देश में 60-62 फीसदी सिंचाई के लिए जिम्मेदार मानसून बहुत आनंददायी होता है। उत्सव के दर्जे का ऐसा मानसून अपने साथ कई ऐसी आपदाएं भी लाता है जिनसे निपट पाना अक्सर कठिन होता है।
मानसून एक तरफ जहां आनंद, उल्लास और खुशियों की बौछार कर हमें भिगोता है तो वहीं इस मौसम में बिजली गिरने, बादल फटने और बाढ़ आने से अत्यधिक हानि भी होती है। अचानक आने वाली इन आपदाओं से भारी नुकसान होता है। ये प्राकृतिक घटनाएं हैं, किन्तु इनको विनाशकारी हम लोगों ने ही बनाया है। यदि हम प्रकृति के प्रति सचेत, संवेदनशील, जाग्रत और उदार रहे तो इन आपदाओं को काफी हद तक कम किया जा सकता है। चलिए समझते हैं, बिजली, बादल, बारिश, बाढ़ व इनसे बचने के उपायों के बारे में –
बिजली गिरना –
मानसून में जब नम और शुष्क हवा के साथ बादल टकराते हैं तो बिजली चमकती है और इसके गिरने का खतरा होता है। वर्ष 1872 में वैज्ञानिक बेंजामिन फ्रेंकलिन पहले शख्स थे, जिन्होंने बिजली चमकने का सही कारण बताया था। उनके मुताबिक जब आकाश में बादल छाए होते हैं तो उसमें मौजूद पानी के छोटे-छोटे कण वायु की रगड़ के कारण आवेशित हो जाते हैं। कुछ बादलों पर ‘पाजिटिव चार्ज’ आ जाता है तो कुछ पर ‘निगेटिव चार्ज।’ जब ये दोनों तरह के चार्ज वाले बादल मिलते हैं तो उनके मिलने से लाखों वोल्ट की बिजली पैदा होती है।
केलिफोर्निया के बर्कले विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के एक अध्ययन के अनुसार, ‘ग्रीनहाउस गैसों’ के बढ़ने से हुए बदलाव से बिजली गिरने की घटनाएं बढ़ रही हैं। वहीं ‘नासा’ के अध्ययन के अनुसार यदि धरती का तापमान एक डिग्री सेल्शियस बढ़ता है तो बिजली गिरने की लगभग 10 प्रतिशत घटनाएं बढ़ती हैं। वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष बिजली गिरने की 2.5 करोड़ घटनाएं होती हैं। हमारे देश में हर साल 2,000 से अधिक मौतें बिजली गिरने के कारण होती हैं। बिजली गिरने से सबसे ज्यादा मौतें उन लोगों की होती हैं जो बारिश के वक्त किसी पेड़ के नीचे खड़े रहते हैं। इस प्रक्रिया को ‘साइड फ्लेश’ कहते हैं।
बिजली गिरने संबंधी ‘अलर्ट सिस्टम’ में सेंसर के माध्यम से ऐसे यंत्र लगाए जाते हैं जो बादलों की गतिविधियों का आंकलन कर बिजली चमकने या गिरने का पूर्वानुमान आंधे घंटे पहले दे देते हैं। साथ ही एडवांस सेंसर की मदद से तीन से चार घंटे पहले भी अनुमान मिल सकते हैं। इसके अतिरिक्त दूसरा तरीका आधुनिक तकनीक के ज़रिये ‘एप्स’ के माध्यम से पूर्वानुमान पाया जाना हैं, जो सैटेलाइट के डेटा के माध्यम से लगाए जाते हैं। भारत के ‘पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय’ ने ‘दामिनी एप’ की सुविधा दी है, जो पूर्वानुमान लगा सकता है।
आकाशीय बिजली का बनना और गिरना एक सामान्य प्राकृतिक प्रक्रिया है। इससे बचाव के लिए हमारे देश में बिजली गिरने संबंधी ‘अलर्ट सिस्टम’ को और अधिक उन्नत करने के साथ ही सूचना-तंत्र में भी सुधार लाना होगा जिससे बिजली गिरने से पहले ही हम सुरक्षित हो जाएं।
बारिश-
जब समुद्र का जल वाष्प बनकर ऊपर उठता है और जब बादल ठंडे होते हैं तो गैसीय भाप तरल पानी में बदलने लगती है और ज्यादा ठंडक होने पर यह बर्फ में भी बदलने लगती है। वाष्प के सघन होने की प्रक्रिया को ‘संघनन’ कहते हैं, लेकिन बारिश होने के लिए केवल यही काफी नहीं है। पहले तरल बूंदें जमा होती हैं और बड़ी बूंदों में बदलती हैं। जब ये बूंदें भारी हो जाती हैं तब कहीं जाकर बारिश होती है। पानी के आसमान से नीचे आने की प्रक्रिया को ‘वर्षण’ (precipitation) कहते हैं। ‘वर्षण’ कई तरह से होते हैं। यह बारिश (Rainfall), ओले गिरना, हिमपात आदि के रूप में हो सकता है। जब पानी तरल रूप में न गिरकर ठोस रूप में गिरता है तो उसे हिमपात कहते हैं। वहीं बारिश के साथ बर्फ के टुकड़े गिरना ओलों (Hailstones) का गिरना कहलाता है। इसके अलावा कई जगह सर्दियों में पानी की छोटी-छोटी बूंदें भी गिरती हैं जिन्हें हम ओस (Dew) कहते है।
बारिश होने के कई सिस्टम-
पृथ्वी पर बहुत सारी प्रक्रियाएं हैं जिनके कारण किसी स्थान पर बारिश होती है। भारत में सबसे जानी-मानी प्रक्रिया है, मानसून की प्रक्रिया जिसकी वजह से एक ही इलाके में एक से तीन-चार महीने तक लगातार या रुक-रुककर बारिश होती है। वहीं कई बार बेमौसम बारिश होती है जिसे स्थानीय वर्षा कहा जाता है। हालाँकि बारिश की कई वजह हैं। समुद्र स्थल से दूरी, इलाके में पेड़-पौधों की मात्रा, पहाड़ों से दूरी, हवा के बहने का पैटर्न और जलवायु के अन्य तत्व मिलकर तय करते हैं कि किसी जगह पर बारिश कैसी, कब-कब और कितनी होगी। कई बार समुद्र से चक्रवाती तूफान बारिश लाकर तबाही तक ला देते हैं।
बाढ़-
भारत में बाढ़ के कुछ प्रमुख कारणों में अधिक वर्षा, भूस्खलन, नदियों और नालियों के मार्ग अवरुद्ध होना इत्यादि हैं। ज्यादातर बाढ़ कुछ विशेष क्षेत्रों और वर्षा ऋतु में ही आती है। मानवीय क्रियाकलापों, जैसे – अंधाधुंध वनों की कटाई, प्राकृतिक अपवाह तंत्रों का अवरुद्ध होना तथा नदी तल और बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में मानवों के रहवास की वजह से बाढ़ की तीव्रता, परिमाण और विध्वंसता अत्यधिक बढ़ गई है। विश्व में बाढ़ के मामले में भारत दूसरा देश है।
बाढ़ से बचाव के लिए ‘आपदा-मोचन बल’ को प्रशिक्षित करना तथा आवश्यकता पड़ने पर तुरंत तैनात करना। राज्य स्तर पर बाढ़ नियंत्रण एवं शमन के लिये प्रशिक्षण संस्थान स्थापित करना तथा स्थानीय स्तर पर लोगों को बाढ़ के समय किये जाने वाले उपायों के बारे में प्रशिक्षित करना। साथ ही पुनर्वनीकरण, जल-निकास तंत्र में सुधार, वाटर-शेड प्रबंधन, मृदा-संरक्षण जैसे उपायों को अपनाना होगा।
बादल फटना-
कहीं भी बादल फटने की घटना उस समय होती है जब ज्यादा नमी वाले बादल एक जगह रुक जाते हैं और वहां मौजूद पानी की बूंदे आपस में मिल जाती हैं। इनके भार से बादल का घनत्व बढ़ जाता है और तेज बारिश होने लगती है। बादल फटना बारिश का एक चरम रूप है। इस घटना में बारिश के साथ कभी-कभी गरज के साथ ओले भी पड़ते हैं। सामान्यत: बादल फटने के कारण सिर्फ कुछ मिनट तक मूसलाधार बारिश होती है, लेकिन इस दौरान इतना पानी बरसता है कि क्षेत्र में बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
बादल फटने की घटना अमूमन पृथ्वी से 15 किलोमीटर की ऊंचाई पर घटती है। इसके कारण होने वाली वर्षा लगभग 100 मिलीमीटर प्रति घंटा की दर से होती है। कुछ ही मिनट में दो सेंटी मीटर से अधिक वर्षा हो जाती है, जिस कारण भारी तबाही होती है। भारत में बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से उठे मानसून के बादल जब उत्तर की ओर बढ़ते हैं, तब उनका हिमालय के क्षेत्र में फटने का खतरा सबसे अधिक रहता है। बादल फटने की सबसे अधिक घटनाएं पहाड़ी क्षेत्रों, जैसे – हिमालय, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड आदि में होती है।
कई अध्ययनों से पता चला है कि ‘जलवायु परिवर्तन’ से दुनिया भर के कई क्षेत्रों में बादल फटने की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि होगी। हिमालयी क्षेत्र में बादल फटने की सबसे अधिक घटनाएँ देखी जा रही हैं, क्योंकि हिमालयी क्षेत्र में दशकीय तापमान वृद्धि वैश्विक तापमान वृद्धि की दर से अधिक है।
वर्तमान में बादल फटने की घटना का अनुमान लगाने के लिये कोई तकनीक उपलब्ध नहीं है। बादल फटने की संभावना का पता लगाने के लिये अत्याधुनिक रडार नेटवर्क को उपयोग में लाया जा सकता है, किन्तु यह अत्यधिक महंगा होने के कारण बादल फटने का अनुमान लगाने के लिए उपयोग में नहीं लाया जा रहा है, हालांकि भारी वर्षा की संभावना वाले क्षेत्रों में इससे पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। बादलों के फटने की घटना के अनुकूल क्षेत्रों और मौसम संबंधी स्थितियों की पहचान कर इससे होने वाले जन-धन के नुकसान से बचा जा सकता है। (सप्रेस)
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