अगर आज पेड़ काट दिए गए, तो कल हमारी साँसे भी कट जाएँगी

इंदौर, 13 अप्रैल। इंदौर की पहचान सिर्फ उसकी सफाई या विकास योजनाओं से नहीं, बल्कि उसकी हरियाली और जागरूक नागरिकों से भी है। हाल ही में हुकुमचंद मिल क्षेत्र में प्रस्तावित पेड़ों की कटाई के विरोध में नागरिकों द्वारा बनाई गई मानव श्रृंखला का दृश्य इसी बात की गवाही देता है कि शहर की जनता अब पर्यावरण के मुद्दों पर भी एकजुट होकर आवाज़ बुलंद कर रही है। यह सिर्फ विरोध नहीं था, यह एक भावनात्मक पुकार थी — आने वाली पीढ़ियों के लिए एक हरा-भरा इंदौर छोड़ने की।

रीगल तिराहा बना हरियाली के समर्थन का केंद्र

रविवार को आयोजित हरियाली बचाओ आंदोलन में  शहर के विभिन्न वर्गों से जुड़े सैकड़ों लोग शामिल हुए। सैकड़ों महिला-पुरुष, युवा, बुज़ुर्ग और बच्चे — सभी हाथों में पर्यावरण-संवेदनशील नारों की तख्तियाँ लिए सड़कों के दोनों ओर खड़े थे। वे “पेड़ बचाओ”, “हरियाली बचाओ”, “इंदौर को सांस लेने दो” जैसी तख्तियां थामे थे। इस मौके अगुवाई करने वालों में पद्मश्री जनक पल्‍टा, पद्मश्री भालू मोढे, पत्रकार अर्जुन रिछारिया, प्रो. शंकरलाल गर्ग, पर्यावरण जानकार डॉ. ओ. पी. जोशी, डॉ. दिलीप वागेला, अजय लागू, अभय जैन, प्रमोद नामदेव, कुमार सिद्धार्थ, संदीप खानविलकर, अखिलेश जैन, अशोक गोलाने, अशोक दुबे, राहुल निगोरे, चंद्रशेखर गवली, डॉ. अजीज इरफान, लोकेंंद्र त्रिवेदी, गुरमी‍त सिंह, डॉ. जयश्री सिक्‍का, सुलभा लागू, शैला शिंत्रे, प्रार्थना दुबे आदि विशेष रूप से उपस्थित थे। इस आंदोलन का लक्ष्य साफ है कि हुकुमचंद मिल परिसर में हो रही पेड़ों की कटाई को रोकना और हरियाली को बचाना।

राजनीति नहीं, यह जनमानस की आवाज है

इस शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन ने न केवल स्थानीय प्रशासन का ध्यान आकृष्ट किया बल्कि आम जनमानस में पर्यावरण चेतना की एक नई लहर भी जगाई। “हरी भरी अहिल्या नगरी” को बचाने का यह प्रयास अब केवल एक क्षेत्रीय मांग नहीं रह गया, बल्कि यह एक व्यापक जन चेतना का स्वरूप लेता जा रहा है।

इस आंदोलन की विशेषता यह रही कि इसमें किसी राजनीतिक दल का दखल नहीं था। इसे शुरू किया पर्यावरणप्रेमी संस्थाओं और आम नागरिकों ने। डॉक्टर, शिक्षक, छात्र, प्रोफेसर, सामाजिक कार्यकर्ता और कई स्‍वैच्छिक संगठनों ने इसमें सक्रिय भागीदारी निभाई।

यह प्रदर्शन उस व्यापक मानसिकता को दर्शाता है जो आज की पीढ़ी में तेजी से विकसित हो रही है कि विकास केवल इमारतों से नहीं होता, उसमें पेड़ों की छांव, साफ हवा और संतुलित पर्यावरण भी उतने ही महत्वपूर्ण घटक हैं। यह विरोध दरअसल एक पुकार है — आने वाली पीढ़ियों के लिए एक शुद्ध, सुरक्षित और हरा-भरा इंदौर छोड़ने की।

पिछले कुछ समय से हुकुमचंद मिल परिसर में हरियाली और पुराने पेड़ों को हटाकर विकास के नाम पर निर्माण कार्य किए जाने की तैयारियाँ शुरू हो चुकी थीं। यह स्थिति पर्यावरण प्रेमियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और जागरूक नागरिकों के लिए चिंता का कारण बन गई। नतीजा यह हुआ कि इंदौर की जनता ने स्वस्फूर्त रूप से हरियाली बचाने के लिए जन आंदोलन की शुरुआत की।

उल्‍लेखनीय है कि हाल के वर्षों में हुकुमचंद मिल की खाली पड़ी ज़मीन पर पुनर्विकास और व्यावसायिक निर्माण की योजनाओं के चलते इन पेड़ों के अस्तित्व पर संकट गहराता जा रहा है। स्थानीय पर्यावरणविदों और नागरिक संगठनों द्वारा यह चिंता व्यक्त की जा रही है कि यदि इन पेड़ों की कटाई हुई, तो इंदौर की जलवायु, वायु गुणवत्ता और जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

बढ़ते तापमान और प्रदूषण के खिलाफ जन चेतना

आंदोलनकारियों का कहना था कि बढ़ती आबादी, वाहनों की संख्या और शहरीकरण के चलते इंदौर का पर्यावरण पहले ही संकट में है। अगर अब पेड़ों को बचाया नहीं गया, तो आने वाले वर्षों में इंदौर सिर्फ कंक्रीट का जंगल बनकर रह जाएगा। शहर के तापमान में तेज़ी से हो रही वृद्धि, पक्षियों और जीव-जंतुओं का गायब होना और वायु की गुणवत्ता का गिरना इसी ओर संकेत कर रहा है।

प्रदर्शनकारियों कहा है कि वे विकास के विरोधी नहीं हैं, लेकिन विकास का मायने यह नहीं कि हम प्रकृति का ही नाश कर दें। ज़रूरत इस बात की है कि विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाया जाए। स्थानीय प्रशासन से यह मांग की जा रही है कि हुकुमचंद मिल परिसर को ‘हरित क्षेत्र’ घोषित किया जाए, जिससे वहाँ की हरियाली को कानूनी संरक्षण मिल सके।

इंदौर ने दिखाई दिशा, अब प्रशासन की बारी

यह जन आंदोलन न केवल इंदौर, बल्कि पूरे देश के लिए एक संदेश है कि आम नागरिक अब सिर्फ मूक दर्शक नहीं रहेंगे। वे अपने शहर, अपने पेड़ों और अपने पर्यावरण के लिए आवाज़ उठाने को तैयार हैं।

हुकुमचंद मिल, इंदौर: हरित धरोहर की रक्षा की पुकार

इंदौर के ऐतिहासिक हुकुमचंद मिल परिसर में स्थित सैकड़ों पुराने पेड़ न केवल शहर की हरियाली का प्रतीक हैं, बल्कि जैव विविधता के भी महत्वपूर्ण संरक्षक हैं। वर्षों से यह परिसर पीपल, नीम, बरगद, अमलतास और गुलमोहर जैसे वृक्षों का घर रहा है, जो पक्षियों, कीटों और अन्य जीव-जंतुओं के प्राकृतिक आवास के रूप में कार्य करते हैं।

इंदौर के पर्यावरण प्रेमियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा पेड़ों को बचाने के लिए हस्ताक्षर अभियान, धरने और जन-जागरूकता रैलियाँ चलाई जा रही हैं। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में पेड़ों की सुरक्षा हेतु जनहित याचिका दाखिल की गई है, जिसमें यह मांग की गई है कि निर्माण कार्य से पूर्व पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (EIA) अनिवार्य रूप से कराया जाए।

कुछ विशेषज्ञ यह सुझाव दे रहे हैं कि यदि पुनर्विकास किया ही जाए, तो उसे ट्री-फ्रेंडली डेवलपमेंट” मॉडल के तहत किया जाए, जिसमें पेड़ों को न काटते हुए योजनाबद्ध ढंग से संरक्षित किया जाए।