विमल भाई के निधन से हिमालय की एक आवाज गुम हो गई
दिल्ली, 15 अगस्त। प्रसिद्ध समाजसेवी, पर्यावरण विद, नदियों को बचाने के लिए जीवन भर संघर्ष करने वाले जुझारू नेता, राष्ट्रीय जनआंदोलनों के संगठन (एनएपीएम) के राष्ट्रीय समन्वयक विमल भाई ( 60 वर्ष) का 15 अगस्त 22 को निधन हो गया। वे करीब पांच दिन से एम्स दिल्ली में भर्ती थे। डॉक्टरों ने उन्हें बचाने की पूरी कोशिश की, लेकिन कई अंग खराब होने के कारण, उनके शरीर ने हार मान ली। 10 अगस्त को उन्हें सफदरजंग अस्पताल ले जाया गया था और उसी शाम उन्हें फेफड़े, गुर्दा और किडनी आदि से संबंधित गंभीर जटिलताओं के कारण एम्स में भर्ती कराया गया।
बेहद जिंदादिल जुझारु रहे विमल भाई निरंतर मानवीय और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए सक्रिय रहे। दिल्ली में होने वाले हर जनआंदोलनों में बढ़-चढ़ कर भूमिका निभाते रहे हैं। उत्तराखंड के पर्यावरण के संबंध में भी वे सदैव चिंतित रहे। साथ ही समय समय पर वह आवाज उठाते रहे। वे माटू जन संगठन के संयोजक थे।
गंगा हो या नर्मदा, नदियों के मुक्त रूप से बहते रहने के प्रति उनका जुनून चार दशकों से अधिक समय तक चलते हुए, उनके काम की पहचान बन गया है। उन्होंने नदियों पर आधाधुंध तरीके से निर्मित बांधों और प्रदूषण का लगातार विरोध किया और खासकर टेहरी-गढ़वाल इलाके, उत्तराखंड में माटू जन संगठन से जुड़कर ‘विकास’ की प्रक्रियाओं में आम जन की भागीदारी के अधिकार के लिए लड़ते रहे।
विमलभाई ने वास्तव में अपने संघर्ष और एकजुटता के काम में प्रतिरोध के इंद्रधनुषीय रंगों का प्रतिनिधित्व किया। बांध विरोधी और पारिस्थितिक आंदोलनों में सक्रिय आयोजक होने से लेकर खोरीगांव के बस्ती वासियों के संघर्ष तक, राजस्थान में खनन विरोधी संघर्षों में मदद करने से लेकर ‘अमन की पहल’ के माध्यम से नफरत और सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ अभियानों में सबसे आगे रहना, ट्रांस और क्वीअर अधिकारों के लिए खड़े होने से लेकर राजनीतिक बंदियों की रिहाई का समर्थन करने और कश्मीरियों के आत्मनिर्णय के अधिकार पर जोर देने तक, वह हमेशा लोगों और प्रकृति के साथ थे। वे कई वर्षों से NAPM के राष्ट्रीय संयोजकों में से एक थे।
उत्तराखंड में लेखक रक्षासूत्र आन्दोलन के प्रेरक, सामाजिक कार्यकर्ता व पर्यावरणविद सुरेश भाई के मुताबिक, विमल भाई के निधन से हिमालय की एक आवाज गुम हो गई है। वे हिमालय की नदियों को बचाने के लिए वर्षों से संघर्ष कर रहे थे। विमल भाई ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने उत्तराखंड समेत हिमालय क्षेत्र के राज्यों में नदियों पर बनने वाले बड़े-बड़े बांधों के निर्माण से पहले जनसुनवाई करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार पर दबाव बनाया था। उन्होंने बांधों के संबंधित पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्टें आम जनता के बीच में हिंदी में उपलब्ध करवाई है।
उत्तराखंड में तो भागीरथी, अलकनंदा, यमुना, टौंस आदि नदियों पर प्रस्तावित 600 से अधिक बांधों की सूची उन्होंने जनता के सामने प्रस्तुत की। टिहरी बांध विरोध में सुंदरलाल बहुगुणा के साथ रहकर उन्होंने घर-घर में विस्थापितों को जागरूक करने का काम किया था। वह ऐसे प्यारे और हंसमुख नौजवान थे, जिन्होंने गरीब से गरीब व्यक्ति को नदियों पर बनने वाली बड़ी- बड़ी परियोजनाओं से क्या नुकसान हो सकते हैं। उसके बारे में आगाह किया है। इस संबंध में आज भी हमारे पास उनके द्वारा लिखे गए साहित्य उपलब्ध है। आज भी हजारों लोग उनकी उपस्थिति को अपने बीच दर्ज मानते हैं, क्योंकि बांध प्रभावित कोई भी गांव उत्तराखंड का ऐसा नहीं होगा जहां पर वह नहीं गए।
हिमालय की इस वेदना को वे दिल्ली जाकर प्रभावितों की आवाज को केंद्र और राज्य सरकार तक पहुंचाते रहे हैं। मातृ सदन में रहने वाले महान ऋषि व संतो के साथ मिलकर भी उन्होंने उत्तराखंड के जल, जंगल, जमीन बचाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मेधा पाटकर के साथ नर्मदा बचाओ आंदोलन में लगातार सक्रिय थे।
उनका अंतिम पत्र 25 जुलाई, 2022 को नई राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी को लिखा गया था, जिसमें उन्होंने आदिवासियों पर दमन को समाप्त करने, पांचवे अनुसूची क्षेत्रों में उनके अधिकारों को बनाए रखने, और आदिवासियों के अद्वितीय सांस्कृतिक, भाषाई, धार्मिक जीवन शैली की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाने का आह्वान किया था। वह दशकों तक नर्मदा संघर्ष के दृढ़ समर्थक रहे और उन्हें उम्मीद थी कि राष्ट्रपति नर्मदा जीवनशालाओं के आदिवासी छात्रों से मिलेंगी, ताकि मौजूदा सरकार द्वारा नर्मदा अभियान पर गलत तरीके से किए गए हमले को वह समझ सकें।
हमेशा सादा और गैर-उपभोक्तावादी बने रहने वाले विमलभाई अक्सर उन आंदोलन साथियों के लिए ‘गो-टू’ व्यक्तियों में से एक थे, जो धरने, प्रदर्शनों और प्रतिनिधिमंडलों की योजना के साथ दिल्ली आते थे। उनका घर हमेशा सभी आंदोलनों के कार्यकर्ताओं के लिए खुला रहता था। वह एक उत्कृष्ट रसोइया, कलाकार, कवि, डाक्यूमेंट्री निर्माता, प्रचारक, मित्र- एक पैक में सब थे। एक आंदोलन कार्यकर्ता के रूप में अत्यंत कुशल, वे अधिकारियों और संस्थानों को लोगों के अधिकारों और देश के जनवादी कानूनों के प्रति जवाबदेह ठहराने के लिए सभी लोकतांत्रिक साधनों का सुघड़ उपयोग किया करते थे। वह ऐसे व्यक्ति थे जो ‘संघर्ष-निर्माण’ के ज़मीन से लेकर अदालतों व संसद तक हिलाने में दृढ़ विश्वास रखते थे। सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के कई फैसलों, कानूनों पर उनकी छाप निश्चित रूप से देखी जा सकती है। वह हमेशा युवाओं के साथ जुड़ने और उन्हें प्रशिक्षित करने के लिए उत्सुक रहते थे और हममें से कई लोगों ने वर्षों से उनके साथ अपने जुड़ाव से बहुत कुछ पाया है।
उनका कार्य और संघर्ष हमेशा याद किया जाएगा। हमें विश्वास नहीं था कि विमल भाई इतनी जल्दी हमारे बीच से चले जाएंगे। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के अनेक काम करते हुए कभी अपने स्वास्थ्य की कोई परवाह नहीं की है। जिसके कारण बीमारी अकस्मात उन्हें ले गई। हम उत्तराखंड के लोग उनके हमेशा ऋणी इसलिए रहेंगे कि उन्होंने अपने लिए कभी किसी सम्मान और पुरस्कार की मांग न करते हुए वास्तव में पर्यावरण संरक्षण की आवाज को बुलंदी दी है।
सर्वोदय प्रेस सर्विस के लेखक बिरादरी समूह से जुडे रहे विमल भाई ने पर्यावरण, विकास, बांध, विस्थापन जैसे पहलुओं पर टिहरी, नर्मदा बांध के अलावा अन्य स्थानीय बांधों पर कई विश्लेषणात्मक आलेख लिखे जो देश के कई लब्ध प्रतिष्ठित अखबारों में प्रकाशित भी होते रहे है। विमल भाई के असामयिक निधन से जनांदोलनों का एक सशक्त जाबांज कार्यकर्ता खो दिया है।
एनएपीएम ने जारी अपने शोक संदेश में कहा कि विमल भाई, हम आपको हमेशा और हमेशा के लिए याद करेंगे, लेकिन हम आपको अपने दिलों में, अपने चल रहे संघर्षों में संजोएंगे, क्योंकि हमारे पास अपने लोकतंत्र को फासीवादी और कॉर्पोरेट हमले से, गहराते पारिस्थितिक और जलवायु संकट से बचाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है