अगस्त क्रांति दिवस की 79वीं वर्षगांठ
9 अगस्त, 2021 अगस्त क्रांति दिवस की 79वीं वर्षगांठ है। ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष के इतिहास में यह आंदोलन एक प्रमुख मील का पत्थर है। जब महात्मा गांधी ने भारत पर शासन कर रहे ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन के जरिये अंतिम संदेश दिया कि वे अपने वतन लौट जायें। यह आंदोलन ‘अगस्त क्रांति’ के नाम से खूब लोकप्रिय है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार इस आंदोलन ने देखते ही देखते इतना विकराल रूप धारण किया कि अंग्रेजों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया।
9 अगस्त, 2021 अगस्त क्रांति दिवस की 79वीं वर्षगांठ है। समाजवादी चिंतक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉ. लोहिया चाहते थे कि 9 अगस्त देश में इतने जोरदार तरीके से मनाया जाए कि 15 अगस्त का कार्यक्रम उसके सामने फीका पड़ जाए लेकिन शासकों ने ऐसा नहीं होने दिया। उन्होंने 9 अगस्त की महत्ता कभी देशवासियों के सामने नहीं रखी। जनक्रांति की जगह उन्होंने राज सत्ता के हस्तांतरण को महत्व दिया।
भारत छोड़ो आंदोलन पूरे स्वतंत्रता आंदोलन का सबसे बड़ा जनआंदोलन था। इस आंदोलन के प्रणेता महात्मा गांधी थे, जिन्होंने मुंबई के तत्कालीन मेयर, सोशलिस्ट नेता यूसुफ मेहर अली के सुझाव पर ‘क्विट इंडिया’ अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा देश को दिया था। गांधी जी ने कांग्रेस कार्यसमिति को संबोधित करते हुए कहा था कि आज से हर व्यक्ति खुद को आजाद समझे।
उन्होंने अहिंसात्मक तरीके से आंदोलन करने पर जोर दिया था। गांधी जी ने भाषण में जिस आजाद भारत की कल्पना की थी, उसमें हर किसी के पास समान आज़ादी और अधिकार होने की बात कही थी। जिसे बाद में भारत के संविधान के मूलभूत अधिकारों में जोड़ा गया। परन्तु आज के सत्ताधीशों ने उसपर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है।
1942 का कांग्रेस अधिवेशन
अगस्त क्रांति के आंदोलन की खासियत यह थी कि इस आंदोलन के गांधी जी सहित लगभग सभी जाने-माने कांग्रेस के नेता जेल में थे। गांधी जी की पत्नी और महादेव देसाई की जेल में ही मृत्यु हो गई थी।
सभी नेताओं की गिरफ्तारी के बाद ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल को लगा था कि अब आज़ादी का आंदोलन धीमा पड़ जाएगा। लेकिन एकदम उल्टा हुआ। देश भर में आज़ादी की चाहत रखने वाली जनता विशेष कर युवाओं ने खुद इसका नेतृत्व किया था और इसे चलाया था ।
इस आंदोलन की यह भी खासियत रही कि आंदोलनकारियों द्वारा रेल की पटरियां उखाड़ने, टेलीफोन के तार काटने, प्रशासनिक कार्यालयों और पुलिस थानों पर झंडे फहराने के कार्यक्रम बड़े पैमाने पर किये गए थे। जिसमें हजारों आंदोलनकारी पुलिस की गोलियों से मारे गए लेकिन आंदोलनकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ उन्हें जान का नुकसान पहुंचाने की दृष्टि से हिंसा नहीं की थी। यह गांधी जी के अहिंसा के प्रति आग्रह का प्रभाव था। यदि भूमिगत क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों की हत्या का इरादा बनाया होता तो यह आंदोलन जनआंदोलन नहीं हो सकता था।
इस आंदोलन को गांधी जी चौरी चौरा आंदोलन की तरह वापस नहीं लिया। यह आंदोलन आज़ादी मिलने तक जारी रहा । सभी कांग्रेस नेताओं को 1946 में छोड़ा जाने लगा लेकिन अंग्रेज जेपी और डॉ. लोहिया को छोड़ने को तैयार नहीं थे। गांधी जी के सार्वजनिक बयान के बाद उन्हें छोड़ा गया। इस आंदोलन की यह भी खासियत थी कि इस आंदोलन में हिंदू और मुसलमानों ने एक साथ आकर बड़े पैमाने आंदोलन में हिस्सा लिया था।
आंदोलन का एक केंद्र बम्बई था। बम्बई जैसे शहर का मेयर यूसुफ मेहर अली का चुना जाना, सरदार पटेल द्वारा यूसुफ मेहर अली को कांग्रेस का टिकट दिलाया जाना बतलाता है कि तब बम्बई में हिन्दू मुस्लिम एकजुटता का माहौल था। सतारा, बलिया, मिदनापुर आदि जगहों पर तो समानांतर सरकार चलाई गई।
गांधी जी ने विश्व युद्ध के दौरान ही आंदोलन का समय चुना था। वे दोनों ही पक्षों की हार या जीत के पेंच में भारत की आजादी को नहीं फसाना चाहते थे। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ होते हुए भी वे बार-बार यह कहते थे कि मैं अंग्रेजों से नफरत नहीं करता तथा किसी को भी नहीं करनी चाहिए और ना ही जापान और जर्मनी को प्यार से देखना चाहिए क्योंकि वे गुलामी की अदला बदली नहीं चाहते थे यानी देश अंग्रेजों से आजाद हो जाए और जापान और जर्मनी का गुलाम बन जाए। अंग्रेजों भारत छोड़ो नारा देते समय गांधी जी का जो सपना था वही सपना अगस्त क्रांति दिवस के 79 वर्ष बाद डॉ.जी जी परीख जी आज भी देख रहे हैं।
1942 के आंदोलन में विद्यार्थी के तौर पर शामिल रहे 10 माह की अंग्रेजों की जेल काटने वाले डॉ. परीख जो आजादी के बाद से आज तक हर वर्ष मुंबई के चौपाटी से तब के गवालिया टैंक तथा अब के अगस्त क्रांति मैदान तक पैदल मार्च करते हैं। डॉ. परीख कहते हैं कि आज का समय तब के समय से भी ज्यादा कठिन है क्योंकि आज के जो लोग सत्ता में बैठे हैं वे धर्म के आधार पर अंग्रेजों से भी ज्यादा जुल्म कर सकते हैं। वे हिटलर से प्रेरणा लेकर देश में राज चलाने की कोशिश कर रहे हैं।
डॉ.जीजी परीख चाहते हैं कि देश में फिर अगस्त क्रांति जैसा माहौल बने। 1942 में देश का हर दूसरा-तीसरा नौजवान देश को बचाने के लिए सब कुछ कुर्बान करने को तैयार हो। उसी तैयारी की आज जरूरत है। गांधी जी ने 73 वर्ष की उम्र में अपने 2 घंटे के भाषण में अधिकतर समय हिंदू-मुस्लिम एकजुटता की आवश्यकता बतलाने और समझाने में लगाया था। वही डॉ. जी जी परीख की आज सबसे बड़ी चिंता है।
डॉ जी जी परीख बताते हैं कि मुम्बई के लोकप्रिय समाजवादी मेयर यूसुफ मेहेर अली को मालूम हो गया था कि गिरफ्तारियां की जाएंगी। परंतु गांधी जी को लगता था कि अंग्रेज इतनी जल्दबाजी नहीं करेंगे। यूसुफ मेहेर अली जी ने सभी सोशलिस्टों को भूमिगत होने की सलाह दे दी थी। जिसके चलते डॉ राममनोहर लोहिया ,अरुणा आसफ अली , अच्युत पटवर्धन ,एस एम जोशी ,शिरू भाऊ लिमये तथा सुचेता कृपलानी सहित कई कांग्रेसी नेता भूमिगत हो गए थे।
9 की सुबह सभी प्रमुख कांग्रेस गिरफ्तार कर लिए गए। यूसुफ मेहेर अली अशोक मेहता आदि समाजवादी नेता भी गिरफ्तार कर लिए गए। जय प्रकाश नारायण पहले से ही जेल में थे । जी जी परीख 9 अगस्त की याद करते हुए बतलाते हैं कि उस दिन कस्तूरबा जी को तिरंगा फहराना था। लेकिन उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया था। अरुणा आसफ अली आई और राष्ट्रीय ध्वज फहरा कर चली गईं। आंसू गैस छोड़ी गई।गोलियां भी चलीं
सर्वविदित है कि 23 जून 1757 के दिन जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को पलासी के युध्द में हरा दिया था ,तबसे देश को गुलाम बनाने की शुरुवात की थी। तब से लेकर 15 अगस्त 1947 को देश आजाद होने तक अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन सबसे बड़ा जन आंदोलन था जिसमें 50 हज़ार राष्ट्र भक्त शहीद हुए और 1 लाख से ज्यादा को सजाएं हुई।
डॉ जी जी परीख को 12 अगस्त को गिरफ्तार किया गया था। वर्ली (मुम्बई) में अस्थाई जेल बनाई थी वहां तीसरी मंजिल पर एक कमरे में उन्हें रखा गया था जिसमें अन्य 12 लोग भी पहले से थे। बिछाने के लिए जूट की दरी दी गई थी। डॉ जी जी बताते हैं कि वर्ली जेल में रोज सुबह बड़ी संख्या में आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर लाया जाता था तथा अधिकतर को शाम तक छोड़ दिया जाता था। जिससे उन्हें लगता था कि छात्र होने के कारण उन्हें भी छोड़ दिया जाएगा। एक दिन ऑर्थर रोड जेल से कुछ आंदोलनकारी लाए गए। वे कुछ मांगे कर रहे थे, रास्ते पर बैठ गए, शाम को जब वे अपने कमरे में गए ,तब हमें लगा कि मांगे मान ली गई हैं हमने इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाया । ज्यों ही वह नारा लगाया गया, जेल के कर्मचारियों ने आकर सभी को पीटना शुरू कर दिया। जी जी को भी चोटें आई, खून निकला तब उन्हें यह समझ आ गया कि उन्हें छोड़ा नहीं जाएगा। वे कहते हैं कि तब से वे पक्के जेल वाले बन गए। उन्हें एक महीने के लिए ठाणे जेल में भी रखा गया। वर्ली जेल में रोहित दवे स्टडी सर्किल लिया करते थे। वे मार्क्सवाद से लेकर भारतीय संस्कृति तक पढ़ाया करते थे। ठाना जेल में उन्हें दत्ता तमाणे के बारे में याद है ।
दूसरे वर्ली जेल के सी बी वारद थे, जो उनका ख्याल रखते थे। एक और पारसी साथी थे जो बहुत रईस घराने के थे। उनके पिताजी जेल में बढ़िया खाना कभी-कभी लाया करते थे जो सभी मिलकर खाया करते थे। जीजी को मैंने पूछा कि तब क्या बाहर का खाना लाने की अनुमति थी? तब उन्होंने कहा कि हम पहले जब किताब, वॉलीबॉल या कैरम की मांग करते थे तब पहले मना किया जाता था, कई बार पीटा तक गया, बाद में जेल अधिकारी मान लेते थे । उन्होंने यह भी कहा कि आजादी के आंदोलन के दौरान उन्हें यह महसूस हुआ कि काफी भारतीय पुलिस और सीआईडी के अधिकारी और कर्मचारी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के साथ हमदर्दी रखते थे, जो आदेश आता था उसका पालन तो करते थे लेकिन व्यवहार से पता चलता था कि उनकी हमदर्दी आंदोलनकारियों के साथ है।
1942 के आंदोलन में 10 महीने के जेल प्रवास के बारे में खास बातें पूछने पर वे बताते हैं कि जेल में तीन नए संगठन बनाने का निर्णय लिया गया। एआईटीयूसी छोड़कर राष्ट्रीय मज़दूर सभा बनाने का निर्णय लिया गया। सांस्कृतिक समूह इप्टा की जगह इंडियन नेशनल थियेटर तथा ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन की जगह स्टूडेंट कांग्रेस बनाने का निर्णय लिया गया थ।
जी जी बताते हैं कि इंडियन नेशनल थियेटर का संगठन कमलादेवी चट्टोपाध्याय तथा रोहित दवे के नेतृत्व में जेल से निकलने के बाद गठित किया गया। वे बताते हैं कि लंबे समय तक इंडियन नेशनल थियेटर चला बाद में बिरला ने उस पर कब्जा कर लिया। उन्हें यह भी याद है कि बंगाल के अकाल को लेकर ‘भूख’ नामक इस ग्रुप का एक नाटक बहुत लोकप्रिय हुआ था। वे बताते हैं कि स्टूडेंट कांग्रेस के गठन में उनके साथ रामसुमेर शुक्ला,प्रभाकर कुंटे तथा रवि वर्मा की बड़ी भूमिका थी । डॉ जीजी परीख 1947 में स्टूडेंट कांग्रेस के मुंबई के अध्यक्ष थे।
जेल से आने के बाद 42 ग्रुप तथा समाजवादियों ने तय किया है कि वे गिरगांव चौपाटी से अगस्त क्रांति मैदान तक का मौन जुलूस नियमित निकाला करेंगे। इस कार्यक्रम में मधु दण्डवते , रोहित दवे, नरेंद्र पंड्या, चंद्रकांत दलाल, दामू झावेरी, ललित मोहन जमुनादास किनारीवाला, निरुपमा मेहता,हिम्मत झवेरी आदि शामिल हुआ करते थे। एक बार 9 अगस्त को जब उषा मेहता, मृणाल गोरे, मंगला परीख के नेतृत्व में मौन जुलूस निकाला जा रहा था तब नाना चौक पर पुलिस ने उसे रोक दिया। हल्का लाठीचार्ज भी हुआ। विरोध स्वरूप सत्याग्रह हुआ। तब से आज तक कभी मौन जुलुस को महाराष्ट्र पुलिस और प्रशासन द्वारा नहीं रोका गया । यह मौन जुलूस डॉ जी जी परीख के नेतृत्व में 9 अगस्त 21 को बाल गंगाधर तिलक और विठ्ठल भाई पटेल की मूर्ति पर पुष्पांजलि अर्पित कर चौपाटी से अगस्त क्रांति मैदान के स्तंभ के लिए निकलेगा।
इस बार का 9 अगस्त 21
गत 79 वर्षों में सबसे महत्व का है। क्योंकि फिर एक बार देश के किसान और मजदूर मैदान में हैं। 550 किसान संगठनों के मंच के संयुक्त सँघर्ष मोर्चा द्वारा कॉरपोरेट भगाओ ,भारत बचाओ आंदोलन किया जा रहा है। देश के केंद्रीय श्रमिक संगठनों द्वारा 4 लेबर कोड रद्द करने , श्रमिक कानूनों की बहाली, निजीकरण पर रोक जैसे मुद्दों को लेकर भारत बचाओ आंदोलन कर रहे हैं। जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय ने 9 अगस्त को 300 स्थानों पर स्वतंत्रता आंदोलन के 75 वर्ष पूरे होने अवसर पर एक वर्ष तक लगातार कार्यक्रम आयोजित करने की घोषणा की है। अगस्त क्रांति का लक्ष्य किसानों और मजदूरों की मुक्ति हासिल करना था। अगस्त क्रांति के शहीदों का वह सपना साकार नहीं हो सका है। आइए हम अगस्त क्रांति के शहीदों को याद करते हुए उनके सपनों को साकार करने का संकल्प लें।
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