जगदीश सोलंकी

दुनियाभर के राजनीतिक विश्लेषक प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली की अहमियत और श्रेष्ठता पर कमोबेश एकमत हैं। सभी मानते हैं कि अपनी तमाम कमी-बेसियों के बावजूद प्रजातांत्रिक व्यवस्था किसी भी समाज को बेहतर बनाने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है।

प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली का जन्म ‘शासन-चक्र’ के कई स्तरों को पार करने के पश्चात हुआ है। आज विश्व के कई देशों ने इस शासन व्यवस्था को अपनाया है, क्योंकि यह शासन व्यवस्था अन्य व्यवस्थाओं की अपेक्षा अनोखी विशेषता लिए हुए है। इसमें सरकार का निर्माण निर्वाचन पद्धति द्वारा होता है और जनता इसमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से भाग लेती है। इस प्रकार ‘सत्ता की चाबी’ जनता के हाथों में रहती है। सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी होती है।

जनता इसे अपना शासन समझती है, इसलिए अब्राहम लिंकन ने कहा था – ‘प्रजातंत्र जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा शासन है।’ यह आवश्यक है कि विश्व के कई राष्ट्रों में प्रजातंत्र के स्वरूप में थोड़ा अंतर दिखाई दे, जो कि उस राष्ट्र की जनसंख्या, काल, भौगोलिक परिस्थितियों आदि की भिन्नता के कारण होता है। हर राज्य ने अपनी समस्याओं और परिस्थितियों के अनुरूप इसे स्वीकार किया है।

कोई भी शासन व्यवस्था लम्बे समय से चली आ रही है तो उसमें कई परिवर्तन, सुधार और कमियां भी आती रहती हैं। प्रजातंत्र में भी कई परिवर्तन आए हैं और सुधार की कोशिश जारी है। जैसे – चुनाव जीतने के पश्चात राजनैतिक दलों द्वारा ‘दल बदलकर’ सरकार को गिराने की चेष्टा की जाती है और कभी-कभी सरकार गिरा भी देते हैं।

आजकल यह भी देखने में आता है कि चुनाव के बाद विपक्षी दल सत्ता में आते ही सर्वप्रथम पूर्व की सरकार के कार्यों या नीतियों को बदलकर परिवर्तन करते हैं। इस समस्या के हल हेतु ‘दल-बदल विरोधी कानून’ का उपयोग किया जा सकता है। ऐसे कानूनों में और सुधार किए जा सकते हैं। भारत में प्रभावी ‘दल-बदल विरोधी कानून’ है।

जब देश में ‘संयुक्त विधायक दल’ (संविद) की सरकार का निर्माण होता है तो सरकार में सम्मिलित दल अपने दल को श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए सरकार को पूरा सहयोग नहीं देते हैं।  यहां तक कि जनकल्याण के कार्यों एवं नीतियों में भी असहयोगात्मक रवैया अपनाया जाता है एवं वे दल अपने दल का वर्चस्व बढ़ाने में लगे रहते हैं। अब जनता धीरे-धीरे इतनी जागरूक होती जा रही है कि जो दल जन कल्याणकारी कार्यों में सरकार का सहयोग नहीं करते, चुनाव के समय जनता उनका बहिष्कार करने लगी है।  

कुछ समय से प्रजातंत्र में सरकार व विपक्षी दलों में ‘सहमति-सहयोग’ की भावना का अभाव दिखने लगा है, लेकिन अब समय बदल रहा है। सरकार ‘जनमत’ के डर से विपक्षी दलों की आवाज पर ध्यान देने लगी है, उनकी मांगों या संशोधनों पर विचार करने के लिए प्रयत्नशील रहती है। इस प्रकार सरकार व विपक्षी दलों में ‘तालमेल की भावना’ का विकास हो रहा है।  

प्रजातंत्र के आरंभिक समय में सरकार एक या दो कार्यकाल सरलता से पूरा कर लेती थी, किन्तु वर्तमान में सरकार को एक कार्यकाल पूरा करना कठिन हो रहा है, क्योंकि कोई दल कभी-कभी पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं कर पाता, जिसके कारण उन्हें अन्य दलों की सहायता लेकर सरकार का निर्माण करना पड़ता है।

चुनाव के समय कभी-कहीं उपद्रव या अप्रिय घटना देखने को मिलती है जिसका उदाहरण हमने कुछ दिनों पूर्व ही अमेरिकी संसद पर हमले के रूप में देखा है। ‘निर्वाचन आयोग’ और सरकार, दोनों ही शांतिपूर्ण चुनाव करवाने का प्रयास करते हैं, जिससे ऐसी घटनाओं पर नियंत्रण पाया जा सके।

कहा जा सकता है कि किसी भी शासनतंत्र को अन्य शासनतंत्र से ‘बेहतर’ मान लेना ठीक नहीं होगा, क्योंकि सभी शासन व्यवस्थाओं में कोई-न-कोई कमी रहती ही है। डॉ. भीमराव आंबेडकर के अनुसार प्रजातंत्र को सफल बनाना है तो हमें अपने सामाजिक और आर्थिक लक्ष्यों की ओर ध्यान देना होगा।  

प्रजातंत्र की कई विशेषताएं हैं तो कई कमियां भी हो सकती हैं। उन कमियों को दूर किया जा सकता है। प्रजातांत्रिक शासन ऐसा शासन है जिसमें कमियों को सरलता से दूर किया जा सकता है। कहा जा सकता है कि अन्य सभी शासन व्यवस्थाओं की अपेक्षा प्रजातांत्रिक शासन व्यवस्था का भविष्य उज्ज्वल है और यह विश्व में किसी-न-किसी स्वरूप में विद्यमान रहेगी। (सप्रेस)

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