महाराष्ट्र– कर्नाटक के ठेकेदार एवं फ़ैक्ट्ररी मालिकों द्वारा बंधुआ मजदूरी में धकेले जा रहे है प्रदेश के आदिवासी
बड़वानी। गहराते कृषि संकट, बेरोजगारी और महंगाई के कारण अपना गुजारा करने के लिए मध्यप्रदेश के लगभग 250 मजदूर-आदिवासियों को जागृत आदिवासी दलित संगठन तथा बेलगावी और पुणे के सामाजिक कार्यकर्ताओं और बड़वानी पुलिस की सक्रिय सहयोग से शिकायत करने वाले मजदूर ग्राम शिवनी, उबड़गड़, कंडरा, सेमली, बोरखेड़ी में लौटे हैं, लेकिन अभी महाराष्ट्र– कर्नाटक के ठेकेदार एवं शक्कर फ़ैक्टरियों के मालिक पर कानूनी कार्यवाही होना शेष है।
उक्त जानकारी जागृत आदिवासी दलित संगठन के ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में समाजिक कार्यकर्ता माधुरी बहन, वालसिंग ससतिया, हरसिंग जमरे और नितिन ने दी। उन्होंने बताया कि शक्कर कारखानों के ठेकेदारों से भारी कर्ज़ ले कर, कर्ज़ को चुकाने के लिए महाराष्ट्र और कर्नाटक में बंधुआ मजदूर बन कर काम करना पड़ रहा है। 18 जनवरी से लगातार आदिवासी बाहुल्य पाटी ब्लॉक के थाने में कर्नाटक और महाराष्ट्र में फंसे मजदूरों और उनके परिजन द्वारा शिकायतें की गई थी कि इन मजदूरों को बिना कोई हिसाब दिये काम करवाया जा रहा है। बेलगावी (कर्नाटक) के ‘निरानी शुगर्स’ नामक फ़ेक्ट्री में तीन मजदूरों को बंधक बनाया गया और प्रशासन से लगातार कार्यवाही की मांग पर 6 दिन बाद उन्हें छोड़ा गया।
संगठन से जुडे इन जागरूक सदस्यों ने कहा कि ठेकेदार द्वारा नौजवान आदिवासी जोड़े को गर्मियों में लगभग 40,000 रु. कर्ज़ दिया जाता हैं और बताया जाता है कि दशहरा से उन्हें तीन माह तक काम करना पड़ेगा। कर्ज़ चुकाने के बाद वे तगड़ी रकम कमा पाएंगे। लेकिन कार्यस्थल पर पहुँचने पर उन्हें कोई हिसाब दिये बिना, सुबह 5 बजे से शाम 7 बजे तक गन्ना कटाई में लगाया जाता है, कभी 1 बजे रात तक भी। गर्भवती और नवजात शिशु वाली महिलाएं और बच्चे भी काम करते हैं। तीन माह होने पर जब मजदूर हिसाब माँगते हैं, उन्हें डरा धमकाया जाता है और बताया जाता है कि जब तक सेठ चाहे, उन्हें काम करना पड़ेगा। यह कानून अनुसार बंधुआ मजदूरी है।
संगठन की माधुरी बहन ने कहा कि बेलगावी में 20 मजदूरों के एक समूह के शिकायत पर बंधुआ मजदूरी, बाल श्रम और न्यूनतम मजदूरी नहीं मिलने संबन्धित कुछ मामले दर्ज़ किए गए हैं, पर किसी अन्य समूह के ऐसे शोषण के संबंध कोई भी कार्यवाही नहीं हुई है ।
यौन शोषण, अन्य कानूनों का उल्लंघन
प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया कि बेलगावी में ग्राम सेमलकोट (जिला खरगोन) के मजदूरों से न सिर्फ बंधुआ मजदूरी करवाई गई, बल्कि 3 महिलाओं और 3 नाबालिग लड़कियों का ठेकेदारों द्वारा कई बार यौन शोषण एवं बलात्कार किया गया। किसी तरह अपनी जान बचा कर लौटे मजदूरों की शिकायतों पर हफ्तों तक खरगोन पुलिस द्वारा एफ़आईआर दर्ज नहीं की गई। आखिरकार, जब मामला दर्ज किया गया तो बंधुआ मजदूरी एवं अत्याचार अधिनियम के अंतर्गत धाराएँ नहीं लगाई गई।
संगठन से जुडे कार्यकर्ताओं ने कहा कि एक ओर मध्य प्रदेश सरकार आदिवासियों को लुभाने के लिए प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री अंग्रेजों के शोषण के खिलाफ लड़े बिरसा मुंडा, टंटिया भील, भीमा नायक जैसे योद्धाओं के सम्मान में ज़ोर शोर से कार्यक्रम कर रही हैं। हाल ही में प्रधानमंत्री के बिरसा जयंती कार्यक्रम में आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा 23 करोड़ रुपए की राशि खर्च की गई। वहीं दूसरी ओर, इन योद्धाओं के वंशज अन्याय और शोषण से अभी भी जूझ रहे है। हजारों की संख्या में बंधुआ मजदूर बन कर्ज़ और कुपोषण में झुलस रहे हैं। निमाड में एक हफ्ते के अंदर पुलिस प्रताड़ना से हुई दो आदिवासियों के मौत पर 5 माह बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हुई है! जागृत आदिवासी दलित संगठन द्वारा इन सभी मामले में दोषियों पर कानूनी कार्यवाही के लिए अभियान शुरू किया जाएगा।
सामाजिक कार्यकर्ता माधुरी बहन ने कहा कि अंतरराजीय प्रवासी कामगार अधिनियम, 1979 के अनुसार कारख़ाना ओर ठेकेदार की ज़िम्मेवारी है कि वे दूसरे राज्य से आए सभी मजदूरों/आदिवासियों को नियमित तौर पर न्यूनतम मजदूरी दें और और उनके रहने की बुनियादी व्यवस्था भी की जाए। जबकि ये सभी मजदूर, खेतों में प्लास्टिक शीट के नीचे रहने को मजबूर हैं। इस कानून के अनुसार ठेकेदारों के पास लाइसेन्स होना चाहिए और वे दोनों राज्यों में मजदूरों का पंजीयन कर, उन्हें उनके मजदूरी के हिसाब एवं विवरण युक्त एक ‘पासबुक’ भी प्रदान की जाना चाहिए। वही आदिवासी मजदूरों से बंधुआ मजदूरी कराई जाना बंधुआ मजदूरी अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 का उल्लंघन है। मजदूरों के ये हालात भारतीय दंड संहिता के धारा 370 एवं 374 के अनुसार मानव तस्करी, बेगारी और शोषण है और संज्ञेय अपराध है ।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को बंधित श्रम पद्धति (उत्सादन) अधिनियम के क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है। आयोग द्वारा सभी जिलों के जिला कलेक्टर तथा राज्य सरकारों को बंधुआ मजदूरी में फंसे हुए मजदूरों को छुड़ाने तथा उनके पुनर्वास के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश दिये है । इसके बावजूद मजदूरों द्वारा की गई शिकायतों के बावजूद मध्य प्रदेश शासन एवं जिला प्रशासन द्वारा ठोस कार्यवाही नहीं की जा रही है। ऐसे में शासन-प्रशासन की निष्क्रियता का फायदा उठाते हुए अवैध ठेकेदार एवं फेक्ट्ररी मालिकों द्वारा आदिवासियों का शोषण जारी रहेगा ।