‘कोविड-19’ के संसार-व्यापी संकट से निपटना कोई ‘रॉकेट साइंस’ नहीं है। कुछ सावधानियां बरतकर इससे आसानी से निपटा जा सकता है। सवाल है कि क्या हम अपनी आम, रोजमर्रा की मामूली आदतों को बदलने के लिए तैयार हैं? खासकर तब, जब ये आदतें हमें मौत के मुंह में ढकेलने वाली हों?
यह तो अब साफ हो ही गया है कि सारी दुनिया इन दिनों अपने इतिहास की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ रही है और वह भी घरों से निकल कर रणक्षेत्र, मैदान या सड़कों पर नहीं, बल्कि घरों में बैठकर। किसी हथियार और बम से नहीं, बल्कि अपने संयम और धैर्य के साथ। हाथ-से-हाथ और कदम-से-कदम मिलाकर भी नहीं, बल्कि एक-दूसरे से अलग होकर, अपने बहुत प्रिय से भी दूरी बनाकर। आज ‘कोविड-19’ विषाणु ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है। कोई विषाणु कभी इतना खतरनाक भी हो सकता है इसे अभी तक जाना ही नहीं गया था। अपने देश में भी इस विषाणु के भयावह नतीजों को देखते हुए सभी लोग, सभी तरह के भेदभाव से ऊपर उठकर एकजुट हो गए हैं। भविष्य के खतरों से बचने के लिए केंद्र और राज्यों की सरकारें, संस्थाएं, पूरा चिकित्सा तंत्र व उससे जुड़े डॉक्टर, नर्स सहित सभी शक्तियां जुट गई हैं। लोकतंत्र और खुली आजादी वाले अपने देश में सरकारों को लोगों को घरों में कैद करने के लिए सख्ती भी बरतनी पड़ रही है।
चीन से दो महीने पहले शुरू हुए इस विषाणु के संक्रमण ने आज पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है। अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, इटली और ईरान में मानव समाज भीषण त्रासदी का शिकार हो गया है। इलाज करने वाले डॉक्टरों की मौतें हो रही हैं। मरने वालों को चार कंधे नहीं मिल रहे, उनका अंतिम संस्कार सेना कर रही है। जानकारों का कहना है कि गलतियां हुई हैं तभी यह विषाणु इतना फैल रहा है। उल्लेखनीय है कि जिस चिकित्सक लो वेन लियांग ने पहली बार चीन में कोरोना विषाणु की उपस्थिति जताई थी, उसके लिए उन्हें अफवाह फैलाने के जुर्म में जेल में बंद करने की बजाय उनकी बात पर तवज्जो दी जाती और तत्परता से शुरू में ही कोशिश की जाती तो आज दुनिया को यह दिन देखने को विवश नहीं होना पड़ता और कोरोना के संक्रमण को विश्वव्यापी बनने से रोका जा सकता था।
दुनियाभर के देश अपने संसाधनों और प्रयासों के जरिए ‘कोविड-19’ से मुक्त होने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं फिर भी उनके सामने चुनौतियां लगातार बढ़ती ही जा रही हैं। कोरोना विषाणु का चक्र टूट नहीं रहा। उसके फैलने की तीव्रता और व्यापकता इतनी ज्यादा है कि एक लाख लोगों को संक्रमण होने में दो महीने लगे, इस संख्या को दो-गुना यानि दो लाख होने में मात्र 11 दिन और इसके तीन-गुना पहुंचने में मात्र चार दिन। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कोरोना का संक्रमण कितनी तेजी से फैलता है। सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि फिलहाल इसका कोई इलाज ही नहीं है। पिछले कुछ महीनों के अनुभव से इतना भर पता चला है कि कोरोना को पराजित करने का उपाय और विकल्प घरों में कैद हो जाना और एक-दूसरे से दूर रहना ही है।
उल्लेखनीय है कि पिछले 100 सालों के इतिहास में दुनिया भर में बनाए गए पार्क, सड़कें, मॉल, मंदिर, मस्जिद, तीर्थ और पर्यटन स्थल आदि इस समय किसी काम के नहीं रह गए हैं। केवल अस्पताल, जिनकी संख्या भारत जैसे देश में तो कम है ही, समर्थ देशों में भी कम पड़ती दिखाई दे रही है, काम आ रहे हैं। अब स्कूल, कॉलेज, पार्क आदि भी अस्पतालों में तब्दील किए जा रहे हैं। मंदिरों, मस्जिदों में भी दुआएं कबूल नहीं हो रहीं, उल्टे विभिन्न धार्मिक संगठन अंधविश्वास फैलाने से बाज नहीं आ रहे। उन्हें ऐसे समय में लोगों की मदद करनी चाहिए और तार्किक बातें ही करनी चाहिए।
‘कोविड-19’ के पांच चरण होते हैं और अपने देश में उसका दूसरा चरण शुरू हुआ है। देश के लोगों ने जनता कर्फ्यू का पालन कर कोरीना से लड़ने के लिए अपने सामूहिक संकल्प को प्रदर्शित किया है और अब बढ़ती चुनौतियों को देखते हुए तीन सप्ताह तक के लिए पूरे देश में लॉक डाउन की घोषणा की गई है। कहा जा रहा है कि लॉक डाउन के कारण नौ लाख करोड़ का नुकसान हो सकता है और लोग अनुशासन में नहीं रहे और कोराना का चक्र नहीं टूटा तो यह नुकसान और भी ज्यादा हो सकता है जिसकी कीमत पूरे देश को चुकानी पड़ सकती है। देशभर में मरीजों का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है। सबसे अधिक प्रभावित महाराष्ट्र और केरल के अलावा देश के आंध्रप्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, चंडीगढ़, हरियाणा, दिल्ली, गुजरात, हिमाचल प्रदेश,जम्मूकश्मीर, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, मणिपुर, ओडीशा, पुडुचेरी, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल आदि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों तक में फ़ैल गया है। आज भारत की ओर दुनियाभर की नजर है कि विशाल आबादी और कम संसाधनों वाला देश कैसे ‘कोविड-19’ को पटकनी देता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि कुछ पारंपरिक संस्कारों और अपनी सूझबूझ से भारत कोरोना पर वैसे ही पार पा सकता है जैसे इसके पहले उसने चेचक, प्लेग और पोलियो से मुक्ति पाई है।
यह खुशी की बात है कि आज तक के सबसे बड़े युद्ध में जीत पक्की करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें इस विषाणु के चक्र को तोड़ने के लिए सभी प्रयासों के साथ गरीबों को मदद पहुंचाने की घोषणाएं कर रही हैं। सरकारों को यह देखना है कि समाज का बहुत बड़ा हिस्सा रोज कमाता, खाता है। उनके लिए मौजूदा समय की विपदा दोहरी मार ही है। ऐसे में जिस रफ्तार से धनपतियों की तिजोरियों के ताले खुलने चाहिए, नहीं खुल रहे हैं। देखना होगा कि दिहाड़ी मजदूर, पटरी वाले, खोमचे वाले और बेघर लोगों के लिए पूरी संवेदना से सरकारें कितना प्रयास करती हैं। संपन्न और समृद्ध लोगों को भी आगे आना चाहिए ताकि कोई भूखा ना रहे। ऐसे समय में लोग घरों में हैं और खाने-पीने की दुकानें भी बंद हैं तो सबसे ज्यादा संकट बेजुबानों के सामने भी आ गया है। हमें उनकी ओर भी ध्यान देना है। झुग्गियों में पीने के लिए पानी नहीं है तो हाथ किससे धोएं और इतने पैसे नहीं हैं सैनिटाइजर और मॉस्क जैसी चीज खरीद सकें। ये सब भी अब आम लोगों की पहुंच से बाहर हो गए हैं। विपत्ति के समय में कुछ लोग लाभ लूटने में भी मशगूल है, उन पर भी करवाई होनी चाहिए। सरकारों और समाज सेवी संगठनों को पूरी संवेदना से अपना कर्तव्य समझते हुए यह सुनिश्चित करना चाहिए ताकि आम लोगों की जरूरत की वस्तुओं की कमी नहीं हो और समय पर उनके पास पहुंचे। (सप्रेस)