हमारे यहां त्यौहारों का ताना-बाना कृषि-चक्र से गहरा जुडा है। मसलन इन दिनों खरीफ की फसलों के आने और रबी की फसलों के इंतजार के अंतराल में दीपावली मनाई जाती है। बाजारों से लदी-फंदी आज की उत्सव-धर्मिता ने इस प्राकृतिक चक्र की एवज में ध्वनि और वायु प्रदूषण को अहमियत दी है।
दीपावली के समय प्रदूषण का स्तर कई गुना बढ़ जाता है। पिछले कुछ वर्षों के आंकड़ों से पता चलता है कि दीपावली के बाद वायु-प्रदूषण बढ़ता है क्योंकि पटाखे हवा में मौजूद धूल और प्रदूषक तत्वों को बढ़ा देते हैं। इनमें कई तरह के जहरीले रसायन होते हैं जो पर्यावरण के साथ ही हमारी सेहत को भी नुकसान पहुंचाते हैं।
पटाखों की शुरुआत चीन में करीब 2200 साल पहले हुई थी। तब वहां बांस की डंडी को आग में डाला जाता था जिससे उसकी गांठ फटने के कारण तेज आवाज आती थी। बाद में 9वीं सदी में चीनियों ने बांस में बारूद भरकर फटाखे बनाना शुरू किया। बाद में बांस की जगह कागज का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया गया।
13वीं से 15वीं शताब्दी में पटाखे चीन, यूरोप व अरब देशों तक आतिशबाजी में इस्तेमाल किए जाने लगे। ‘द हिस्ट्री ऑफ फायर वर्क्स इन इंडिया बिटवीन एडी 1400 एंड 1900’ में लिखा है कि 1518 में गुजरात में एक शादी में पटाखों से आतिशबाजी की गई थी। दुनिया में सर्वाधिक पटाखों का उत्पादन चीन में ही होता है, इसके बाद भारत दूसरे नंबर पर है।
दीपावली का त्यौहार इस वर्ष अक्टूबर के अंत में है और इस समय भारत में कोहरे का मौसम रहता है। इस वजह से यह पटाखों से निकलने वाले धुएं के साथ मिलकर प्रदूषण के स्तर को और भी ज़्यादा बढ़ा देगा। ‘आइक्यू एयर’ की रिपार्ट के अनुसार वर्ष 2020 में पूरे विश्व में सबसे खराब वायु गुणवत्ता वाले देशों की सूची में भारत तीसरे नंबर पर था। वहीं हाल में दिल्ली में प्रदूषक पीएम 2.5 का सूचकांक 462 था, जो 50 से भी कम होना चाहिए।
इस बार दिल्ली के साथ ही मुंबई भी वायु-प्रदूषण की गिरफ्त में है और आने वाले वर्षों में उत्तर एवं मध्य भारत के लोगों को खतरनाक वायु-प्रदूषण की समस्या का सामना करना पड़ेगा। ‘ग्लोबल बर्डन ऑफ डिसीज़ेस’ नामक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 1990 से लेकर अब तक चीन में ‘पीएम-2.5’ के कारण असमय मौतों में 17 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि भारत में यह आंकड़ा तीन गुना अधिक है।
प्रदूषण की बढ़ती समस्या के कारण दिल्ली सरकार ने दीपावली पर पटाखों के उत्पादन, बिक्री और आतिशबाजी पर पूरी तरह प्रतिबन्ध लगा रखा है। वहीं कुछ राज्य दीपावली पर पटाखों की बिक्री पर प्रतिबन्ध लगा देते हैं तो कुछ राज्य केवल निर्धारित समय में ही हरित पटाखे जलाने के अनुमति देते हैं। जबकि अधिकांश यूरोपीय देश, सिंगापुर, इंग्लेंड, वियतनाम, आइसलैंड इत्यादि देश त्यौहारों के समय ही पटाखे खरीदने की अनुमति देते हैं।
अमरीका के कई प्रांतों में व्यक्तिगत स्तर पर पटाखे चलाने की अनुमति नहीं होती है, बल्कि वहां सामाजिक, शहर, राज्य स्तर पर पटाखे चलाने की अनुमति मिलती है। इसी तरह ऑस्ट्रेलिया ने भी आकाश में जाकर फूटने वाले और तेज़ आवाज़ करने वाले पटाखों पर प्रतिबंध लगा रखा है, जबकि न्यूज़ीलैंड में साल में सिर्फ चार बार ही पटाखे चलाने की अनुमति है।
पटाखों से होने वाले भयंकर प्रदूषण की समस्या को कम करने के लिए ‘राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान’ (नीरी) ने हरित-पटाखे बनाए हैं। हरित-पटाखे दिखने, जलाने और आवाज़ में सामान्य पटाखों की तरह ही होते हैं, किन्तु इनके जलने से प्रदूषण कम होता है। हालांकि हमें यह भी ध्यान रखना होगा की यदि हरित-पटाखे अधिक जलाए जाते हैं तो निश्चित ही त्यौहारों के बाद प्रदूषण का स्तर बढ़ेगा। प्रदूषण की समस्या को देखते हुए केवल विशेष अवसरों, जैसे-बड़े धार्मिक उत्सवों पर ही केवल हरित-पटाखों को सामाजिक या सामूहिक तौर पर, निर्धारित समय अवधि में, निर्धारित संख्या में ही चलाने की अनुमति होनी चाहिए। ऐसा करने से पटाखा उद्योग के कामगारों का रोजगार भी बना रहेगा, साथ ही हम हमारे त्यौहारों को पूरे रीति-रिवाज के साथ मना पाएंगे एवं प्रदूषण की समस्या से भी बचा जा सकेगा। (सप्रेस)
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