अशोक कुमार शरण

कोरोना के कहर ने राहत की राजनीति को भी उजागर कर दिया है। प्राकृतिक, मानव-निर्मित आपदाओं में पीडित-प्रभावितों की मदद के लिए बहत्‍तर सालों से सक्रिय  ‘प्रधानमंत्री राष्‍ट्रीय सहायता कोष’ को खिसकाकर अब नया ‘प्रधानमंत्री केयर्स फंड’ लाया जा रहा है। कहा जा रहा है कि नागरिकों के चंदे से ही बनाया जाने वाला यह उपक्रम खास कोरोना-त्रासदी से निपटने में मदद करेगा। सवाल है कि ऐसे त्रासद समय में नागरिकों के सहयोग से सात दशक से कारगर कोष को पृष्‍ठभूमि में ले जाने की क्‍या जरूरत थी? इसकी जगह क्‍यों एक नया ढांचा खडा किया गया?

महात्‍मा गांधी द्वारा स्थापित ‘अखिल भारत चरखा संघ’ की विकेन्द्रित इकाई ‘क्षेत्रीय पंजाब खादी मंडल, पानीपत’ ने जब यह निर्णय लिया कि उनके कार्यकर्ता एक दिन का वेतन ‘प्रधानमंत्री केयर्स फंड’ (प्राइम मिनिस्‍टर सिटिजन असिस्‍टेंस एण्‍ड रिलीफ इन इमर्जेंसी सिचुएशन फण्‍ड) में भेजेंगे तो उन्‍हें कई ऐसे संदेश प्राप्त हुए जिनमें सुझाया गया था कि वे यह राशि पहले से बने ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय सहायता कोष’ (प्राइम मिनिस्‍टर्स नेशनल रिलीफ फंड) में जमा कराएं। नए बने ‘प्रधानमंत्री केयर्स फंड’ पर कई लोगों, सामाजिक संगठनों, राजनैतिक दलों और मीडिया ने सवाल उठाए हैं। सवाल वाजिब भी है कि जब पहले से एक फंड है तो दूसरे की क्या आवश्यकता? क्या कोरोना महामारी की आड़ में सरकार का कोई अन्य एजेंडा भी हो सकता है?

इन दोनों फंडों को किन परिस्थितियों में स्थापित किया गया, पहले हम उसकी जानकारी प्राप्त कर लें। ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय सहायता कोष’ जनवरी, 1948 में तत्‍कालीन प्रधानमंत्री प. जवाहरलाल नेहरु द्वारा देश के विभाजन के समय विस्थापितों के पुनर्वास और सहायता के लिए स्थापित किया गया था। उन्होंने जनता से इस कोष में दान देने की अपील की थी और उनके आवाहन पर जनता ने इस कोष में दिल खोल कर दान दिया भी था। इस फंड में दान की आज भी जारी प्रक्रिया में केवल जनता, संस्थाओं और कंपनियों ने पैसा दिया है, सरकार का इसमें कोई पैसा नहीं है। देश-विभाजन के कारण हुए विस्थापन और पुनर्वास के समाप्‍त हो जाने के बाद इस फंड का उपयोग प्राकृतिक आपदा, जैसे-बाढ़, तूफान, भूकंप आदि से पीड़ित लोगों की सहायता और पुनर्वास के लिए किया जाने लगा। बाद में भयंकर दुर्घटनाओं, दंगों से पीड़ित लोगों को भी इसमें शामिल किया गया और स्वास्थ्य सेवाओं को भी इसमें जोड़ा गया। इस फंड से ह्रदय की शल्यचिकित्सा,  किडनी प्रत्यारोपण, कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए भी सहायता दी जाने लगी।

सत्तर वर्षों से अधिक के इस कोष में सर्वाधिक दान 926 करोड़ रूपए, वर्ष 2004-05 में प्राप्त हुआ था जब हिंद महासागर में आये ‘सुनामी’ तूफान से लगभग दस हजार लोग मारे गए थे। इस राशि का उपयोग सुनामी प्रभावित लोगों की सहायता और पुनर्वास के लिए किया गया था। इसके अतिरिक्त वर्ष 2009 में उड़ीसा और बंगाल में आये ‘ऐला’ तूफ़ान से प्रभावित लोगों की सहायता और पुनर्वास, 2012 में उत्तराखंड और 2014 में कश्मीर में बाढ़ से प्रभावितों की सहायता के लिए इस फंड का उपयोग किया गया। समय की आवश्यकता के अनुसार इस कोष से अन्य पीड़ित लोगों की सहायता की गई, जिसमें कुम्भ में भगदड़, छत्तीसगढ़ में नक्सली हमले, तमिलनाडु में पटाखों की फैक्ट्री में आग तथा कई स्थानों पर दंगो में घायल और मारे गए लोगों और उनके परिवार की सहायता भी शामिल है।

‘प्रधानमंत्री केयर्स’ फंड की स्थापना 28 मार्च, 2020 को कोरोना महामारी जैसी अन्य आपातकालीन, संकट की स्थिति में प्रभावित लोगों की सहायता के लिए किया गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि कोरोना महामारी को रोकने के लिए लोगों ने इसमें अपनी सहायता देने की इच्छा जाहिर की थी। उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए ऐसे कोष की स्थापना की गयी है जो स्वस्थ भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। यह आपदा प्रबंधन क्षमता को मजबूत करेगा और शोध आदि के माध्यम से लोगों की सेवा करने में सहायक होगा। जन साधारण के अतिरिक्त प्रसिद्ध व्यक्तियों एवं संस्थाओं ने भी इस कोष में दान देने का संकल्प लिया है।

प्रधानमंत्री द्वारा फंड की घोषणा होते ही सवाल उठने लगे कि पहले से एक कोष होने के बावजूद दूसरे की आवश्यकता क्यों पड़ी? प्रसिद्ध इतिहासकार रामचंद्र गुहा ‘प्रधानमंत्री केयर्स फंड’ की तीखी आलोचना करते हुए कहते हैं कि ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय सहायता कोष’ के वजूद में होते हुए इस कोष की स्थापना की कोई आवश्यकता नहीं थी। यह स्वयं की प्रशंसा के लिए गढ़ा गया है और इस प्रचंड महामारी का उपयोग व्यक्ति पूजा को बढ़ाने के लिए किया गया है।‘ कई विपक्षी नेताओं ने भी इसकी आलोचना की है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिख कर दिए गए सुझावों में एक सुझाव यह भी दिया है कि ‘प्रधानमंत्री केयर्स फंड’ की समस्त राशि ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय सहायता कोष’ में स्थानान्‍तरित कर दी जाये जिसमें पहले से ही 3800 करोड़ रूपए मौजूद हैं। कांग्रेस सांसद शशि थरूर कहते हैं कि एक अन्य ऐसा ट्रस्ट बनाने की बजाये जिसके नियम और खर्चे अपारदर्शी हैं, उन्होंने ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय सहायता कोष’ का नाम बदल कर ‘प्रधानमंत्री केयर्स फंड’ क्यों नहीं रख दिया?

इस फंड के पक्ष में भारतीय जनता पार्टी के सांसद राकेश सिन्हा कहते हैं कि इसका उपयोग न केवल कोरोना वायरस से लड़ने के लिए, बल्कि ‘लॉक डाउन’ की वजह से प्रभावित लोगों की सहायता के लिए भी किया जा सकेगा। ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय सहायता कोष’ में दान के लिए किसी को मना नहीं किया गया है, इस कोष का उपयोग अन्य सहायता कार्यो के लिए किया भी जा सकता है, लेकिन ‘प्रधानमंत्री केयर्स फंड’ का उपयोग केवल कोरोना वायरस से लड़ने के लिए किया जायेगा।  

ताजा स्थिति को देखें तो सरकार द्वारा कई शुरुआती लापरवाहियां हुईं जिनके कारण देशभर में कोरोना का प्रकोप फैला। हजारों मजदूरों को सैकड़ों मील पैदल चलकर घर जाना पड़ा, लाखों लोगों को रोजगार से और कई राज्यों से विस्थापित होना पड़ा, भूखे रहना पड़ा, अस्पतालों में डाक्टरों, नर्सों और अन्य स्वास्थ्य-कर्मियों को सुरक्षा सामग्री, मास्क आदि उपलब्ध नहीं हुए और इनके निर्यात की अनुमति दी जाती रही। इन कमियों के बावजूद नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं दिखाई दे रही। थाली बजाना, दिया जलना जैसी अपीलों पर अधिकतर जनता का साथ और वैश्विक नेताओं द्वारा कोरोना महामारी को देश और वैश्विक स्तर पर संभालने के लिए उनकी प्रशंसा हो रही है। इस महामारी के परिपेक्ष्य में नरेन्द्र मोदी ने बड़ी चतुराई से प. जवाहरलाल नेहरु द्वारा स्थापित ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय सहायता कोष’ के स्थान पर ‘प्रधानमंत्री केयर्स फंड’ की स्थापना कर दी। आज की स्थिति में कांग्रेस पार्टी के पास इसका प्रतीकात्मक विरोध करने के सिवा कुछ बचा नहीं है।                     

‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय सहायता कोष’ की स्थापना के समय इसका संचालन छ: सदस्यों की एक समिति करती थी जिसमें प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरु, उप-प्रधानमंत्री सरदार वल्‍लभभाई पटेल, वित्‍तमंत्री शनमुखम शेट्टी, ‘टाटा ट्रस्ट’ का एक प्रतिनिधि और कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पट्टाभि सीतारमैया शामिल थे। वर्ष 1985 में राजीव गांधी की सरकार आने के बाद इस कोष का संचालन प्रधानमंत्री के विवेक पर छोड़ दिया गया। इसका कार्य प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारी देखते रहे हैं और कोष का वितरण तथा लाभार्थियों का चयन केवल प्रधानमंत्री के विवेक पर निर्भर है। दूसरी तरफ, ‘प्रधानमंत्री केयर्स फंड’ एक ट्रस्ट है जिसके संचालन और निर्णय के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ गृहमंत्री अमित शाह, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और वितमंत्री निर्मला सीतारमण जिम्‍मेदार हैं। इसमें भी अंतिम निर्णय प्रधानमंत्री ही करते हैं।  

‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय सहायता कोष’ और ‘प्रधानमंत्री केयर्स फंड’ दोनों में दान की राशि पर आयकर अधिनियनिम की धारा 80 (जी) के अंतर्गत शत-प्रतिशत छूट प्राप्त है। इसी प्रकार दोनों में ‘कंपनियों के सामाजिक उत्तरदायित्व’ (कार्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी, सीएसआर) के फंड में से दान दिया जा सकता है। ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय सहायता कोष’ का ऑडिट थर्ड पार्टी द्वारा किया जाता है, परन्तु ‘प्रधानमंत्री केयर्स फंड’ का ऑडिट कौन करेगा, इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी गयी है। जनता को यह जानने का अधिकार होना चाहिए कि उसके दान के पैसे का उपयोग कहां और कैसे किया जा रहा है। पारदर्शिता के लिए दोनों कोषों का ऑडिट ‘भारतीय नियंत्रक और महालेखा परिक्षक’ (कैग) से करवाना चाहिए और दोनों कोषों को ‘सूचना के अधिकार अधिनियम’ के अंतर्गत लाना चाहिए। अभी तक लोग अपनी इच्छानुसार दोनों में से किसी भी कोष में दान कर सकते हैं, इसमें कोई बंधन नहीं है, परन्तु प्रधानमंत्री जिस कोष में दान देने की अपील करेंगे, अधिकतर दान उसी कोष में आयेगा। (सप्रेस)

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