नर्मदा के विशेष सम्मेलन में पर्यावरण विशेषज्ञों व जानकारों का मतंव्य
बड़वानी 8 जून । नर्मदा घाटी : आज और कल की चुनौतियां विषय पर नर्मदा बचाओ आंदोलन द्वारा बड़वानी में बुधवार (7 जून) को आयोजित विशेष सम्मेलन में नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटकर ने कहा कि नर्मदा घाटी दुनिया की सबसे पुरानी घाटी है, जहां आदिमानव और एशिया खंड के पहले किसान का भी जन्म हुआ था। यह पुरातत्व शास्त्री के शोध में निकलकर आया है। नर्मदा पर निर्मित सिंचाई और बिजली परियोजनाओं के लाभ – हानि का दावा सबंधी तथ्य प्रदेश के समक्ष लाना आवश्यक है। आज नर्मदा घाटी में पीढि़यों से निवास कर रहे किसान, मजदूर, पशुपालक, मछुआरे और आदिवासी समुदाय के लोग विकास परियोजनाओं से हैरान परेशान हैं। इस मौके पर प्रसिद्ध पर्यावरणविद सुभाष पांडे, सुप्रसिद्ध खेती विशेषज्ञ अरूण डिके, वरिष्ठ पत्रकार और चिंतक रामस्वरूप मंत्री, बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ के राजकुमार सिन्हा, भोपाल के पार्षद मोहम्मद शाउफ एवं पत्रकार अशरफ भी विशेष रूप से उपस्थित थे।
पर्यावरणविद सुभाष पाण्डेय ने कहा कि समाचार पत्रों में यह प्रमुख शीर्षक बनाया जाता है कि नर्मदा 75 प्रतिशत साफ हो गई है जबकि सरकारी दस्तावेज और अलग- अलग जगहों से लिया गया नर्मदा जल की जांच रिपोर्ट से कुछ अलग ही जानकारी प्राप्त हो रही हैं। मैंने रेत खनन, नर्मदा कछार से खत्म होते जंगल, शहरों एवं फैक्ट्री का नर्मदा गंदा पानी नर्मदा में मिलने जैसी सैकड़ों प्रकरण हरित न्याय प्राधिकरण में दायर किया हूं और पर्यावरणीय अनुकूल आदेश भी मिला है। परन्तु व्यवस्था इन सभी आदेशों पर अमल करने की जगह कुतर्क गढ़ने लगता है। उन्होंने कहा कि अगर यही स्थिति रही तो अगले पचास साल बाद नर्मदा खत्म हो जाएगी।
खेती, समाज और गांव को भी जैविक होना होगा
खेती विशेषज्ञ अरूण डिके ने कहा कि खेतों में रासायनिक खाद और कीटनाशक बंद कर जैविक खाद्य और कीटनाशक डालना ही जैविक खेती नहीं है। हवा, पानी, धूप के प्रकाश और वातावरण प्रदूषित कर जैविक नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा कि मैंने कृषि विषय पर इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। जब 1940 में अल्बर्ट हावर्ड की लिखी पुस्तक “खेती का वसीयतनामा” पढ़ा तो समझ आया कि मैं गलत दिशा में जा रहा हूं। आज लगभग तीस साल से जैविक खेती करने के बाद आपको यह बात बताने की स्थिति में हूं। हमारा खेती, समाज और गांव को भी जैविक होना होगा तब ही वर्तमान जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक संकट से बच सकते हैं।
बिजली उत्पादन से बनी राख नर्मदा को खाक में बदल देगी
बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ के राजकुमार सिन्हा ने कहा कि नर्मदा में 165 एमएलडी गंदा पानी प्रतिदिन दिन मिल रहा है। जिसमें सबसे ज्यादा 136 एमएलडी प्रतिदिन का योगदान जबलपुर के 200 डेयरियां का 20 लाख लीटर मलमूत्र, 10 लाख लीटर रेलवे का गंदा पानी, 25 हजार घरों की गंदगी,175 से ज्यादा अस्पतालों का संक्रमित पानी, 600 छोटे -बड़े गैराज व वाशिंग सेंटर का है। इनसे 30 लाख लीटर प्रति घंटा गंदा पानी नर्मदा में मिल रहा है। जबकि 4.5 लाख लीटर प्रति घंटा नगर निगम के वाटर ट्रिटमेंट की क्षमता है। इसी नर्मदा किनारे 22460 मेगावाट की थर्मल पावर प्लांट और 2800 मेगावाट की चुटका परमाणु बिजलीघर प्रस्तावित है। जिसमें 6900 मेगावाट की बिजलीघर पहली ईकाई बनाकर निर्माण प्रारम्भ कर दिया गया है। ज्ञात हो कि 1 मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए 3238 लीटर पानी और 0.70 टन कोयला प्रति घंटा लगता है। बिजली उत्पादन से 40 प्रतिशत बनी राख नर्मदा को राख से खाक में बदल देगा।
नर्मदा की वर्तमान दशा को आमजन तक ले जाने की आवश्यकता
वरिष्ठ पत्रकार राम स्वरूप मंत्री ने अपने उद्बोधन में कहा कि नर्मदा की वर्तमान परिस्थिति को आमजन तक ले जाने की आवश्यकता है। इसके लिए नर्मदा यात्रा के माध्यम से घाटी के लोगों से संवाद स्थापित करना होगा। मालवा की धरती गहन गंभीर पग- पग रोटी डग – डग नीर की कहावत उस समय की सम्पन्नता को दर्शाता है परन्तु अब परिस्थिति ऐसी हो गई है कि पानी उधार लेना पड़ रहा है। अगर हम अभी सचेत नहीं हुए तो हालात और गंभीर होने वाला है।
कार्यक्रम में घाटी की श्यामा बाई मछुआरा, दयाराम यादव, गोखरू, नूरजी वसावा, सियाराम, हरिओम ने भी बात रखी। कार्यक्रम का संचालन वाहिद मंसूरी ने किया।
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