जंगल की कटाई की जगह वृक्ष-रोपड़ संस्कृति हमारे जीवन का हिस्सा हो। उनकी देखरेख की संस्कृति हमारे जीवन की संस्कृति बने। यह तभी होगा जब हमारी विश्वास की सघनता बढ़ेगी इस प्रकृति से, जल से और हमारे जलवायु से। यह तभी होगा जब हम अपनी नवोदित पीढ़ी में भी प्रकृति से प्रेम करने का बीज अंकुरित कर सकेंगे। ऐसा करने पर, एक अहिंसक सुखद यात्रा का मनुष्य तभी भागीदार बन सकेगा जब हमारे जीवन में हमारे जीवन के संबल होंगे।
मानव सभ्यता प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर उन्नत तो हुई है, किन्तु हमारी ऊर्जा की खपत भी बढ़ती जा रही है। यदि इसी तरह ऊर्जा के परम्परागत साधनों का उपयोग बढ़ता गया, तो भविष्य में भयानक ऊर्जा संकट का सामना करना पड़ेगा। दिनों-दिन बढ़ता वैश्विक तापमान और जलवायु परिवर्तन गंभीर समस्या बनता जा रहा है। इससे बचाव के लिए वैज्ञानिक जीवाश्म ईंधनों के विकल्पों को तलाश रहे हैं। सभी तरह के विकल्पों में सौर ऊर्जा सबसे बेहतर है क्योंकि यह सस्ती, सर्वसुलभ, निरापद, निरंतर उपयोग लाई जाने वाली अक्षय ऊर्जा है।
हाल ही में मिशिगन युनिवर्सिटी के ज़ेटियन माई और उनके साथियों द्वारा किए गए एक शोध में उन्होंने तांबा और लोहा आधारित एक ऐसा उत्प्रेरक विकसित किया है जो सौर ऊर्जा का उपयोग कर कार्बन डाई-ऑक्साइड को मीथेन में परिवर्तित करता है, जिसे हम ईंधन के रूप में उपयोग कर सकते है। ‘प्रोसीडिंग्स ऑफ दी नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज़’ में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक तांबा-लोहा आधारित यह नया उत्प्रेरक अब तक की सबसे तीव्र दर से और सबसे अधिक ऊर्जा उत्पन्न करने वाला है।
वहीं लॉस एंजेल्स, कैलिफोर्निया में एक सौदे के तहत एक विशाल सौर फार्म स्थापित किया जा रहा है जहां दुनिया की एक सबसे बड़ी बैटरी का इस्तेमाल किया जाएगा। यह शहर को 7 प्रतिशत बिजली प्रदान करेगा एवं इसकी लागत बैटरी के लिए 1.3 सेंट प्रति युनिट और सौर ऊर्जा के लिए 1.997 सेंट प्रति किलोवाट घंटा होगी। यह किसी भी जीवाश्म ईंधन से उत्पन्न उर्जा से सस्ती है।
मार्च 2019 में ‘ब्लूमबर्ग न्यू एनर्जी फाइनेंस’ द्वारा 7000 से अधिक वैश्विक भंडारण परियोजनाओं के विश्लेषण से पता चला है कि 2012 के बाद से लीथियम बैटरी की लागत में 76 प्रतिशत की कमी आई है। एक अन्य अध्ययन के अनुसार 2030 तक इसकी कीमतें आधी होने का अनुमान है जो ‘8-मिनट सोलर एनर्जी’ नामक कंपनी द्वारा लगाए गए अनुमान से भी कम है।
‘ब्लूमबर्ग न्यू एनर्जी फाइनेंस’ नवीन सौर-प्लस-स्टोरेज कैलिफोर्निया में तैयार करने जा रही है। इस परियोजना से प्रतिदिन 400 मेगावाट सौर संयंत्रों का जाल बनाया जाएगा, जिससे सालाना लगभग 8,76,000 मेगावॉट घंटे (MWh) बिजली पैदा होगी। यह दिन के समय 65,000 से अधिक घरों के लिए पर्याप्त होगी। इसकी मुख्य विशेषता यह है कि इसकी 800 मेगावॉट घंटे की बैटरी सूरज डूबने के बाद बिजली को संग्रहित करके रखेगी, जिससे प्राकृतिक गैस जनरेटर की ज़रूरत कम हो जाएगी।
भारत में कुल सिंचित क्षेत्र के लिए 2 करोड़ पंप को बिजली से तथा 75 लाख पंप को डीज़ल से ऊर्जा मिलती है। कृषि क्षेत्र बिजली का एक प्रमुख उपभोक्ता है। कई राज्यों में कुल बिजली खपत में से एक-चौथाई से लेकर एक-तिहाई तक कृषि में खर्च किया जाता है। यह बिजली की मांग अगले 10 वर्षों में खेती में दुगनी होने की संभावना है। यदि इसके लिए नए विकल्प नहीं अपनाए गए तो खेती में बिजली सप्लाई की स्थिति बिगड़ती जाएगी।
यदि यहां भी सौर ऊर्जा का विकल्प अपनाया जाए तो यह बिजली स्थिर कीमत के अनुबंध के आधार पर अगले 25 वर्षों तक 2.75 से लेकर 3.00 रुपए प्रति युनिट की दर से मिल सकती है। महाराष्ट्र में सौर कृषि फीडर योजना के तहत कुल लगभग 2-3 हज़ार मेगावॉट के सौर संयंत्र निविदा और क्रियांवयन के विभिन्न चरणों में हैं। यह करीब 7.5 लाख पंप यानी महाराष्ट्र के कुल पंप्स में 20 प्रतिशत को सौर बिजली सप्लाई करने के बराबर है।
भारत स्थित ‘क्लाइमेट ट्रेंड्स’ और इंग्लेंड स्थित ‘ग्रीन टेक स्टार्ट-अप, राइडिंग सनबीम्स’ के एक नए अध्ययन से पता चला है कि भारतीय रेलवे लाइनों को सौर ऊर्जा की सीधी आपूर्ति से, रेलवे के राष्ट्रीय नेटवर्क में चार में से कम-से-कम एक ट्रेन को चलाने से सालाना लगभग 7 मिलियन टन कार्बन की बचत होगी। शोधकर्ताओं ने पाया कि कोयला-प्रधान ग्रिड से आपूर्ति की गई ऊर्जा के बजाए सौर से आपूर्ति भी हर साल 6.8 मिलियन टन कार्बन डाई-ऑक्साइड तक उत्सर्जन में कटौती कर सकती है, जो देश के एक शहर कानपुर के पूरे वार्षिक उत्सर्जन के बराबर है।
चीन अंतरिक्ष में सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने की तैयारी कर रहा है। सौर ऊर्जा के उपयोग की एक टेक्नॉलॉजी ‘सौर फोटो वोल्टेइक सेल’ (पीवीसी) है। यह पीवीसी सौर ऊर्जा को सीधे बिजली में बदल देते हैं। अंतरिक्ष में इस तरह संयंत्र स्थापित करना अत्यधिक लाभदायक है क्योंकि यह संयंत्र सौर ऊर्जा को पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश से पहले ही ग्रहण कर लेते हैं जिसके चलते वातावरण में बिखरने से पहले ही उसका उपयोग हो सकता है। दूसरा प्रमुख फायदा यह है कि इन संयंत्रों पर बादल का कोई असर नहीं पड़ेगा जिससे यह साल भर बिना रुकावट के काम कर सकेंगे। चीन 2021 से 2025 के बीच कई सारे छोटे या मध्यम आकार के संयंत्र पृथ्वी से 36,000 किलोमीटर दूर की कक्षा में स्थापित करने में सफल हो सकता है।
यह बेहतर है कि अब समूचा विश्व सौर ऊर्जा पर शोध और अध्ययन कर उसकी उपलब्धता सुनिश्चित करने में लगा है। तेल, कोयला तथा ऊर्जा के अन्य परम्परागत साधन पर्यावरण सम्बन्धी समस्याएं पैदा करते हैं इसलिए सौर ऊर्जा का उपयोग किया जाना ही बेहतर विकल्प है। (सप्रेस)