कोरोना वायरस ने इन दिनों दुनियाभर में खलबली मचा दी है। अमीर-गरीब, ऊंचा-नीचा, काला-गोरा, गरज कि हर नस्ल और फितरत के इंसान को कोरोना ने अपनी चपेट में ले लिया है। इससे कैसे निपटा जाए? यह सभी को बार-बार बताया जाना चाहिए।
आज पूरी दुनिया कोरोना वायरस के कारण भयानक स्थिति में पहुंच चुकी है। अगर हम अभी भी सावधान नहीं हुए तो उसकी बडी कीमत चुकानी पड सकती है। भारत जैसे 136 करोड आबादी वाले देश के लिये, जहां जनसंख्या घनत्व बहुत ज्यादा है, यह खतरा और बढ़ जाता है। विदेश से भारत में आए संक्रमित लोगों ने उनके संपर्क में आये अनेक स्थानीय लोगों को संक्रमित किया, फिर स्थानीय संक्रमित व्यक्तियों ने उनके संपर्क में आये अनेकों को संक्रमित किया। ये अनेक संक्रमित लोग गांवों में वापस लौटकर अपने साथ कोरोना को गांव और घर तक ले गये। इस तरह एक श्रृंखला बनती गई। आज हजारों कोरोना कैरियर पूरे देश में गावों, कस्बों, छोटे-बडे शहरों में पहुंच चुके हैं। इसके कारण देश में कोरोना तेजी से फैल रहा है और फैलता जायेगा।
कोरोना एक नये प्रकार का वायरस है। डॉक्टरों और वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना वायरस ज्यादा खतरनाक नहीं है। जिनकी प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत है, वे आसानी से उसका मुकाबला कर सकते हैं और उससे जीत सकते हैं। संक्रमित लोगों में लगभग 80 प्रतिशत सामान्य उपचार से ठीक हो जायेंगे। सामान्य बुखार के लक्षणों के साथ यह बीमारी ठीक हो जाती है। सामान्यत: तापमान वृद्धि के साथ अनेक वायरस मर जाते हैं, लेकिन करोना पर इसका प्रभाव पडता नहीं दिखाई दिया। हालांकि यह माना जा रहा है कि भारत में तापमान वृद्धि के साथ कोरोना थोडा कमजोर पड सकता है। कोरोना से मृत्यु-दर मात्र तीन प्रतिशत के आसपास है। दुनियां के आंकडे बताते हैं कि जिनकी प्रतिरोधक क्षमता मजबूत है, ऐसे दस से 40 साल के व्यक्तियों की मृत्यु के प्रमाण कम मिले हैं। गर्भवती महिलायें और दस साल से छोटे बच्चे, जिनमें प्रतिरक्षा प्रणाली पूरी तरह मजबूत नहीं हुई हो और 50-60 साल की आयु वाले ऐसे लोग, जिनको कई अन्य बीमारियां हैं और जिसके चलते उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर पडी है, पर यह वायरस भारी पडता है और उनकी जान को खतरा हो सकता है।
अगर कोरोना इतना खतरनाक नहीं है और इससे मृत्यु-दर केवल तीन प्रतिशत के आसपास है, तो फिर दुनिया में इसका इतना डर क्यों फैला है? इसलिये कि इससे जितने अधिक लोग संक्रमित होंगे, उतने अधिक लोग मरेंगे। इस समय दुनिया की आबादी 770 करोड और भारत की आबादी 136 करोड है। मान लीजिये इसमें से 10 प्रतिशत लोगों में भी यह फैलता है तब दुनियाभर में 77 करोड लोग और भारत के 13.8 करोड लोग संक्रमित होंगे। तीन प्रतिशत मृत्यु-दर के हिसाब से दुनिया भर में 2.31 करोड और भारत में 41 लाख लोगों की जान पर खतरा हो सकता है। जाहिर है, जिस मात्रा में कोरोना फैलेगा उसी अनुपात में लोगों को मृत्यु का सामना करना पडेगा। कहा जा रहा है कि भारत में कोरोना 20 प्रतिशत से भी ज्यादा लोगों को संक्रमित करेगा। यह एक भयंकर स्थिति है और यही कारण है कि पूरी दुनिया इससे डरी हुई है।
जब तक कोरोना वायरस का कोई इलाज नहीं मिलता तब तक इसके संक्रमण से बचना ही एकमात्र उपाय है। इस वायरस का बाहरी आवरण कमजोर है। इस कारण किसी भी साबुन से 20 सेकंड से ज्यादा समय तक विधिवत हाथ धोने पर उसका बाह्य आवरण टूटने से वह खत्म हो जाता है। डॉक्टर इसीलिए बार-बार साबुन से हाथ धोने की सिफारिश कर रहे हैं। कोरोना के सम्पर्क में आने वाली किसी भी सतह पर वह 24 या अधिकतम 72 घंटों (तीन दिन) तक रहता है। आपके घर में बाहर से आ रही किसी भी वस्तु, जैसे – अखबार, दूध का पैकेट या अन्य ऐसी चीजों के माध्यम से भी वह आपके घर में प्रवेश कर सकता है। इसलिये अभी बाहर से कोई भी वस्तु घर में ना लायें। अगर कुछ लाना जरुरी हो तो पैकेट को साबुन से धोकर या कम-से-कम 24 घंटे अलग रखकर उसका इस्तेमाल करें।
घर, पडौस, गांव या शहर में संक्रमित व्यक्ति को अलग रखकर उपचार किया जाता है। कोरोना के लक्षण प्रकट होने में 14 दिन तक का समय लग सकता है और 21 दिनों में मरीज की स्थिति स्पष्ट होती है, इसलिये कम-से-कम 21 दिनों तक कर्फ्यू लगाना पडता है। सावधानी नहीं बरतने पर तब तक कर्फ्यू बढाने की जरुरत पडती है जब तक उसका फैलाव नियंत्रित नहीं होता। जाहिर है, ऐसे में सबको सरकारों द्वारा लगाए गए कर्फ्यू में सहयोग करना चाहिए। केरल, महाराष्ट्र, पंजाब, उत्तरप्रदेश और दिल्ली आदि की राज्य सरकारें गंभीरता से उपाय कर रही हैं। देश की जनता को खुद से अनुशासन का पालन करना होगा। यह देश के लिये एक अनुशासन पर्व है।
इन दिनों खेत में पडी फसलें घर लाने की व्यवस्था करनी होगी ताकि अगर संकट लंबे दौर तक चलता है तो देश को खाद्यान्य की कमी ना पडे। किसानों को हो रहे नुकसान के लिये भरपाई की व्यवस्था करनी होगी। सरकारों के सारे उपाय संगठित क्षेत्र और विभिन्न योजनाओं में रजिस्टर हुये लोगों के लिये दिखाई दे रहे हैं, लेकिन उसे ध्यान रखना होगा कि ऐसे लाखों लोग देश में रहते हैं जो कहीं भी पंजीकृत नहीं होंगे। उनके लिये अधिक जिम्मेदारी के साथ व्यवस्था करनी होगी और अनाथ, भिखारी आदि के बारे में भी सोचना होगा।
सभी अत्यावश्यक सेवाओं में लगे लोगों के लिये जरुरी साधन उपलब्ध करवाने चाहिये। कोरोना टेस्टिंग लैब, वेंटीलेटर, दस्ताने, मास्क उपलब्ध कराने चाहिये। दूसरी अत्यावश्यक सेवा देने वालों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये तेजी से कदम उठाना चाहिये। जिन राज्यों के पास आर्थिक साधन नहीं हैं उन्हें तत्काल मदद करनी चाहिये। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश में कमी और ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ की चेतावनी के बावजूद भारत सरकार ने 24 मार्च तक इन जरूरी साधनों का निर्यात जारी रखा।
कर्फ्यू के दिनों में सरकार ने उचित प्रबंध नहीं किया तो भारत में भुखमरी का संकट पैदा होगा। हमारे देश में कम-से-कम 60 करोड लोगों को मजदूरी करके ही खाना नसीब होता है। 20 करोड लोगों के पास आज भी खाने के लिये कुछ नहीं है। भोजन ना होने से इतनी बडी जनसंख्या के लिये गंभीर संकट पैदा होगा। जैसे-जैसे कर्फ्यू की समय सीमा बढेगी वैसे-वैसे भारत में भुखमरी का संकट गंभीर रुप धारण कर सकता है। इसे लेकर केन्द्र सरकार को पूरे देश के लिये एकीकृत और व्यापक योजना बनानी चाहिये थी, लेकिन वह सारी जिम्मेदारी राज्यों पर डालकर केवल दिशा-निर्देश देने का ही काम करती दिख रही है। इससे आर्थिक दृष्टी से कमजोर राज्यों के लोगों को बडी कीमत चुकानी पडेगी। सरकार के पास इतना समय था कि वह बुनियादी चीजों की आपूर्ति के साथ चरणबद्ध तरीके से कर्फ्यू लगाती, लेकिन वह कोरोना की गंभीरता को नहीं समझ पाई। अब इसका खामियाजा सबको भुगतना पडेगा। प्राथमिक अनुमान के अनुसार कोरोना संकट का सामना करने के लिये एक लाख करोड रुपयों की जरुरत है, लेकिन केन्द्र सरकार व्दारा मात्र 35 हजार करोड (पहले 20 हजार करोड और फिर 15 हजार करोड) रुपयों का प्रावधान किया गया है।
हमने पहले ही बहुत देर कर दी है। कोरोना का पहला परिचय 17 नवंबर 2019 को चीन में हुआ था और दिसंबर में वह दुनियाभर के सामने आया। भारत में कोरोना का प्रवेश 30 जनवरी को केरल में हुआ था। चीन के अनुभव के बाद हमारे पास पर्याप्त समय था कि हम बाहर से आने वाले लोगों को ठीक से जांच पडताल करके प्रवेश देते और उन्हें एकांत में या ‘क्वारंटीन’ में रखते, लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया गया। पहले हम अमेरिका के राष्ट्राध्यक्ष के लिये ‘लाल-गलीचा’ बिछाने में व्यस्त रहे और फिर ‘शाहीन बाग’ को निमित्त बनाकर हिंदू-मुस्लिम का खेल खेलते रहे। इसी के साथ मध्यप्रदेश की सरकार को गिराने, बनाने के बाद जब मार्च 10 को थोडी फुरसत मिली तब सरकार ने कोरोना से निपटने का काम शुरु किया, लेकिन तब तक कोरोना ने पूरे देश में पैर पसार लिये थे। इसका दोष केवल प्रधानमंत्री और गृहमंत्री भर को नहीं दिया जा सकता। इसमें वे सब भी भागीदार हैं जो कारपोरेट मीडिया के साथ इन खेलों में खुशियां मना रहे थे। ध्यान रखें, इतनी भी थालियां न पीटें कि किसी की मौत पर अपना माथा और छाती पीटने के लिये हमारे हाथों में ताकत ही न बचे। (सप्रेस)