आज हुई थी विश्व प्रसिद्ध चिपको आंदोलन की शुरूआत

डॉ.ओ.पी.जोशी

उत्तराखंड के रेणी गांव निवासी श्रीमती गौरादेवी ने भी 26 मार्च, 1974 की रात को अन्य महिलाओं के साथ जागकर पेड़ों की कटाई रूकवाकर विश्व प्रसिद्ध चिपको आंदोलन की शुरूआत की थी। हमारे देश के अलावा दुनिया के कई अन्य देशों में भी महिलाओं ने जंगल एवं पेड़ बचाने हेतु संघर्ष किया एवं सफलता प्राप्त की।

हमारे देश में राजस्थान की श्रीमती अमृता देवी ने वहां बहुतायत से पाये जाने वाले खेजड़ी पेड़ों को बचाने हेतु लगभग 230 वर्ष पूर्व अपनी बेटियों एवं गांव के 363 लोगों के साथ बलिदान दिया था। उत्तराखंड के रेणी गांव निवासी श्रीमती गौरादेवी ने भी 26 मार्च, 1974 की रात को अन्य महिलाओं के साथ जागकर पेड़ों की कटाई रूकवाकर विश्व प्रसिद्ध चिपको आंदोलन की शुरूआत की थी। हमारे देश के अलावा दुनिया के कई अन्य देशों में भी महिलाओं ने जंगल एवं पेड़ बचाने हेतु संघर्ष किया एवं सफलता प्राप्त की।

कैलिफेर्निया में पाये जाने वाले कोस्टल रेडवुड के पेड़ दुनिया में सर्वाधिक प्राचीन एवं ऊँचे थे। 1990 के प्रारंभ में शासन ने नार्थ कैलिफोर्निया की एक कंपनी- पेसिफीकलम्बर को रेडवुड के इन पेड़ों के मध्य ईल नदी के किनारे पर एक हजार वर्ष पुराना एवं 200 फीट से ऊँचा विशाल पेड़ था। आसपास के सभी लोग चाहते थे कि यह प्राचीन वृक्ष नहीं काटा जाये। इसे बचाने हेतु लोग समूहों में अलग-अलग समय वहां आकर निगरानी करने लगे। निगरानी करने का यह कार्य धीरे- धीरे कम होने लगे। इसी बीच एक 27 वर्षीय युवती जुलिया हील को यह लगा कि शायद किसी दिन कंपनी के कर्मचारी मौका देखकर यह पेड़ काट देंगे एवं फिर पश्चाताप के अलावा कुछ नहीं बचेगा।

जुलिया ने किसी भी हालत में पेड़ बचाने हेतु संघर्ष प्रारंभ किया एवं 10 दिसंबर, 1997 को अपनी सहेलियों सहित पेड़ के पास गयी, नमन किया एवं नंगे पैर रस्सी की सहायता से लगभग 150 फीट ऊँचाई पर चढ़कर वहीं एक मचान बनाकर बैठ गयी कि कोई पेड़ नहीं काट सके। मौसम की विपरीत परिस्थितियांे का सामना करने हेतु जुलिया ने पेड़ पर ही टहनियों, पत्तियों, छाल एवं कागज आदि की मदद से एक छोटा कमरा बना लिया। पेड़ों पर से ही जुलिया ने घोषणा की  कि पेड़ को काटने का निर्णय वापस लिया जाए या फिर उसे मारकर यह कार्य किया जावें। इस निर्णय को पलटाने हेतु पेड़ काटने वाली कंपनी के लोगों ने जुलिया को परेशान करना शुरू किया। रात के समय उसके कमरे के पास हैलीकाॅप्टर से तेज शोर किया जाता, तेज प्रकाश डाला जाता एवं कमरे को तोड़ने का प्रयास भी कई बार किया गया। इन परेशानियों के साथ-साथ धमकी देकर पैसे का लालच भी दिया गया।

प्राकृतिक हालातों में भी जुलिया परेशान होती रही। शीतकाल में शरीर के कुछ भागों में शीत दंश (फ्रास्टवाइट) हुआ एवं तेज गति से चलने वाली बर्फीली हवाओं ने भी जुलिया को डराया। कई बार ऐसे अवसर भी आये कि शायद जुलिया को पेड़ से उतरना पड़े, परंतु जुलिया ने मानव जन्म एवं प्राकृतिक, दोनों हालातों का धैर्यपूर्वक सामना किया एवं पेड़ पर बैठी रही। पेड़ पर रहने एवं पेड़ के लिए जान देने की बात का जब आसपास के लोगों को पता चला तो वे यहां नियमित रूप से आकर जुलिया के कार्य को समर्थन देने लगे। जुलिया के मित्रों एवं सहयोगियों, सोल्म-आरोरी, रेडियो व मोबाइल के साथ पेयजल एवं खाने का सामान पहुंचाने लगे। इन उपकरणों से जुलिया मीडिया से काफी जुड़ गयी एवं अपने कार्य तथा पेड़ व जंगल के महत्व को समझान लगी। कई लेख भी पत्र -पत्रिकाओं में भेजें।

जुलिया के पेड़ पर चढ़ने का एक वर्ष होने पर 10 दिसंबर 1998 को प्राचीन पेड़ के नीचे संगीत व नृत्य का कार्यक्रम आयोजित किया गया। जुलिया भी अपने कमरे में थोड़ा नाची। जुलिया के समर्थन में बढ़ता जोश देखकर कंपनी का रूख थोड़ा नरम हुआ एवं जंगल काटने का फैसला वापस लिया गया। कंपनी ने लिखकर दिया कि प्राचीन पेड़ नहीं काटा जायेगा। इस लिखित आश्वासन के प्राप्त होने पर जुलिया 18 दिसंबर, 1999 को 728 दिन बाद नीचे उतरी। नीचे उतरने की घटना का काफी प्रचार-प्रसार मीडिया ने किया। नीचे आने पर एक पत्रकार ने पूछा कि कैसा लग रहा है? इस पर जुलिया ने दृढ़ता से कहा कि जो मैंने चाहा था, करके दिखाया, परंतु अपने सबसे अच्छे दोस्त पेड़ से बिछुड़ने का दुःख है। इस पर एक दूसरे पत्रकार ने टिप्पणी की यह तो जुलिया व लूना की प्रेम कथा का अंत है। इस प्रकार जुलिय के जुनून में एवं पेड़ के प्रति पे्रम ने एक मिसाल कायम कर दी, जिसे हम चिपको आंदोलन की प्रेरणा मान सकते हैं। पेड़ बचाने हेतु पेड़ पर रहने का विश्व कीर्तिमान भी जुलिया के नाम रहा।(सप्रेस)

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