आम लोगों के वोट की मार्फत सत्ता पर काबिज होने वाली सरकारें, अब हर तरह की लाज-शर्म को तिलांजलि देकर बेशर्मी से पूंजी और उद्योगों के हित में खडी हो गई हैं। मध्यप्रदेश में इसकी बानगी ऊर्जा या बिजली क्षेत्र है जिसमें विद्युत उत्पादन के सरकारी कारखानों में बनने वाली सस्ती बिजली को छोडकर निजी कंपनियों की मंहगी बिजली खरीदी जा रही है। जाहिर है, ये धतकरम आम लोगों जेबों और सरकार के खजानों पर डाका डालेंगे।
देश और दुनिया कोरोना वायरस महामारी के सकंट को फैलने से बचाने में लगी है। लाखों मजदूर भूखे-प्यासे पैदल अपने-अपने गाँवों की ओर लौट रहे हैं। यह कहना भी असंगत नहीं होगा की यह अनियोजित लॉकडाउन केवल मजदूर वर्ग के लिये है, लेकिन इसी दौर में सरकारें और निजी कंपनियां अपने काम बडी तेजी से निपटाने में लगी हैं। मध्यप्रदेश सरकार ने अडानी की ‘छिंदवाड़ा पेंच थर्मल पावर परियोजना’ के साथ बिजली खरीद का करार किया है। इसकी सार्वजनिक जानकारी समाचार-पत्रों में 27 मई को तब मिली, जब मध्यप्रदेश सरकार ने इसे जाहिर किया। कोयले पर आधारित यह परियोजना 1320 मेगावाट क्षमता की है। जहाँ पूरी दुनिया कोयले से जुडे सभी उद्योगों से दूर जा रही है, वहीं मध्यप्रदेश सरकार कार्बन उत्सर्जन में योगदान की यह योजना बना रही है। गौर-तलब है कि वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण की गरज से किये गये अंतरराष्ट्रीय ‘पेरिस समझौते’ में भारत भी एक भागीदार है, यानि कि इसके तहत कोयला-आधारित उद्योगों को धीरे-धीरे घटाना हस्ताक्षर करने वाले देशों की प्राथमिक जिम्मेदारी है।
भारत सरकार के ‘सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय’ की 2019 की रिर्पोट के अनुसार मध्यप्रदेश में 20,331 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता पहले से ही स्थापित है और उसकी मांग 9000 मेगावाट है। इस आधार पर प्रदेश में अतिरिक्त बिजली उपलब्ध है। तो फिर सवाल उठता है कि इसके बावजूद ऐसी कौन सी जल्दबाजी है जिससे मध्यप्रदेश सरकार को अडानी से 1320 मेगावाट बिजली खरीदी का करार करना पड रहा है? इस तरह की बिजली खरीद से किसको फायदा होने वाला है? और इसके क्या महत्वपूर्ण कारण हैं?
मध्यप्रदेश में बिजली के बढते वित्तीय घाटे जनता की जेब पर भारी पड़ रहे हैं, दूसरी तरफ राज्य अपने सरकारी बिजली घरों को बंद कर निजी बिजली कंपनियों से ऊँची दरों पर बिजली खरीद रही है। सार्वजनिक क्षेत्र की ‘सतपुड़ा थर्मल पावर परियोजना’ की 210 मेगावाट वाली इकाइयों को सरकार ने बंद कर दिया जो कि सस्ती बिजली दे रही थी। प्रदेश में बरगी, बाणसागर व पेंच जैसी सरकारी क्षेत्र की जल-विद्युत परियोजनाएं सस्ती बिजली उपलब्ध करवा सकती हैं, तो क्या उनसे बिजली नहीं ली जा रही?
इसके अलावा सरकार ने कई निजी ऊर्जा कम्पनियों से नियत प्रभार (फिक्स चार्ज) के करार कर रखे हैं जिसके कारण राज्य की जनता को सरकार की मार्फत हर साल बिना बिजली लिये हजारों करोड़ रूपये चुकाने पड़ रहे हैं। ‘राज्य विद्युत नियामक आयोग’ के ‘टैरिफ आदेश – 2019-20’ के अनुसार गत वर्ष सरकार ने नियत प्रभार (फिक्स चार्ज) परियोजनाओं को 2034 करोड़ रुपए देने का प्रावधान किया था जो कि गैर-जरूरी था। पिछले महीने राज्य सरकार ने नर्मदा घाटी में 26 साल पुरानी ‘महेश्वर बिजली परियोजना’ के साथ हुए समझौते को रद्द कर दिया है। इस परियोजना से 18 रूपये प्रति यूनिट बिजली का करार किया गया था। यह स्पष्ट करता है कि बिजली खरीद के ये करार राज्य बिजली वितरण कम्पनियों को वित्तीय सकंट में धकेल रहे हैं। इनके कारण राज्य बिजली वितरण कम्पनियां लगातार वित्तीय संकट का सामना कर रही हैं।
हालांकि बडी जल-विद्युत और सौर ऊर्जा परियोजनाओं से सस्ती बिजली मिलना इन परियोजनाओं से हुये सामाजिक व पर्यावरणीय नुकसान को सही ठहराता है। ऐसे में उन विकल्पों के बारे में सोचना होगा जो बिना किसी बडे सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक नुकसान के सभी को सतत् और समान बिजली दे सकें। बिजली केवल एक वर्ग की विलासिता का साधन बनकर न रह जाये। अब तक जिन परियोजनाओं को सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक तबाही करके स्थापित किया गया है उनको लोगों को सस्ती बिजली पहुचाने में उपयोग किया जाना चाहिये।
‘अखिल भारतीय पावर इंजीनियर्स फेडरेशन’ के प्रवक्ता वीके गुप्ता का कहना है कि मध्यप्रदेश में औसत बिजली की मांग 9,000 मेगावाट और अधिकतम मांग 14,500 मेगावाट है, जबकि राज्य ने पहले ही 21,000 मेगावाट बिजली खरीद करारों पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। इस सकंट में यूनिट भर बिजली लिये बिना भी सरकारी वितरण कम्पनियों को 2000 करोड़ रुपए से अधिक का भुगतान करना पड़ रहा है। जाहिर है, ‘अडानी बिजली परियोजना’ के साथ बिजली खरीद का समझौता एक गैर-जरूरी समझौता समझा जा सकता है।
मध्यप्रदेश में बिजली परियोजनाओं का ‘प्लांट लोड फैक्टर’ पहले से ही कम था, और कोरोना वायरस के कारण बिजली की मांग और भी कम हो गई है। ज्ञात हो कि राज्य बिजली वितरण कम्पनियों ने बिजली खरीद के नौ करार कर रखे हैं। वर्तमान में बिजली की कम मांग को देखते हुये उनमें से चार निजी बिजली कम्पनियां – टोरेंट पावर, बीएलए पावर, जेपी बीना पावर और एस्सार पावर बिजली की आपूर्ति नहीं करेंगी, लेकिन सरकारी वितरण कम्पनी को इन निजी पावर कम्पनियों से बिजली की एक यूनिट लिये बिना भी निर्धारित शुल्क का भुगतान करना पडेगा।
मध्यप्रदेश की पावर जनेरेटिंग कम्पनी लिमिटेड के पूर्व अतिरिक्त मुख्य अभियन्ता राजेन्द्र अग्रवाल का कहना है कि राज्य के पास अगले 10 वर्षों के लिए अतिरिक्त बिजली उपलब्ध है। अडानी पावर की ‘पेंच थर्मल एनर्जी लिमिटेड’ के साथ बिजली खरीद का समझौता अम्बानी की ‘सासन बिजली परियोजना’ से भी अधिक महंगा है। ‘सासन’ की प्रति यूनिट दर 1.194 रुपए थी जबकि अडानी परियोजना की प्रति यूनिट दर 4 गुना, लगभग 4.79 रुपए प्रति यूनिट पड रही है जो कि अब तक की सबसे ऊँची दर है। मनमानी और बिना पारदर्शिता के किया जा रहा यह करार 25 वर्ष की अवधि में राज्य वितरण कपंनी को एक लाख करोड रुपए से भी अधिक का नुकसान दे सकता है। यह भारत की टैरिफ नीति का पूरी तरह उल्लंघन है।
एक ओर राज्य सरकार कोयले पर आधारित महंगी बिजली परियोजनों से बिजली खरीदने के करार कर रही है और दूसरी ओर नवीकरणीय उर्जा आधारित परियोजनाओं जैसे सौर और पवन चक्की से मिलने वाली प्रति यूनिट बिजली के दाम पिछले कुछ सालों से लगातार गिरते जा रहे हैं। सौर उर्जा की प्रति यूनिट दर आज रु 2.94 रुपए प्रति यूनिट तक पहुँच गयी है। तो फिर सवाल ये भी उठता है की एक ओर तो केंद्र सरकार द्वारा सस्ती नवीकरणीय उर्जा को बढ़ावा दिया जा रहा है और दूसरी ओर राज्य सरकारें कोयला आधारित परियोजनाओं से बिजली खरीदने के करार क्यों कर रही है?
अडानी परियोजना के साथ बिजली खरीद का समझौता किसी भी नजरिये से सही नहीं है। बिजली क्षेत्र पहले से ही वित्तीय सकंट का सामना कर रहा है। प्रदेश में स्थापित निजी बिजली कंपनियां पहले से ही वित्तीय संकट में हैं और सरकार से अपनी वित्तीय जमानत के लिये गुहार लगा रही हैं। ऐसी परिस्थितियों में अडानी के साथ अतिरिक्त बिजली खरीद समझौता अनावश्यक है। यह राज्य सरकार और राज्य वितरण कंपनियों के साथ प्रदेश की जनता पर भी अतिरिक्त वित्तीय भार डालेगा। बिजली खरीद के इस समझौते के अनुसार सरकार को 25 वर्षों तक भुगतान करना पड़ेगा। जाहिर है, यह समझौता प्रदेश की जनता से बिजली की दर बढ़ाकर हजारों करोड़ रूपये वसूले जाने का रास्ता खोलेगा।
मध्यप्रदेश के आम नागरिक राज्य सरकार से मांग कर रहे हैं कि वह अडानी समेत ऐसी सभी परियोजनाओं के बिजली खरीद करारों को सार्वजनिक हित में तुरंत रद्द करे जो महंगे और गैर-जरूरी हैं। राज्य की आम जनता और राज्य बिजली वितरण कपंनी पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ बढाने की बजाए सरकार को अपनी परियोजनाएं चालू करना चाहिए ताकि जनता को सस्ती बिजली मिल सके। (सप्रेस)
राजेश कुमार ‘सेंटर फॉर फाइनेंशियल अकॉउन्टेबिलिटी’ में सीनियर प्रोग्राम एसोसिएट हैं।