आचार्य विनोबा भावे : सच्चे अर्थ में लोकशाही कहीं नहीं...
11 सितंबर : विनोबा जयंती पर विशेष
हर महापुरूष का सोचने-विचारने और चिंतन का अपने निराला ढंग होता है। अपने चिंतन का जो नवनीत अपने...
क्या लोकतंत्र के असली स्वरूप तलाशने की संभावनाएँ खत्म हो...
विकास की अंधी दौड़ में गरीबी, भुखमरी, कुपोषण, बेरोजगारी, अन्याय, शोषण, भ्रष्टाचार, बलात्कार, हिंसा हमारे ऊपर हावी हो रही है। लोक, जो कि...
गंगा अविरलता के बिना निर्मल नहीं हो सकती
नदियों में लगातार बढ़ती गाद नदियों के अस्तित्व के लिए खतरा बनती जा रही है। पिछले 60 वर्षों में नदियों में निरन्तर घट रही...
प्लास्टिक पर पाबंदी: कानूनी पहल जरूरी
प्लास्टिक कचरा एक विकट समस्या बन चुका है। प्लास्टिक और पॉलीथिन के बढ़ते उपयोग को रोकने के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने कानून भी बनाया...
शराबबंदी को टालती सरकारें
किसी भी हाइवे से शराब की दुकानें कम-से-कम 500 मीटर की दूरी पर हों-सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश को लेकर शराब ठेकेदारों, शराब उत्पादकों...
आदिवासी जानते हैं स्वाद और पौष्टिकता
आदिवासी समाज के पास खान-पान का अपना एक तंत्र है। यह अपने आप में पूर्ण है तथा इसी के चलते आदिवासी समाज शताब्दियों से...