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22 जनवरी को श्रीरामलला की प्राणप्रतिष्ठा के साथ वर्ष 2024 का गणतंत्र दिवस एक नये युग का शुभारंभ करने जा रहा है। इतिहास में यह वर्ष सदा दर्ज रहेगा कि इस वर्ष 22 जनवरी को श्रीराम की प्राणप्रतिष्ठा के साथ 26 जनवरी को भारत का गणतंत्र दिवस मनाया गया था।
22 जनवरी को श्रीरामलला की प्राणप्रतिष्ठा के साथ वर्ष 2024 का गणतंत्र दिवस एक नये युग का शुभारंभ हुआ है। इतिहास में यह वर्ष सदा दर्ज रहेगा कि इस वर्ष 22 जनवरी को श्रीराम की प्राणप्रतिष्ठा के साथ 26 जनवरी को भारत का गणतंत्र दिवस मनाया गया था। यह बिल्कुल एक अनोखे संयोग का ही प्रतिफल है कि 22 से 26 तारीख तक श्रीराम और गणतंत्र दिवस की झांकियों के साथ ही 30 जनवरी को हे राम कहते हुए महात्मागांधी का शहीद दिवस भी इन दिनों की अवधि को नये-नये अर्थ देगा।
हमारे गणतंत्र की संपूर्ण सुरक्षा तभी हो पायेगी जब इसके नेताओं में श्रीराम की तरह त्याग की भावना रहेगी। महात्मा गांधी ने हिन्दू धर्म के बारे में कहा था कि हिन्दू धर्म सभी लोगों को अपने-अपने धर्म के अनुसार ईश्वर की उपासना करने को कहता है और इसलिए इसका किसी धर्म से कोई झगड़ा नहीं है। हिन्दू धर्म अनेक युगों के विकास का फल है, हिन्दू लोगों की सभ्यता बहुत प्राचीन है और इसमें अहिंसा समाई हुई है। हिन्दू धर्म एक जीवित धर्म है और यह जड़ बनने से साफ इंकार करता है।
महात्मा गांधी ने कहा है कि यदि मुझे धर्म की व्याख्या करने के लिए कहा जाए तो मैं इतना ही कहूंगा कि अहिंसात्मक साधनों के द्वारा सत्य की खोज। कोई मनुष्य ईश्वर में विश्वास न करते हुए भी अपने आपको हिन्दू कह सकता है। सत्य की अथक खोज का नाम ही हिन्दू धर्म है। यदि आज यह धर्म मृतप्राय: निष्क्रय अथवा विकासशील नहीं रह गया है तो इसलिए कि हम थककर बैठ गये है और ज्योंही यह थकावट दूर हो जायेगी त्योंही हिन्दू धर्म संसार पर ऐसा प्रखर तेज के साथ छा जायेगा जैसा इसके पहले कदाचित कभी नहीं हुआ होगा। ऐसा लगता है कि महात्मा गांधी की इस भविष्यवाणी की नींव भी इस वर्ष रखी जा रही है।
इसी तरह वाल्मीकि की दृष्टि में श्रीराम का चरित्र ही जीवन का एक सक्रिय मार्ग है। वे कहते है कि अपने केंद्र में समाकर निस्तेज जीवन बिताते हुए जो सदाचार रचा जाता है वह हेय है। इस तरह के जीवन से जीवन का दंडकवन पार नहीं किया जा सकता। यह जीवन ही एक दंडकवन है जिसे पार कर हमें आगे जाना है और यही सिद्धांत किसी गणतंत्र की सफलता के भी है।
राजनीति में मूल्यों को छोड़ देना आज कोई नई बात नहीं रह गई है लेकिन किस संदर्भ में राम को भी स्मरण करना बहुत जरूरी है जो राजनीति के नये-नये मापदंड स्थापित करते हैं। यह स्मरण रखना होगा कि श्रीराम को राज्याभिषेक के समाचार के तुरंत बाद वरदानिक वनवास के समाचार से उनके मुख पर कोई परिवर्तन नहीं देखा गया। राज्यसत्ता के नाश से उनके मुख की लक्ष्मी में कोई परिवर्तन नहीं देखा गया था और इसी तरह वन को जाते हुए राम बहुत ही सहज और सरल रहे तथा इसी तरह पृथिवी को छोड़ते हुए भी उनके चित्त में जरा भी विकार नहीं आया था। यही वह मूल्य है जिन्हें किसी देश के गणतंत्र के मूल्यों के साथ जोडक़र फिर से परिभाषित करने का भी यह युग प्रारंभ हो रहा हैं।
श्रीराम के मूल्यों के अनुसार जीवन के सभी काम न होने से यह स्पष्ट रूप से दिखलाई देगा कि गणतंत्र के मूल्यों के साथ-साथ श्रीराम के मूल्यों का भी अनुगमन नहीं किया जा रहा है। इस तरह भगवान राम की अयोध्या में पुन: वापसी से उनके मूल्यों की भी वापसी होगी। सभी आम लोगों की भी यह भावना होगी और ऐसी प्रार्थना प्रभु श्रीराम से होगी कि वह हमारे देश के भाग्यविधाताओं को अपने मूल्यों की शक्ति प्रदान करें। इसी तरह भारत में श्रीराम के मूल्यों पर आधारित राज्य की स्थापना हो सकेगी। यही इस नए गणतंत्र दिवस का अपने सभी गणों के लिए संदेश है।(सप्रेस)
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