान पर शोषक बन जाते है,...
कोरोना के बाद विश्व को टिकाने का रास्ता प्रकृति अनुकूलन ही है। प्रकृति के विपरीत समाजवाद में भी पूंजी की परिभाषा अच्छी नहीं थी, इसलिए पूंजीवाद और समाजवाद दोनों में ही प्राकृतिक आस्था नहीं है और प्राकृतिक संरक्षण सिमटा है। जब भी विश्व में प्रकृति के विपरीत ही सब काम होने लगे तो प्रकृति का बडा हुआ क्रोध महाविस्फोट बनता है और उससे प्राकृतिक आपदाएं निर्मित होती है। कोरोना को आपदा भी मान सकते है। महामारी केा प्रलय भी कहा जा सकता है। भारत इस महामारी से अपने परंपरागत ज्ञान आयुर्वेद द्वारा बहुत से कोरोना प्रभावितों को स्वस्थ बना सका है। बहुत लोगों के प्राण बचे है। इस आधुनिक आर्थिक तंत्र ने आयुर्वेद जैसी आरोग्य रक्षण पद्धति को सफल बनने का मौका ही नहीं दिया गया। उसने आर्थिक लाभ के लिए केवल चिकित्सा तंत्र को ही बढावा है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था की तरफ लौटने का वक्त
सुरेंद्रसिंह शेखावत
कोविड-19 से बचने के लिए लगाए गए ‘लॉक डाउन’ के तीसरे चरण में यह सवाल उठना लाजिमी है कि अब कोरोना के बाद...
कोरोना से कम प्रभावित हैं वनों से आच्छादित मध्यप्रदेश के जिले
वन विभाग की अध्ययन रिपोर्ट : मध्यप्रदेश में है देश का सर्वाधिक वन क्षेत्र
मध्यप्रदेश वन विभाग द्वारा कोरोना को लेकर किये गये अध्ययन की...
‘किसान को सम्मान दो – किसानी को मान दो’
16 और 27 मई को होगी 234 किसान संगठनों की देशव्यापी कार्यवाही
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (AIKSCC) ने 16 मई को लॉक डाऊन...
बीजासन घाट में फंसे हज़ारों मजदूरों को झेलनी पड़ रही प्रशासनिक...
जागृत आदिवासी दलित संगठन ने भेजे मुख्यमंत्री को मजदूरों हित में सुझाव
बड़वानी जिले में सेंधवा के बीजासन घाट में रोज महाराष्ट्र सरकार द्वारा निरंतर फंसे...
‘आत्मनिर्भरता’ प्राकृतिक संसाधनों के साथ आती है, उसे लुटाने से...
‘जन आंदोलनों काराष्ट्रीय समन्वय’ ने की श्रमिकों के हित के लिए मांगें
‘जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय’ (एनएपीएम) ने कहा है कि देश के संसाधनों के...