सुनील कुमार
बिजली के निजीकरण की ताजा तरकीब है, स्मार्ट-मीटर। इसमें ठीक मोबाइल फोन की तरह जरूरत-भर बिजली को रीचार्ज करके उपयोग किया जाएगा। कहा जा रहा है कि इससे बिजली की चोरी रोकी जा सकेगी, लेकिन क्या यह तरकीब आम, गरीब उपभोक्ताओं के हाथ से बिजली छीनने की तरकीब नहीं होगी? इसे आम नागरिक किस तरह से देख रहा है? बता रहे हैं, सुनील कुमार।
भारत में बिजली एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन चुका है। जिस तरह रोटी, कपड़ा, मकान की जरूरत है उसी तरह से बिजली की जरूरत हो गई है। बिजली नहीं रहने से घर में रोशनी नहीं होती, मोबाईल से लेकर टीवी,पंखा, कूलर, फ्रिज कुछ नहीं चल सकता। इसको बढ़ावा देने का काम भारत सरकार ने किया है। वह राशन दुकान पर मिलने वाले मिट्टी के तेल को बहुत पहले बंद कर चुकी है जिससे शहरों से लेकर सुदूर ग्रामीण इलाकों में भी रोशनी के लिए लोगों को बिजली पर निर्भर होना पड़ता है।
खाना बनाने के लिए लकड़ी के बाद केरोसिन ऑयल था जिससे लोग स्टोव पर खाना बना लिया करते थे। सरकार ने 2019 में राशन की दुकानों पर केरोसिन की बिक्री पूरी तरह से बंद कर दी और उस पर मिलने वाली सब्सिडी को खत्म कर दिया। केरोसिन ऑयल छीनकर शहर से गांव तक लोगों को बिजली पर निर्भर बना दिया गया।
बिजली को बढ़ावा देने के लिए 25 सितम्बर, 2017 को प्रधानमंत्री ने दीनदयाल ऊर्जा भवन में ‘प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना- सौभाग्य’ का शुभारंभ किया था। इसका उद्देश्य हर घर तक बिजली पहुंचाना है। इस योजना के तहत 31 दिसम्बर 2018 तक राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को घरेलू विद्युतीकरण कार्य पूरा करना था जिससे कि 2019 तक हर घर में बिजली पहुंचाई जा सके।
इस योजना की विशेषता बताते हुए सरकार ने कहा है कि यह केरोसिन का विकल्प है। इससे सभी इच्छुक घरों तक बिजली की पहुंच, स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार, संचार में सुधार, सार्वजनिक सुरक्षा में सुधार, नौकरी के अवसरों में वृद्धि, दैनिक कार्यों में, विशेषकर महिलाओं के लिए बेहतर गुणवत्ता मिलेगी। सरकार के तेजी से बिजली उत्पादन करने के चक्कर में एक नवम्बर, 2017 को ‘एनटीपीसी’ के ‘ऊंचाहार प्लांट’ में बॉयलर विस्फोट में तीस से अधिक कर्मचारी, इंजीनियर मारे गये और करीब 200 घायल हो गये।
सरकार ने 8 अगस्त, 2022 को ‘विद्युत (संशोधन) विधेयक, 2022’ को लोकसभा में पेश कर पास भी करवा लिया। इससे बिजली का निजीकरण आसान हो गया। इससे पहले सरकार ने एक दिसम्बर, 2021 को ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ (एसकेएम) को पत्र लिखकर आश्वसान दिया था कि ‘बिजली बिल में किसान पर असर डालने वाले प्रावधानों पर पहले सभी स्टेकहोल्डर्स/’एमकेएस’ से चर्चा होगी। चर्चा के बाद ही बिल संसद में पेश किया जायेगा।’ सरकार बिजली के निजीकरण की जल्दबाजी में किसानों से की गई लिखित बातों से भी मुकर गई और बिना चर्चा के संसद में बिल पेश कर दिया। इसके विरोध में बिजली विभाग के कर्मचारियों ने कई राज्यों में प्रदर्शन किया जिसमें उत्तरप्रदेश के कर्मचारियों का मार्च 2023 में 73 घंटे का आन्दोलन प्रमुख था।
सरकार ने बिजली कम्पनियों को लाभ पहुंचाने के लिए ‘प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना- सौभाग्य’ में सभी तरह के इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए भारी धन मुहैय्या कराया। बिजली कम्पनियों की आसानी के लिए स्मार्ट-मीटर देश भर में लगाये जाने लगे जिसका काम सरकार ने निजी कम्पनियों को ही दे दिया। स्मार्ट-मीटर से लोगों पर बिजली का बोझ बढेगा, क्योंकि स्मार्ट-मीटर स्पार्क होने वाली जगह को भी यूनिट में जोड़ देगा, यहां तक बोर्ड में लगने वाला इंडीकेटर भी जोडेगा। भविष्य में इसको मोबाईल फोन की तरह बनाया जा सकता है, यानि पहले रीचार्ज करो फिर उपयोग करो। इससे रोजगार बढ़ने की बजाय पहले से बढ़ती बेरोजगारी में इजाफा होगा।
हम जानते हैं कि भारत की बड़ी आबादी कृषि पर निर्भर है जहां फसल होने के समय ही उनके पास पैसा आता है। ऐसे में उन घरों में बिजली नहीं मिल पायेगा। इसका और भी प्रभाव होगा। ‘उत्तरप्रदेश पॉवर कॉरपोरेशन’ के प्रबंधन ने आईटी विशेषज्ञों की कमेटी बनकार स्मार्ट बिजली मीटर की जांच कराई तो सभी वितरण-निगमों की ओर से लगाए गए मीटरों में खामियां पाई गईं। मीटर गलत रिकॉर्ड करने के साथ ही आरटीसी दो घंटे में ड्रिप कर रही है जिसका असर बिलिंग पर पड़ेगा। कॉरपोरेशन के वाणिज्य निदेशक निधि कुमार नारंग ने मीटर लगाने वाली कम्पनी जीएमआर, इटली स्मार्ट और पोलरिस को नोटिस जारी किया है।
हम मोबाईल के उदाहरण से इसको समझ सकते हैं कि किस तरह से मोबाईल के रिचार्ज को कम्पनियां बढ़ाती जा रही हैं। आपका नेटवर्क रहे या नहीं, उनका दिन कम होता जाता है। पहले सरकार ने हर काम के लिए आपको मोबाईल पर निर्भर किया। बैंक का काम हो, बच्चों को फार्म भरना हो, स्कूल में दाखिला हो या कोई भी काम आपके मोबाईल पर ओटीपी आता है जिसके कारण आपको हर महिना करीब 300 रू. चार्ज कराना होता है। इसी तरह घरों तक बिजली पहुंचाकर लोगों से बिजली के सामान पंखा, कूलर, टीवी इत्यादि के सामान खरीदकर पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाया गया।
‘विद्युत (संशोधन) विधेयक 2022’ की मार्फत बिजली का निजीकरण कर लोगों पर बिजली के बोझ लादे जाने की तैयारी है। इस बात को जनता समझ गई है और देश में कई जगह स्मार्ट-मीटर का विरोध हो रहा है। पश्चिमी उत्तरप्रदेश में लोगों ने मेरठ जिला कार्यालय में जाकर विरोध जताया तो बिहार में ‘राष्ट्रीय जनता दल’ ने स्मार्ट-मीटर को मुद्दा बनाया हुआ है। उड़ीसा के बरगढ़ जिले के पदमपुर में 8 नवम्बर को स्मार्ट-मीटर के खिलाफ ‘संयुक्त कृषक संगठन’ द्वारा ‘कृषक गर्जन समावेश’ का आयोजन किया गया। ‘कृषक गर्जन समावेश’ में जानकारी दी गई कि उड़ीसा में 15000 से अधिक स्मार्ट-मीटर उखाड़कर ग्रिड कार्यालय और ‘टीपीडब्ल्यूओडीएल’ के कार्यालय के सामने फेंक दिया। लोगों ने बताया की उपभोक्ताओं और विशेष रूप से किसानों की सहमति के बिना स्मार्ट-मीटर लगाने से भारी आक्रोश है। स्मार्ट-मीटर का विरोध करने वाले किसान नेताओं पर सरकार झूठे केस लगा रही है। किसान नेता रमेश महापात्रा को आदतन अपराधी बता रही है जिसका उड़ीसा हाईकोर्ट बार एसोसिएशन और बरगढ़ जिला बार एसोसिएशन ने विरोध किया है। इस आन्दोलन का असर यह रहा कि बरगढ़ जिला कलेक्टर को घोषणा करना पड़ी कि बकाया राशि के कारण किसी की बिजली नहीं काटी जायेगी। इस लड़ाई को मजबूती देने के लिए ‘एसकेएम’ से पी. कृष्णाप्रसाद और ‘किसान-मजदूर परिषद’ से अफलातून और राजेन्द्र चौधरी ने भाग लिया। बिजली का मुद्दा इतना महत्वपूर्ण है कि सभी चुनावी पार्टियां, खासकर राष्ट्रीय स्तर की भाजपा, कांग्रेस और आप हर चुनाव में 300 यूनिट बिजली फ्री देने का वादा कर रही है। एक तरफ बिजली फ्री देने का वादा तो दूसरी तरफ सरकार बनने के बाद बिजली के निजीकरण और स्मार्ट मीटर लगाकर जनता की जेब काटने की योजना बनाई जा रही है।(सप्रेस)