सचिन श्रीवास्‍तव

आप चाहें, न चाहें, ‘डिजिटल मीडिया’ धीरे-धीरे सभी की बुनियादी जरूरत बनता जा रहा है। लेकिन क्‍या महिलाओं की हमारी आधी आबादी तक भी विज्ञान का यह चमत्‍कार पहुंच पा रहा है? क्‍या वे उतनी ही आसानी से ‘स्‍मार्ट-फोन’ की मार्फत अपनी ‘दुनिया’ मुट्ठी में कर पा रही हैं जितनी आसानी से पुरुष? प्रस्‍तुत है, लाडली मीडिया फैलोशिप के तहत इस विषय की पडताल करता सचिन श्रीवास्‍तव का यह लेख।

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के पडौस में बसे गांव बिलखिरिया की शांता चाची कोरोना के बारे में पूरे आत्मविश्वास से बता रही हैं कि यह बीमारी सिर्फ शहरों में और अमीर लोगों के बीच फैलती है। यहां बताते चलें कि मध्यप्रदेश के बाशिंदों की किस्मत तय करने का केंद्र यानी प्रख्यात और खूबसूरत अरेरा हिल शांता चाची के घर से महज 19 किलोमीटर दूर है। अरेरा हिल पर बनी ‘मध्यप्रदेश विधानसभा’ और करीब स्थिति सचिवालय की इमारत ‘वल्लभ भवन’ में बैठे अधिकारी मध्यप्रदेश में कोरोना के दौरान डिजिटल माध्यमों से सूचनाओं की विस्तार पर पूरे उत्साह से बात करते हैं, लेकिन महिलाओं तक सूचना की पहुंच सुनिश्चित करने के बारे में वे चुप्पी साध जाते हैं।

सूचना तकनीक की पहुंच में भी दोयम दर्जे की नागरिक

असल में, यह एक उदाहरण मात्र है। पूरे देश में कमोवेश यही हाल है। डिजिटल तकनीक पर सवार सूचनाओं की जो खेप गांवों, देहातों, कस्बों में पहुंचाई जा रही है, उसमें आधी आबादी यानी महिलाओं तक सूचना की पहुंच सुनिश्चित करना सरकार और प्रशासन की प्राथमिकता में नहीं है। दिलचस्प यह है कि जब इस बारे में अधिकारियों से बात की गई तो उन्होंने ‘आफ द रिकॉर्ड’ कहा कि पहले पुरुषों तक ही सूचना पहुंच जाए, तो काफी है। यानी प्रशासन की प्राथमिकता सूची में भी महिलाएं दोयम दर्जे की नागरिक हैं।

कोविड—19 में कैसे पहुंची महिलाओं तक सूचना

मध्यप्रदेश में कोरोना के बारे में सूचनाएं जनता तक पहुंचाने के लिए सरकार ने व्हाट्सएप से लेकर ट्विटर तक का सहारा लिया है। प्रदेश स्तर पर अधिकारियों के डिजिटल समूह बने और फिर जिला स्तर के अधिकारियों को उनसे जोड़ा गया। जिला स्तर पर अधिकारियों को जिम्मेदारी दी गई कि वे अपने ट्विटर हेंडल के अलावा व्हाट्सएप व अन्य माध्यमों से ब्लॉक और फिर नीचे पंचायत स्तर तक सूचनाएं पहुंचाएं। हालांकि इस पूरी कवायद के बावजूद गांव में सूचनाएं अव्वल तो बहुत देर से पहुंचीं। फिर मुश्किल से उनके सही मायने चंद लोगों के जेहन में दर्ज हुए। इसमें भी महिलाओं तक सीधे सूचना पहुंचाने की कोई जोर आजमाइश नहीं की गई। यह मान लिया गया कि परिवार के पुरुषों के पास सूचना पहुंच गई है, तो वह महिलाओं तक पहुंच ही जाएगी।

डिजिटल इंडिया में महिलाओं की स्थिति

‘डिजिटल इंडिया एज इफ वुमन’ शीर्षक से प्रकाशित अपनी रिसर्च में अनीता गुरुमूर्ति और नंदनी चामी बताती हैं कि देश में डिजिटल मिशन के 6 साल बाद भी सूचना तकनीक तक पहुंच का पलड़ा पुरुषों के पक्ष में झुका हुआ है। डिजिटल मिशन से लाभान्वित कुल आबादी में पुरुषों की हिस्सेदारी 64 प्रतिशत है, तो महज 36 प्रतिशत महिलाओं तक ही यह ‘बयार’ पहुंची है। इसमें भी ग्रामीण भारत में हालात और भी खराब हैं।

घर में स्मार्ट फोन है, लेकिन महिलाओं की पहुंच सीमित

गांव—गांव में स्मार्ट फोन पहुंचने के शोर के बीच हकीकत यह भी है कि महिलाओं की टचस्क्रीन तक पहुंच बेहद सीमित और लगभग न के बराबर है। बम्होरी गांव के किसान अनिरुद्ध सिंह अपने परिवार की महिलाओं के बारे में गर्व से बताते हैं कि उनकी तीन भाभियां ग्रेजुएट हैं और बहनों ने पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। लेकिन उनके घर में भी महिलाओं तक तकनीक की पहुंच सीमित है। स्मार्टफोन के बारे में अनिरुद्ध कहते हैं कि सभी के पतियों और बेटों के पास स्मार्ट फोन है और उसी के जरिये वे परिवार के अन्य सदस्यों से वीडियो चैट आदि करती हैं। बातों-बातों में वे यह भी बताते हैं कि महिलाओं के सोशल मीडिया आईडी को उनके बेटे या पति ही आपरेट करते हैं। यह सिर्फ एक परिवार का मामला नहीं है। ज्यादातर ग्रामीण परिवारों में महिलाओं की सीधी पहुंच सोशल मीडिया तक नहीं है। यहां तक की उनके अकाउंट के पासवर्ड भी बेटे या पति ही बदलते हैं।

घर से बाहर काम कर रही हैं, लेकिन मोबाइल नहीं हाथ में

आमतौर पर माना जाता है कि जो महिलाएं घर से बाहर काम कर रही हैं, उनके हाथों में मोबाइल पहुंच गया है। यह भी आमधारणा है कि शहरी इलाकों में महिलाओं की पहुंच मोबाइल या इंटरनेट तक बढ़ी है, हालांकि यह आंशिक सच्चाई और भ्रम है। हकीकत यह है कि आर्थिक रूप से बेहतर घर हों या फिर घरेलू काम से आजीविका चलाने वाले परिवार, सभी में टचस्क्रीन पर पुरुषों का कब्जा ज्यादा है। घरेलू कामगारों में जहां 95 प्रतिशत पुरुषों के पास फोन है, तो घरेलू सहायक महिलाओं में से महज 30 प्रतिशत ही अपने साथ फोन रखती हैं। उनसे संपर्क परिवार के पुरुषों के जरिये ही संभव हो पाता है।

नया फोन आया तो पहले उसे बेटा ही चलाएगा

अशोकनगर जिले के बहादुरपुर कस्बे के एक परिवार से बात करने पर पता चला कि घर में जो सबसे नया फोन आता है, उसे पहले 23 वर्षीय बेटा इस्तेमाल करता है। उसके बाद वह छोटे भाई या पिता के हाथ में पहुंचता है। उसके बाद ही बहन के हाथ से होता हुआ मां के हाथ में पहुंचता है। हालांकि तब तक उसके ज्यादातर फंक्शन आउटडेटेड हो चुके होते हैं। इस तरह महिलाओं के हाथ में तकनीक पहुंच तो रही है, लेकिन पिछड़ी हुई।

पंचायत के इंटरनेट तक नहीं है, महिलाओं की पहुंच

देश की कई पंचायतों को इंटरनेट की सुविधा से लैस किया गया है, लेकिन यहां भी महिलाओं की पहुंच नहीं है। ज्यादातर पंचायतों में पुरुषों का कब्जा है। अगर कोई महिला सरपंच है भी तो इंटरनेट आदि से जुड़ी सारी कार्यवाही को उनका बेटा या परिवार का कोई अन्य पुरुष ही देखता है। इससे गांव की अन्य महिलाएं सहज नहीं हो पातीं और वे इंटरनेट से दूरी बना लेती हैं।

महिलाओं की इंटरनेट और डिजिटल पहुंच पर लेखक और पत्रकार सचिन कुमार जैन कहते हैं कि महिलाओं की इंटरनेट तक पहुंच बेहद सीमित है और इसके लिए किसी प्रमाण की जरूरत नहीं है। यह नजरिये और सोच से जुड़ा हुआ मामला है। पहली बात तो किशोरियों और महिलाओं को इंटरनेट से दूर रखा जाता है। अगर पहुंच बनती भी है तो उसमें कई किस्म के बंधन लगाए जाते हैं।

‘विकास संवाद’ संस्था से जुड़े सचिन जैन कहते हैं कि कई परिवार एक ही फोन रख सकते हैं और उस पर परिवार में कमाने वाले का कब्जा रहता है। इसमें पुरुषों की दावेदारी ज्यादा है। घरेलू मजदूर की बात करें तो जहां 95 प्रतिशत पुरुषों के पास अपना फोन है, तो महिलाओं के मामले में यह पहुंच महज 30 प्रतिशत ही है।

कौन करता है किस लिए इस्तेमाल

‘विकास संवाद’ संस्था ने मध्यप्रदेश में ‘डिजिटल-लिट्रेसी’ कार्यक्रम चलाया था। इसमें किशोर लड़के—लड़कियों का डिजिटल तकनीक से परिचय कराते हुए रोजमर्रा के जीवन में तकनीक के इस्तेमाल पर जोर दिया गया था। इसके अनुभवों के बारे में बताते हुए सचिन जैन कहते हैं कि लड़कों और लड़कियों के यूट्यूब इंटरनेट यूज का डेटा देखने पर साफ पता चलता है कि किशोरियों ने जहां ज्यादा समय ज्ञान-आधारित, जीवन-यापन से जुडी या अपनी जरूरत के वीडियो देखने में डेटा खर्च किया, वहीं लड़कों ने मनोरंजक वीडियो पर अपना समय ज्यादा बिताया।

इंटरनेट पर फ्राड का खतरा

इंटरनेट पर महिलाओं की पहुंच को कम करने के बारे में एक आम तर्क दिया जाता है कि वर्चुअल दुनिया में तमाम तरह के खतरे हैं, लेकिन ये खतरे पुरुषों के लिए भी उतने ही हैं, जितने महिलाओं के लिए। इस बारे में सचिन जैन कहते हैं कि इंटरनेट के सुरक्षित इस्तेमाल के जरिये ही इससे निपटा जा सकता है। महिलाओं की पहुंच सीमित करना इसका सही हल नहीं हो सकता।(सप्रेस) 

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