जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय के राष्ट्रीय समन्वयकों की दो दिवसीय बैठक 17-18 जून को गांधी भवन, भोपाल में सम्पन्न हुई । देश 16 राज्यों से आए जानदोलनों के नेताओं ने अपने राज्यों चल रहे संघर्षों के बारे में चर्चा की। बैठक में प्रख्यात समाजसेवी मेधा पाटकर, सुनीलम, गेब्रियल डाइट्रिच, संजय मंगलागोपाल, प्रफुल्ल सामंतरा, अरुंधती धुरु सहित देश के 16 राज्यों से विभिन्न जन आंदोलनों के साथी इस बैठक में शामिल हुए।
सम्मेलन के अंत में एक प्रेस वार्ता की गई जिसे मेधा पाटकर,प्रफुल्ल सामंतराय,फादर आनंद, सी.आर. निलेकन्दन और ऋचा सिंह ने संबोधित किया. सांप्रदायिकता, बहुसंख्यकवाद और देश का हिंसक माहौल बैठक में चर्चा का अहम मुद्दा रहा। मंहगाई से लोगों का ध्यान हटाने के लिए और सरकार की आर्थिक नाकामी पर पर्दा डालने के लिए धर्म को बांटने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। बैठक में यह बात उभर कर आई कि “अग्निवीर” के खिलाफ़ चल रहे आंदोलन सरकार की उसी नीति का नतीजा है। हम आंदोलन में किसी भी प्रकार के हिंसा का समर्थन नहीं करते और नौजवानों से अपील करते हैं कि वह आंदोलन को शांतिपूर्वक बढ़ाएं। हम यह भी मानते हैं कि बेरोजगारी एक प्रकार की हिंसा है जिसपर सरकार गंभीर नहीं है।
मेधा पाटकर ने कहा कि आज हमपर बहुसंख्यकवाद थोपा जा रहा है । सरकार समुदाय और लोगों को एक दूसरे से लड़ाकर फुट डालो राज करो नीति पर चल रही है। इस बहुसंख्यकवाद में द्वेष है, धर्मांधता है और यह हमारे संस्कृति,समाज के मूल्यों के विरुद्ध है। “सच बोलने वाले पर जेल गोली बरसेंगे, ऐसी आजादी पर बोलो गर्व क्या पाएंगे। आजाद बंदे लड़ते चलते आजादी के वास्ते, क्यूँ उजड़ते रहे रहे हम देश हित के वास्ते ..” गीत के बोल के साथ उन्होंने अपनी बात खतम की.
यह सर्वसम्मति से तय हुआ कि ऐतिहासिक किसान आंदोलन से ऊर्जा लेते हुए एक लंबी रणनीति बनाने की जरूरत है जिसमे किसान की परिभाषा को विस्तार देते हुए सभी समुदाय जो प्राकृतिक संसाधन पर आश्रित हैं के हकों पर काम किया जाए । इस आशय से किसानी पर एक कार्य समिति बनाने की घोषणा हुए जो इन मुद्दों पर सघन काम करेगी। मजदूरों की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। कोरोना में हम सभी ने मजदूरों की हालत को देखा है। ऐसे में सभी लेबर कानून को “लेबर कोड” से बदल देने से उनकी असुरक्षा और बढ़ी है. श्रम कार्ड बना कर काम नहीं चलने वाला, मजदूरों को शोषण से कानूनी संरक्षण, उचित मजदूरी, सुरक्षित रोजगार एवं सामाजिक सुरक्षा चाहिए।
बैठक में यह तय हुआ कि एन.ए.पी.एम असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को गोलबंद करने का काम करेगी और उन सभी संगठनों का साथ लेगी जो इस काम में लगे हैं। न्याय की धज्जियां उड़ाते हुए भाजपा सरकारों द्वारा बुलडोजेर राज चलाया जा रहा है और उसके द्वारा मुस्लिम समुदाय पर हमला किया जा रहा है. एन.ए.पी.एम इसकी भर्त्सना करता है। सरकार जिस तरह से समाज में सांप्रदायिकता का जहर घोल रही है वह समाज को तोड़ डालेगा। जरूरत है कि देश के सभी तबकों को हम साथ लाएं और “अनेकता में एकता” की बात करें . इस पर पहल करते हुए ऐलान किया गया कि एन.ए.पी.एम सांझी विरासत और समुदाय के बीच प्रेम का संदेश फैलाने के लिए देश भर में कार्यक्रम करेगी.
समुदायों के प्राकृतिक संसाधन पर हक को छीनते हुए, लोगों को विस्थापित करते विशाल परियोजनाओं के बारे में बैठक में सघन चर्चा हुई । चाहे वह जिंदल का ओडिशा में चल रहा प्रोजेक्ट हो, केरेला का k-rail प्रोजेक्ट हो या हसदेव में जंगल हटाने का मामला हो, सभी जगह प्रकृति और उसके चारों ओर के जीवन को नष्ट किया जा रहा है। इन सभी परियोजना का पुन: मूल्याकन होना चाहिए और सरकार को लोगों से बातचीत करनी चाहिए। इन सभी परियोजना में भूमि अधिग्रहण कानून कि अवहेलना हुई है। हम बाहर जाकर जलवायु परिवर्तन पर बढ़ चढ़ कर बाते तो कर रहे हैं पर देश में ही जंगल और प्रकृति को बड़े पैमाने पर नष्ट करने की योजना बना रहे हैं।
बैठक में नदियों के संरक्षण पर जोर देते हुए अवैध बालू का खनन, औद्योगिक प्रदूषण, उद्योगों द्वारा समुदाय से छीन कर पानी का गैरजरूरी दोहन के खिलाफ संघर्षों को तेज करने का निर्णय लिया गया। इस साल विश्व पानी दिवस के महत्व को समझते हुए एन.ए.पी.एम देश भर में अभियान चलाएगी. एन.ए.पी.एम एक ऐसे समन्वय की तरह काम करना चाहती है जो सभी संघर्षरत समुदाय ओर लोगों को साथ में लेकर “न्याय-समानता” की ओर बढ़े.
दो दिवसीय बैठक में मीरा, लिंगराज आजाद, लिंगराज प्रधान, आशीष रंजन, सुनीति, युवराज, अमूल्य निधि,राजकुमार सिन्हा,सिस्टर डोरोथी, कैलाश मीणा, ऋचा सिंह, सुरेश राठौर, सी.आर. निलेकन्दन, सौम्या दत्ता, प्रदीप, सुहास ताई, फैसल खान, किरण विससा, कमलू दीदी, राजीव यादव ने हिस्सा लिया !