‘झेन आर्ट ऑफ मोटर-साइकल मेंटीनेंस’ किताब के लेखक जिस तरह मशीनों के मिस्त्री को कविता से जोडकर देखते हैं, ठीक उसी तरह देश के ख्यात वैज्ञानिक होमी भाभा ने परमाणु-विज्ञान सरीखे गरिष्ठ विषय पर अपनी मेधा को संभवत: पेड-पौधों से जोडा था।
भारत में परमाणु-विज्ञान के जनक माने जाने वाले डॉ. होमी जहांगीर भाभा हरियाली से भी भरपूर प्रेम रखते थे। मुम्बई के ट्राम्बे में जब 1954 में उन्होंने ‘परमाणु ऊर्जा संस्थान’ (वर्तमान में ‘भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र’) की स्थापना का कार्य शुरू किया, तभी उन्होंने सोच लिया था कि यह संस्थान तकनीकी तथा वैज्ञानिक जरूरतों के साथ सुंदर दृष्यावली वाला एवं हरियाली से भरपूर होगा। ट्राम्बे की वीरान पहाड़ियों पर प्रयोगशालाओं एवं अन्य भवनों के निर्माण के साथ हरियाली प्राथमिकता के आधार पर फैलायी जायेगी।
लगभग 15 लाख पेड़-पौधे लगाने की योजना एक कार्यबल (टास्क-फोर्स) के साथ बनायी गयी, ताकि सारा कार्य चरणबद्ध तरीके से निश्चित समयावधि में पूरा हो सके। संस्थान में पेड़ों को लगाने (पौधारोपण) का कार्य करने हेतु उनकी आलोचना कुछ लोगों ने की, परंतु भाभा ने सहजता से उत्तर देते हुए कहा कि पेड़ वृद्धि एवं विकास हेतु अपना निर्धारित समय लेते हैं। भवन सामग्री एवं मजदूरों की संख्या बढ़ाकर निर्माण कार्य तेज किया जा सकता है।
भाभा मानते थे कि प्राकृतिक रूप से सुंदर भूदृश्य का निर्माण कोई आमोद-प्रमोद नहीं, अपितु प्रकृति को समीप लाने का एक प्रयास होता है। किसी भी स्थान के विकास के पहले वे बगीचा लगाने पर ज्यादा ध्यान देते थे, क्योंकि कामकाज से थके लोगों को बगीचे की हरियाली शांति, सुकून एवं ताजगी प्रदान करे।
भाभा स्वयं प्रयोगशालाओं में लम्बे समय तक कार्य करने के बाद कुछ समय के लिए बगीचे में जरूर जाते थे। संवेदनशील इलेक्ट्रानिक उपकरणों के लिए प्रयोगशालाओं में वातानुकूलन एवं साफ-सुथरा, धूल-रहित वातावरण जरूरी होता है। भाभा कहते थे कि यह कार्य आसपास पेड़ लगाकर किया जाना चाहिये, क्योंकि पेड़ शीतलता प्रदान करने के साथ-साथ धूल भी कम कर देते हैं। फ्रांस के वर्साई पैलेस में लगे बगीचे के समान वे अपने संस्थान में बगीचे विकसित करना चाहते थे।
इसी सोच के आधार पर उन्होंने कई अलग-अलग रंगों के बोगनबेलिया की झाड़ियां लगवायीं थीं। भाभा स्वयं जब किसी भी कार्य से देश-विदेश यात्रा पर जाते थे, तब वे समय निकालकर आसपास के बगीचों को देखकर फोटो भी खींचते थे। संस्थान-परिसर में वे पेड़ काटकर विकास करने के पक्ष में कभी नहीं रहे और इसी सोच से उन्होंने कई पुराने पेड़ बचाए।
संस्थान में एक सड़क निर्माण हेतु आम के एक पुराने पेड़ को काटने की जरूरत भाभा को बतायी गयी। भाभा स्वयं स्थान देखने गये एवं पाया कि आम के पेड़ के आसपास काफी जगह खाली है जहां सड़क बनायी जा सकती है। वापस आकर उन्होंने सड़क बनाने वाली कम्पनी के अधिकारियों से कहा कि पेड़ के आसपास की खाली जगह का उपयोग सड़क निर्माण में किया जाए। सीधी सड़क बनाने हेतु पेड़ काटना न्यायोचित नहीं है।
एक और एप्रोच रोड़ के बीच में आ रहे पर्जन्य के पेड़ (रेन-ट्री) को भी उन्होंने काटने की बजाय पास के खाली स्थान पर स्थानांतरित करवाया। संस्था की स्थापना के बाद भी जब विस्तार हेतु नए भवन व प्रयोगशालाएं बनायी जाने लगीं, तब भी उन स्थानों पर लगे पीपल एवं बरगद के पेड़ भाभा ने शिफ्ट करवाये। मलाबार-हिल्स (मुम्बई) पर जब गगनचुम्बी इमारतों को बनाने हेतु पेड़ काटे जाने का पता चला, तो उन्होंने उसी समय तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. पंडित जवाहरलाल नेहरू को जानकारी देकर इसे रूकवाया। भाभा के इस प्रयास से उस समय कई पेड़ काटने से बच गये।
मुम्बई के ही पेडर रोड़ पर सड़क चौड़ीकरण हेतु एक हरे-भरे विशाल रेन-ट्री को काटने से रूकवाया एवं पास की जगह पर अपने व्यय से प्रत्यारोपित करवाया। देश के इतने बड़े वैज्ञानिक के प्रयास से पेड़ को अभयदान मिल गया। पं. जवाहरलाल नेहरू के गुलाब प्रेम से प्रभावित हो उन्होंने अपने संस्थान में गुलाब लगवाये एवं उनकी उचित देखभाल भी करवायी। इसका परिणाम यह हुआ कि गुलाब की लगभग 70 किस्में परिसर में सुंदरता बिखेरने लगीं।
उच्च पद पर विराजित किसी वैज्ञानिक का पेड़-पौधों के प्रति अगाध प्रेम का उदाहरण शायद ही कहीं देखने को मिले। 24 जनवरी 1966 को विमान दुर्घटना में हुई मौत पर उनके एक परम मित्र ने कहा था कि शायद उस समय भी वे पेड़-पौधों के बारे में सोच रहे होंगे। विज्ञान में हुई कई खोजों की प्रेरणा प्रकृति से मिली है, इसलिए भाभा कहते थे कि प्रयोगशाला परिसरों के आसपास हरियाली के रूप में प्रकृति का होना जरूरी है। (सप्रेस)
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