इंदौर/भोपाल 2 मार्च। वर्तमान राज्‍य सरकार का आखरी बजट पर प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त करते हुए जन स्वास्थ्य अभियान,मध्यप्रदेश ने सरकार से मांग की है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने के लिए बजट आवंटन में पर्याप्त वृद्धि की जाए और प्रदेश में कुपोषण से लड़ने के लिए राशि का आवंटन बढ़ाया जाए। साथ ही स्वास्थ्य क्षेत्र में निजी भागीदारी बंद की जाए।  

जन स्वास्थ्य अभियान मध्यप्रदेश ने आगे कहा कि राज्‍य सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के लिए 3996 करोड़ का प्रावधान किया हैं, जो कि पिछले वर्ष के आवंटन से मात्र 396 करोड़ रुपए अधिक हैं। यह वृद्धि की गई राशि अपर्याप्त हैं। उन्‍होंने कहा कि मध्य प्रदेश की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत 7894 पद विभिन केटेगरी में रिक्त हैं,  जिससे सीधे – सीधे योजनाओं का क्रियान्वयन प्रभावित होता है। प्रदेश में मातृ मृत्यु और बाल मृत्यु अभी भी चिंताजनक स्थिति में हैं,  इस दृष्टि से इस मद में आवंटन अधिक बढ़ाया जाना चाहिए।

जन स्वास्थ्य अभियान, मध्यप्रदेश के एस आर आजाद और राकेश चंदौरे ने जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि वर्ष 2022-23 में स्वास्थ्य क्षेत्र का बजट अनुमान 10380 करोड़ रुपए था, जो वर्ष 2023-24 में बढ़ाकर 11988 करोड़ रुपए किया गया है। यानि 1608 करोड़ रूपये की वृद्धि हुई है जोकि अपर्याप्त हैं। मध्यप्रदेश के प्रशासकीय प्रतिवेदन 2021-22 के अनुसार प्रदेश भर में विशेषज्ञ, चिकित्सा अधिकारी और दंत चिकित्सकों के 4105 पद रिक्त है, जिसके बारे में इस बजट कोई प्रावधान दिखाई नहीं देता हैं।

वहीं इस बजट में कहा गया है कि जिला अस्पतालों में वेट लीज मॉडल के माध्यम से और ग्रामीण क्षेत्रों में हब एंड स्पोक मॉडल के द्वारा निजी भागीदारी से निशुल्क जांच उपलब्ध करवाई जा रही हैं। इस प्रकार की नीति से निजी स्‍वास्‍थ सेवाओं  क्यों आमंत्रित किया जा रहा है? जबकि पिछले दिनों निजी स्वास्थ्य सेवाओं पर निर्भरता के परिणाम प्रदेशवासियों ने भी भुगते हैं।

जन स्वास्थ्य अभियान,मध्यप्रदेश ने कहा कि सरकार ने इस बजट में बताया है कि आगामी वर्षों में प्रदेश में शासकीय क्षेत्र में कुल 25 चिकित्सा महाविद्यालय कार्यशील हो जाएंगे लेकिन यह कैसे कार्यशील होंगे इस बारे न कोई स्पष्टीकरण है और न ही बजट का आवंटन हैं। क्या यह चिकित्सा महाविद्यालय नीति आयोग के निर्देशानुसार निजी भागीदारी से क्रियाशील होंगे, सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए।

इस बजट में प्रदेश में भारतीय स्वास्थ्य मानकों को लागू करने की बात कही गई हैं,  वर्ष 2005 राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन लागू के बाद 2007 में यह मानक पहली बार जारी किए गए थे। तो क्या मध्यप्रदेश में अभी तक उप स्वास्थ्य केंद्र से लेकर जिला अस्पताल तक बिना मानकों के अपनी सेवाएं दे रहे थे? इन मानकों को लागू करने के लिए बजट में कोई विशेष प्रावधान नहीं किया गया हैं।

एस आर आजाद और राकेश चंदौरे ने कहा कि मध्यप्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2019-20 में स्वास्थ्य अधिकार कानून लागू करने के लिए प्रयास किए गए थे। प्रदेश में निजी स्वास्थ्य संस्थानों की निगरानी के क्लिनिकल इस्टेब्लिशमेंट कानून 2010 को लागू करने के लिए प्रदेश एक ड्राफ्ट कानून भी बनाया जा चुका हैं और उस पर विभाग ने चर्चा भी आयोजित की थी और साथ ही प्रदेश में शहरी स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने के लिए संजीवनी क्लीनिक शुरू किए गए थे। लेकिन तब से अभी इन तीनों महत्वपूर्ण प्रयासों पर कोई प्रगति नहीं दिखाई दी हैं, जबकि सार्वजनिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से तीनों मुद्दे बहुत महत्वपूर्ण हैं।  

महिला एवं बाल विकास विभाग के लिए इस वर्ष 14686 करोड़ का प्रावधान किया गया है, जिसमें प्रमुख वृद्धि सरकार की नई योजना मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना हेतु 8000 करोड़ का प्रावधान किया गया हैं। अर्थात महिला एवं बाल विकास के लिए पिछले बजट अनुमान से 5877 करोड़ में केवल 809 करोड़ की वृद्धि हुई हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के पाँचवें दौर के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में पिछले पाँच सालों में बच्चों में कुपोषण 58.6% से बढ़कर 67.1% और महिलाओं में 54.1% से बढ़कर 59.1% हो गया हैं। कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0 तथा न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम विशेष पोषण आहार योजना हेतु यह आवंटन अपर्याप्त हैं।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें