नर्मदा बचाओ आंदोलन : संघर्ष और रचना के 36 वर्ष

डॉ. सुनीलम

नर्मदा बचाओ आंदोलन ने देश और दुनिया में वैकल्पिक विकास के मॉडल की ओर ध्यान आकृष्ट करने में सफलता पाई है । दुनिया के इतिहास में जमीनी स्तर पर विस्थापन और पुनर्वास के मुद्दे पर इतना लंबा प्रभावशाली और अहिंसक कोई दूसरा आंदोलन नहीं चला है। जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वयक को कार्य करते हुए 30 वर्ष हो चुके हैं तथा 350 से अधिक जन आंदोलन इस समन्वय के साथ जुड़े हैं।

नर्मदा बचाओ आंदोलन के नर्मदा घाटी में काम करते हुए 17 अगस्त को 36 वर्ष पूरे हो गए है। इस अवसर पर बड़वानी में ‘नर्मदा किसान- मजदूर जन संसद’ का आयोजन किया गया। किसान मजदूर जनसंसद को किसान नेता हनान मौला, राकेश टिकैत, योगेंद्र यादव, गुरजीत कौर तथा पूनम पंडित ने भारी बारिश के बीच उत्साहजनक वातावरण में बड़वानी शहर में  रैली निकालने के बाद संबोधित किया।

सभी वक्ताओं ने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा का नेतृत्व नर्मदा घाटी के लोगों को विशेषकर नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं को बधाई देने आया है। जिनकी प्रेरणा ने संयुक्त किसान मोर्चा के आंदोलन को सतत ऊर्जा प्राप्त होती रहती है । किसान नेताओं ने यहां तक कह डाला कि केंद्र सरकार नर्मदा बचाओ आंदोलन के अनुभव से यह समझ ले कि किसान 36 वर्षों तक अपने संघर्ष के लिए लड़ने के लिए संकल्पित है।

नर्मदा बचाओ आंदोलन 1985 में घाटी में शुरू हुआ था। 1969 से 79 तक नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण ने मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान के नुमाइंदों की सुनवाई हुई थी। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में 10 सालों तक सरदार सरोवर बांध का विरोध किया आखिर में मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्री बनने पर फैसला गुजरात के पक्ष में आया और 138.68 मीटर का बांध स्वीकृत हुआ। नर्मदा बचाओ आंदोलन के चलते विश्व बैंक ने 1993 में सरदार सरोवर की आर्थिक सहायता रोक दी। सरदार सरोवर से 40 हजार हेक्टेयर क्षेत्र डूबने वाला था जिसमें 244 गांव और एक शहर शामिल थे। 13385 हेक्टेयर का जंगल भी डूब क्षेत्र में शामिल था, जिसके खिलाफ मुंबई में 1993 में मेघा पाटकर और साथियों ने 18 दिन का उपवास किया। तब केंद्र सरकार द्वारा 5 विशेषज्ञों की कमेटी बनाई गई ।1994 से 2019 तक सर्वोच्च न्यायालय में विस्थापन, पुनर्वास, पर्यावरणीय क्षति, आर्थिक मूल्यांकन में धांधली, बांध से होने वाले लाभ और हानि के मुद्दों पर नर्मदा बचाओ आंदोलन ने जनहित याचिका प्रस्तुत की। सन्  2000, 2005 और 2017 में न्यायालय द्वारा तमाम निर्देश दिए गए। 8 फरवरी 2017 को सर्वोच्च न्यायालय ने मध्य प्रदेश सरकार को 3 महीने में कार्य पूरा करने तथा 31 जुलाई 2017 को बलपूर्वक हटाने का निर्देश दिया। साथ ही जिन्हें जमीन या नगद राशि नहीं मिली थी उन्हें साठ लाख रूपये देने का निर्देश भी हुआ।

27 जुलाई 2017 को मेधा पाटकर ने 12 विस्थापितों के साथ 17 दिन का उपवास किया। पुलिस द्वारा आंदोलनकारियों पर हमला कर मेधा पाटकर को गिरफ्तार कर धार जेल में रखा गया। 31 जुलाई 2018 को नर्मदा बचाओ आंदोलन ने विशाल रैली कर न हटने का संकल्प लिया।

आंदोलन की उपलब्धियां कम नहीं हैं। नर्मदा बचाओ आंदोलन के चलते 50 हजार से अधिक विस्थापितों को मकान के भूखंड मिले, 20 हजार से अधिक परिवारों को 2 हेक्टेयर जमीन मिली। गुजरात में 300, मध्यप्रदेश में 83 और महाराष्ट्र में 14 पुनर्वास स्थल स्थापित हुए। आंदोलन के चलते किसानों के साथ-साथ भूमिहीनों तथा किसानों के वयस्क पुत्र पुत्रियों को भी जमीनें मिली, 35 सहकारी सोसायटियों को लंबे संघर्ष के बाद मछली के शिकार करने का अधिकार मिला।

नर्मदा बचाओ आंदोलन की शिकायत पर उच्च न्यायालय द्वारा जांच आयोग गठित किया गया। 7 सालों तक जांच चली जिसमें  1600 फर्जी रजिस्ट्रियां पायी गई। हालांकि सरकार के संरक्षण के चलते भ्रष्‍टाचारी आज भी खुले घूम रहे हैं। जब मोदी सरकार ने 138.68 मीटर तक पानी भरने का निर्णय लिया तब सर्वोच्च न्यायालय ने नर्मदा बचाओ आंदोलन की याचिका पर 4 राज्यों के मुख्यमंत्रियों को बैठक कर इस संबंध में निर्णय लेने का निर्देश 24 अक्टूबर 2019 को दिया। 18 नवंबर 2020 को ऑनलाइन मीटिंग हुई जिसमें महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने पुनर्वास अधूरा होने के कारण पानी ना भरने, मध्य प्रदेश सरकार ने सात हजार करोड़ खर्च की वापसी तथा बचे हुए कार्य के लिए ग्यारह सौ करोड़ की मांग गुजरात सरकार के सामने रखी परंतु पुनर्वास के मामले में चुप्पी साध ली।

यह गौरतलब है कि जब सरदार सरोवर बांध बनाने की 1984 में मांग उठी थी तब उसकी लागत 4,200 करोड रुपए थी, जो बढ़कर अब 60 हजार करोड़ तक पहुंच गई है। बांध बनाते समय यह दावा किया था कि 18 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई का लाभ मिलेगा लेकिन एक तिहाई क्षेत्र में ही सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराया जा सका। कच्छ और सौराष्ट्र को लाभ नहीं मिला गुजरात में छोटे गांव और कस्बों को पानी देने की बजाय 3 बड़े शहरों को पानी दे दिया गया। नर्मदा नदी बांध दिए जाने के चलते 2013 से 2020 तक अरब सागर का खारा पानी 80 किलोमीटर तक अंदर आ गया है। नर्मदा बचाओ आंदोलन अवैध रेत उत्खनन के खिलाफ भी संघर्ष करता रहा है। सर्वोच्च न्यायालय, मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय, हरित न्यायाधिकरण से इसमें याचिकाएं लगाकर नर्मदा बचाओ आंदोलन ने अनेक आदेश प्राप्त किए हैं जिसका पालन नहीं किया जा रहा है।

नर्मदा बचाओ आंदोलन ने 1894 में अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कानून में तब्दीली कराने में सफलता हासिल की है। देश में आज भूमि अधिग्रहण का जो कानून लागू है उस कानून को बनवाने में नर्मदा बचाओ आंदोलन की अहम भूमिका रही है। नर्मदा बचाओ आंदोलन ने संघर्ष के साथ साथ निर्माण का कार्य भी किया है।

नर्मदा नव निर्माण के तहत महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में आदिवासी बच्चों के लिए जीवन शालाएं 1991 में शुरू की गई। जिनमें पढ़कर अब तक 5,000 बच्चे निकल चुके हैं। महाराष्ट्र में 7 और मध्य प्रदेश में 2 जीवनशालाएं चलती है, जिसमें 1000 आदिवासी बच्चे पढ़ते हैं।

नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर को संघर्ष और निर्माण की प्रतीक के तौर पर देश और दुनिया में देखा जाता है। वे समाजवादी परिवार से आती है। उनके पिता हिंद मजदूर सभा के श्रमिक नेता थे तथा मां ने मुंबई में सामाजिक क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए हैं। मेघा पाटकर ने ‘घर बचाओ, घर बनाओ’ आंदोलन के माध्यम से मुंबई के हजारों झोपड़पट्टी में रहने वाले गरीबों को आवास दिलाए हैं। वे पिछले साढे चार साल में मध्यप्रदेश के खरगोन जिले में सेंचुरी (यार्न और डेनिम) टेक्सटाइल्स मिल के 1000 से अधिक श्रमिकों के रोजगार को बचाने के आंदोलन में सतत रूप से सक्रिय है ।

मैंने मेधा पाटकर जी के साथ देशभर में कई यात्राएं की है जिसके आधार पर यह कह सकता हूं कि मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में उनकी जो लोकप्रियता है, उससे कम लोकप्रिय वे केरल व तमिलनाडु में नहीं है। उन्हें देश और दुनिया के तमाम पुरुस्कारों से नवाजा जा चुका है।

नर्मदा बचाओ आंदोलन ने देश के जन आंदोलनों के समन्वय को खड़ा करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है ।

जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वयक को कार्य करते हुए 30 वर्ष हो चुके हैं तथा 350 से अधिक जन आंदोलन इस समन्वय के साथ जुड़े हैं। नर्मदा बचाओ आंदोलन ने भूमि अधिकार आंदोलन, अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति तथा संयुक्त किसान मोर्चे के गठन में अहम भूमिका का निर्वाह किया है। संयुक्त किसान मोर्चा का नेतृत्व मेधा दीदी के अनुभव और समझ का उपयोग करते हुए आगे बढ़ रहा है।

दुनिया के इतिहास में जमीनी स्तर पर विस्थापन और पुनर्वास के मुद्दे पर इतना लंबा प्रभावशाली और अहिंसक कोई दूसरा आंदोलन नहीं चला है। इस आंदोलन ने देश और दुनिया में वैकल्पिक विकास के मॉडल की ओर ध्यान आकृष्ट करने में सफलता पाई है ।

नर्मदा बचाओ आंदोलन की बड़ी सफलता यह है कि उसे सरकारों का गोली चालन नहीं झेलना पड़ा । मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार का मुलताई गोलीकांड और भाजपा सरकार का मंदसौर गोलीकांड बहुचर्चित रहे हैं। मध्यप्रदेश गठन के बाद मध्यप्रदेश में सैकड़ों गोली चालन हुए है लेकिन नर्मदा बचाओ आंदोलन पर गोली चालन करने की हिम्मत किसी सरकार की नहीं हुई है। नर्मदा बचाओ आंदोलन के 36 वर्ष पूरे होने पर मैं आंदोलन में शामिल सभी कार्यकर्ताओं और नेतृत्वकर्ताओं का हार्दिक अभिनंदन करता हूं। (सप्रेस)

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