जोशीमठ में जमीन के लगातार धंसने को लेकर ‘इसरो’ की रिपोर्ट के आंकड़ों से संवेदनहीनता पुष्ट हुई। ‘इसरो’ के मुताबिक 22 दिसम्बर 2022 और 8 जनवरी 2023 के बीच जोशीमठ में भू-धंसाव 5.4 सेन्टीमीटर हुआ था, जबकि इसके पहले के सात महीनों में भू-धंसाव 9 सेमी तक हुआ था। अनायास ‘एनआरएससी’ की वेबसाइट से 14 जनवरी 2023 को यह रिपोर्ट हटा दी गई।
अप्रैल में एक प्रमुख हिन्दी दैनिक में श्रीनगर-गढ़वाल से एक खबर छपी थी कि केदारनाथ धाम में परम पूज्य शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद जी की हुई उपेक्षा से उनके भक्त दुखी व रोष में हैं। उन्होंने इस घटना को सनातन परंपरा के लिये शुभ नहीं माना, परन्तु इसके साथ एक प्रमुख भक्त का छपा यह वक्तव्य महत्वपूर्ण है कि धार्मिक स्थलों पर लगातार राजनेताओं का हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा है। जो काम धर्माधिकारियों से होना है उसे राजनेता कर रहे हैं। मठ-मंदिरों में लगातार ‘वीआईपी-कल्चर’ पनप रहा है।
इस बयान की सत्यता पिछले कुछ सालों से उत्तराखंडवासियों से ज्यादा कौन जानता है। राजनैतिक सत्ता अक्षुण्ण रहे, निस्संदेह हस्तियां ऐसा चाहती होंगी। दरबारी अतिरेक में कुछ भी असंभव नहीं है। ऐसा ही कुछ अनुभव ‘चार-धाम यात्रा’ प्रारंभ होने के पहले ही दिन हजारों आम तीर्थयात्रियों को भी हुआ। यह सब तब हुआ जब सरल, सुगम, सुरक्षित सरकारी यात्रा की पूरी तैयारियों की दुदुंभी बज रही थी। ‘पुष्पक यानों’ से पुष्प वर्षा भी हो रही थी। तभी सोशल मीडिया व लाइव समाचार पत्र संस्करणों में ट्रांजिट कैंप की दुर्दशाएं उजागर होने लगी थीं।
आमजन घंटों वहां पीने के पानी के लिये तरसता रहा। समाचार यह भी था कि काफी समय तक परिसर प्रवेश व शौचालय आदि इसलिये बंद कर दिये गये थे, क्योंकि राज्य के मुख्यमंत्री को वहां आना था। आधिकारिक स्पष्टीकरण यह भी था कि मुख्यमंत्री जब आकर चले गये तो फिर सब पाबंदियां हटा दी गईं थीं। सवाल यह है कि आगंतुक श्रध्दालु हमारे लिये यदि देवतुल्य हैं तो देवभूमि प्रवेश-व्दार में ऐसी संवेदनहीनता का क्या औचित्य था?
संवेदनहीनता के क्रम में उन दिनों की ओर लौटे जब आदि शंकराचार्य की तपःस्थली ज्योतिर्मठ व प्रसिध्द पौराणिक नृसिंह मंदिर जनवरी 2023 में जोशीमठ भू-धंसाव की जद में आ गये थे। आठ जनवरी को शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने सुप्रीम कोर्ट में तुरंत पुनर्वास का मुददा उठाया था। उन्होंने जोशीमठ में धार्मिक व आध्यात्मिक स्थानों को सुरक्षा देने और ‘तपोवन परियोजना’ को बंद करने की मांग की थी। एक ऐसी ‘मॉनीटरिंग कमेटी’ बनाने का अनुरोध किया गया था जो केन्द्र व राज्य सरकारों के जोशीमठ को सुरक्षा व पुनर्वास देने के प्रयासों पर नजर रखे, किन्तु उनकी अपील नहीं स्वीकार की गई थी।
सरकार को तो उनके साथ होना चाहिये था। जोशीमठ आदिगुरू शंकराचार्य जी की तपःस्थली है। नवम्बर 2021 को प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी आदिगुरू शंकराचार्य की 12 फुट ऊंची, 35 टन की प्रतिमा का केदारनाथ धाम में अनावरण कर चुके थे। आदिगुरू शंकराचार्य का बदरीनाथ धाम की पुर्नस्थापना में भी अतुलनीय, अविस्मरणीय योगदान रहा था। ऐसे में आशा थी कि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में ज्योर्तिमठ के संदर्भ में उसे अकेला न छोड़ेगी।
जोशीमठ में जमीन के लगातार धंसने को लेकर ‘इसरो’ की रिपोर्ट के आंकड़ों से संवेदनहीनता पुष्ट हुई। ‘इसरो’ के मुताबिक 22 दिसम्बर 2022 और 8 जनवरी 2023 के बीच जोशीमठ में भू-धंसाव 5.4 सेन्टीमीटर हुआ था, जबकि इसके पहले के सात महीनों में भू-धंसाव 9 सेमी तक हुआ था। अनायास ‘एनआरएससी’ की वेबसाइट से 14 जनवरी 2023 को यह रिपोर्ट हटा दी गई। आज भी जोशीमठ पर हुये वैज्ञानिक अध्ययनों की रिपोर्ट देने में हिचकिचाहट जारी है। ‘जोशीमठ बचाओ युवा संघर्ष समिति,’ जिसने ‘सेफ जोशीमठ, सेफ उत्तराखंड’ के लिये जोशीमठ से देहरादून तक पैदल मार्च निकाला था, का बेलाग वक्तव्य था कि पूरा जोशीमठ ‘नेशनल थर्मल पॉवर कॉर्पोरेशन’(एनटीपीसी) की वजह से ‘अनसेफ जोन’ में आ गया है व सरकार परियोजना को बचाने में लगी हुई है। (सप्रेस)
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